चित्र गूगल से साभार |
एक दिन मेरे मोबाइल पर फ़ोन आया कि मेरा नाम, मोबाइल नं. और आधार कार्ड का इस्तेमाल कर कुछ कुरियर हुआ है, जो पकड़ा गया है। मैंने कहा कि मैंने नहीं भेजा, तो बताया गया कि चूँकि मैंने नहीं भेजा है अतः मुझे मुम्बई जाकर कम्प्लेन करना होगा। मैं मुम्बई नहीं जा सकती थी, तो उसने कहा कि वह मुम्बई पुलिस को फ़ोन ट्रान्सफर कर रहा है, जहाँ मुझे शिकायत लिखवानी है। मैंने सारा विवरण कथित मुम्बई पुलिस को दे दिया। फिर पुलिस वाले ने कहा कि मैं स्काइप पर अपनी शिकायत को सत्यापित कराऊँ। उसने मुझसे स्काइप डाउनलोड करवाया, जो नहीं हो सका। एक घंटे से ज़्यादा वक़्त उसने मुझपर और मेरा उसपर बर्बाद हुआ। जब मैंने अपने आधार कार्ड का नम्बर माँगा तो वह बहाना बनाने लगा। जिस नम्बर से फ़ोन आया, वह 9 डिजिट का था और कॉलबैक नहीं हुआ। फिर मैंने दिल्ली और मुम्बई पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी।
मेरे साथ हुई यह घटना ए.आई. का बहुत छोटा उदाहरण है। ए.आई. के द्वारा किसी भी व्यक्ति के डाटा और उसके पैटर्न को समझकर आसानी से धोखा दिया जाता है। इस तरह के साइबर क्राइम पर एक सीरीज़ भी बनी है 'जामताड़ा'। कई बार लोग इस तरह के जाल में फँस जाते हैं, तो कुछ लोग संयोग से बच जाते हैं। इसका नेटवर्क इतना मज़बूत और वास्तविक लगता है कि ज़रा भी शक़ नहीं होता। ऐसी घटनाएँ हमारे देश में लगातार बढ़ती जा रही हैं। इसलिए आज किसी अनजान पर कोई यक़ीन नहीं कर पाता है। हर अनजान फ़ोन संदिग्ध लगने लगा है। लोग राह चलते किसी की सहायता करने से डरने लगे हैं। धोखे का बाज़ार इतना समृद्ध हो चुका है कि सभी का सभी से भरोसा उठ चुका है। हमारा आपसी सामंजस्य न होने और सामाजिक दूरी बढ़ने का यह बहुत बड़ा कारण है। हालाँकि तकनीकी विकास न होता तो आज दुनिया इतनी विकसित नहीं होती। यह भी सच है कि तकनीक के इतने विकसित होने से हमें रोज़मर्रा के कार्यों में भी बहुत सहूलियत मिली है।
जब से दुनिया में तकनीकी ज्ञान बढ़ा है, हर रोज़ कुछ न कुछ इसमें इज़ाफ़ा होता है। 20वीं सदी के अन्त से पहले ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए.आई.) में बहुत तेज़ी से विकास हुआ। एक तरह से यह तकनीकी क्रान्ति है। ऐसे-ऐसे रोबोट तैयार हुए जो ऑफ़िस और घर का काम भी करने लगे। ए.आई. के कारण संसार का कोई भी रहस्य अनजाना नहीं रहा। तकनीकी ज्ञान, विज्ञान के साथ ही सामजिक जीवन पर भी इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। देश का रक्षा तंत्र, पोलिसिंग, बैंकिंग, शिक्षा, खुफ़िया विभाग, स्वास्थ्य, शिक्षा, मौसम विभाग, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, रिसर्च इत्यादि हर क्षेत्र में बहुत प्रगति हुई है। किसी भी विषय पर कुछ जानना हो या किसी तस्वीर की ज़रूरत हो, ए.आई. झट से सब कुछ सामने दिखा देता है। चिकित्सा में किसी जटिल ऑपरेशन में किसी दूसरे देश के डॉक्टर द्वारा किसी दूसरे देश में सफल ऑपरेशन हो जाता है। कृषि कार्य हो या घर में खाना पकाना, हर जगह ए.आई. प्रवेश कर चुका है। पूर्वानुमान के आधार पर किसी संकट से बचा जा सकता है। यों लगता है मानो कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर पूरा ब्रह्माण्ड सिमट गया है और एक क्लिक से दुनिया मुट्ठी में कर लो।
हमारा डिजिटल पर्सनल डाटा हमारे ढेरों काम में इस्तेमाल में आता है। बैंक अकाउन्ट खुलवाने, क्रेडिट-डेबिट कार्ड बनवाने, सरकारी सेवाओं में, फोन का कनेक्शन, बिजली-पानी का कनेक्शन, बच्चों का नामांकन, होटल बुक करने, रेल-हवाई या बस द्वारा टिकट बुक करने, सरकारी विभागों में किसी सेवा लेने के लिए, इन्टरनेट पर अपना प्रोफाइल बनाने इत्यादि हर काम में हमारा डाटा शेयर होता है। मार्केटिंग कम्पनी हमारा डाटा इकठ्ठा कर अपने प्रचार-प्रसार के लिए उपयोग करती है। गूगल, सफारी, फेसबुक, इंस्टाग्राम या फिर नेट पर कुछ भी खोजा जाए तो ए.आई. के द्वारा हमारे फेसबुक या इंस्टाग्राम अकाउंट पर हमारे पैटर्न को देखकर उससे सम्बन्धित चीज़ें दिखने लगती हैं। यहाँ तक कि कम्प्यूटर या मोबाइल पर हमारे गेम खेलने के पैटर्न पर भी ए.आई. की नज़र रहती है। यूट्यूब में कुछ देखें तो उससे सम्बन्धित और भी वीडियो सामने आ जाता है। बड़ा आश्चर्य होता है कि कम्प्यूटर को कैसे पता कि हम क्या देखना चाहते हैं। यों लगता है मानो हम मनुष्य मशीनों और तकनीक के जाल में उलझ गए हैं, जहाँ सब कुछ अप्राकृतिक और डरावने रूप से सामने आता है। आज का मनुष्य समाज से कटकर मशीनों के साथ जीवन बिता सकता है और जो चाहे कर सकता है।
ए.आई. के द्वारा जब जो चाहे किया जा सकता है, क्योंकि यह मनुष्य की बुद्धि नहीं है जो सोचेगा; बल्कि मशीन की बुद्धि है जो उसमें फीड किए हुए प्रोग्रामिंग के अनुसार कार्य करेगा। यह न थकता है, न ऊबता है, लगातार क्रियाशील रहकर अपने प्रोग्रामिंग किए हुए कार्य का निष्पादन करता रहता है। जटिल प्रोग्रामिंग कर न सिर्फ़ औपचारिक कार्य; बल्कि भावनात्मक कार्य भी इनके जरिए हो रहा है। अब ऐसे-ऐसे रोबोट बन गए हैं, जो हमारे दुःख में हमारे साथ रो सकता है और ख़ुशी में हँस सकता है, हमारे सवालों के जवाब दे सकता है। दुनिया का कुछ भी जानना हो पूरे विस्तार से जानकारी देता है। निश्चित रूप से मनुष्य की बुद्धि जहाँ ख़