इंग्लैण्ड जाने का सपना लगभग हर भारतीय देखता है। कहीं-न-कहीं मन में यह भावना होती है कि जिस देश ने हिन्दुस्तान पर राज किया और जिसके साम्राज्य में सूरज नहीं डूबता था, वह देश कैसा होगा। अमीर के लिए तो दुनिया में कहीं भी जाना कठिन नहीं होता है। लेकिन आम आदमी या ग़रीब जब सपना देखता है, तो उसका पूरा होना अत्यन्त कठिन होता है।
ग़रीबों के सपनों की राह में पैसा, भाषा, बोली, धोखाधड़ी, कानून आदि बाधाएँ आती हैं। हर वर्ष लाखों की संख्या में ग़रीब अपने सपनों को पूरा करने विदेश जाते हैं, जिनमें कुछ पहुँच पाते हैं तो कुछ हमेशा के लिए लापता हो जाते हैं। अमूमन ग़रीब और अशिक्षित को वीज़ा नहीं मिलता है। जो अवैध तरीक़े से विदेश पहुँच जाते हैं, वे अत्यन्त निम्न स्तर का जीवन गुज़ारते हैं; पर अपने घरवालों को अपना सच नहीं बताते कि किन कठिन परिस्थितियों में वे रह रहे हैं। चूँकि वे विदेश में हैं, तो उनका घर-समाज सोचता है कि वे बहुत ख़ुशहाल जीवन जी रहे हैं। एक तरफ़ इन्हें पैसा कमाना है, तो दूसरी तरफ़ पुलिस से बचना है। इसी जद्दोजहद में जीवन बीतता है। शायद ही कोई जो अवैध तरीक़े से विदेश जाता है, अपने वतन वापस लौट पाता है।
फ़िल्म 'डंकी' ग़रीबों के सपने देखने और उसे पूरा करने के संघर्ष की सच्ची कहानी है। डंकी का अर्थ है अवैध तरीक़े से दूसरे देश में जाना। डंकी द्वारा जाना बेहद कठिन है। कई देशों के समुद्र, जंगल, पहाड़, रेगिस्तान आदि को छुपकर पार करना होता है। रास्ते में आने वाली कठिनाइयों से लोग जान भी गँवा देते हैं। पकड़े गए तो अवैध या घुसपैठिया होने के कारण उस देश के क़ानून के अनुसार सज़ा मिलती है। कई बार जान भी चली जाती है।
'डंकी' में पंजाब के एक गाँव की कहानी है, जहाँ के कुछ युवक-युवती अलग-अलग कारणों से इंगलैण्ड जाने का सपना देखते हैं। वे सभी आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर हैं। उन्हें वीज़ा नहीं मिल पाता है। शाहरुख़ खान एक फौज़ी है और उस गाँव में आता है, जहाँ तापसी पन्नू से मुलाक़ात होती है। तापसी पन्नू का भी सपना है इंग्लैण्ड जाकर पैसा कमाना, ताकि वह अपने गिरवी पड़े घर को छुड़ा सके।
शाहरुख़ परिस्थितिवश उस गाँव में रुक जाता है और वह तापसी के प्यार में पड़ जाता है; परन्तु ज़ाहिर नहीं करता। सभी युवक-युवती हर तरह से प्रयास करते हैं कि वीज़ा मिल सके; लेकिन असफल रहते हैं। शाहरुख़ हर तरह से सहायता करता है, लेकिन कामयाब नहीं होता। उन सभी के पास न पैसा है, न शिक्षा। वे अँगरेज़ी नहीं बोल सकते, तो वीज़ा मिलना असम्भव हो जाता है। फिर उन्हें पता चलता है कि डंकी पर लोग विदेश जाते हैं। शाहरुख़ अपने प्रयास से सभी को डंकी पर इंग्लैण्ड ले जाता है, जिनमें से कुछ रास्ते में मारे जाते हैं। वे किसी तरह इंग्लैण्ड पहुँचने पर पाते हैं कि डंकी से आए लोग किस दुर्दशा में जी रहे हैं। फिर भी वे वापस नहीं लौटते। शाहरुख़ भारत लौटना चाहता है। वह अपने देश के ख़िलाफ़ ग़लत नहीं बोलता और न झूठ बोलता है, अतः उसे वापस भेज दिया जाता है। 35 साल के बाद शाहरुख़ के 3 दोस्त जो डंकी पर इंग्लैण्ड गए थे, वापस लौटना चाहते हैं। शाहरुख़ अपनी चालाकियों से उन्हें भारत वापस लाता है।
हमारे देश की कुछ ज़रूरी समस्याओं को भी इस फ़िल्म में बेहतरीन डायलॉग के साथ पेश किया गया है, जैसे- अँग्रेज़ी बोलना, पैसे देकर काम निकलवाना, वीज़ा के लिए ग़लत प्रमाण पत्र बनाना, इंग्लैण्ड में रहने के लिए असाइलम का उपयोग तथा वहाँ का स्थायी निवासी बनने का कानून इत्यादि। अँगरेज़ी भाषी देश में जाने के लिए IELTS (अँगरेज़ी भाषा की परीक्षा) पास करना होता है। इसके लिए कोचिंग सेंटर है; लेकिन जो अशिक्षित या हिन्दी माध्यम से पढ़ा है वह कितनी भी कोशिश कर ले अँगरेज़ी नहीं बोल पाता है।
अमेरिका, इंग्लैण्ड, कनाडा इत्यादि देश भारतीयों से भरा पड़ा है। विदेश में पैसे कमाने का सपना लेकर न जाने कितने लोग देश से पलायन करते हैं। भले ही विदेश में बेहद निम्न स्तर का काम करते हों; लेकिन विदेश जाकर ज़्यादा पैसा कमाना लक्ष्य होता है। वैध और अवैध तरीक़े से लगातार लोग जा रहे हैं। या तो कुछ बन जाते हैं या मिट जाते हैं। पंजाब में हर उस घर की छत पर हवाई जहाज का मिनिएचर (लघु आकार) बनाकर लगाया जाता है, जिस घर का कोई विदेश गया होता है। यह उस घर के लिए सम्मान की बात होती है।
शाहरुख़ शानदार अभिनेता हैं। उनकी आँखें बोलती हैं। शाहरुख़ की आँखें उनके मनोभाव को व्यक्त कर देती हैं। युवा शाहरुख़ से ज़्यादा अच्छे प्रौढ़ शाहरुख़ लगते हैं। शाहरुख़ हर तरह की भूमिका बेजोड़ निभाते हैं। चाहे वे सुपर हीरो बनें या भावुक इंसान।
'डंकी' में भावुक दृश्य शाहरुख़ ने बख़ूबी निभाया है। तापसी पन्नू अपने पात्र में सही नहीं दिखती; उनका अभिनय भी प्रभावहीन है। अन्य अभिनेताओं का अभिनय सामान्य है। विकी कौशल की भूमिका छोटी है; लेकिन बहुत अच्छा अभिनय किया है। फ़िल्म में कुछ हास्यास्पद दृश्य है, जो विशेष प्रभाव नहीं छोड़ता है।
'डंकी' सच्ची घटनाओं पर आधारित बेहद मार्मिक, प्रेरक, भावुक, संवेदनशील एवं शिक्षाप्रद फ़िल्म है। सच है, सपना देखना चाहिए लेकिन उसे पूरा करने के लिए ग़लत राह का चुनाव सही नहीं होता। अपना वतन, अपनी मिट्टी, अपनी भाषा ही सब कुछ है।
-जेन्नी शबनम (21. 12. 2023)
_____________________
बहुत ही सुंदर एवं सार्थक समीक्षा की है आपने.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी समीक्षा प्रस्तुत की है आपने फ़िल्म की। इसका संदेश कुछ वर्ष पूर्व आई फ़िल्म 'अंग्रेज़ी मीडिय्म' से मिलता-जुलता लगता है। अपनी वस्तुनिष्ठ लेखनी से आपने फ़िल्म के सभी पक्षों से भलीभांति परिचित करवाया है। हार्दिक आभार एवं अभिनन्दन आपका।
ReplyDeleteफिल्म तो मैने नहीं देखी,पर आपकी समीक्षा से एक बेहतरीन फिल्म प्रतीत हो रही है।समय निकाल कर देखूंगा।
ReplyDeleteThank you so much for giving a clear picture. Normally I don't go to watch movies but this one, after your write-up would like to see.
ReplyDeleteशानदार समीक्षा , अच्छा लगा पढ़कर।
ReplyDeleteहर पहलू से बहुत सुंदर सटीक समीक्षा। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteआपकी बेहतरीन समीक्षा से अनदेखी फिल्म भी देख ली । सुंदर सटीक समीक्षा के लिए बधाई व साधुवाद!
ReplyDeleteबहुत अच्छी समीक्षा... बधाई
ReplyDeleteबहुत अच्छी समीक्षा... बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर समीक्षा ..।
ReplyDeleteआपने डंकी का अर्थ अच्छे से समझाया।
ReplyDelete1988 में इंग्लैंड जाना हुआ था। तब इस
प्रकार के कुछ लोगो के बारे में पता चला था।
बेहद संघर्षपूर्ण होता है इनका जीवन।
आपके लेखन के लिऐ आभार।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
राकेश कुमार _ मनसा वाचा कर्मणा।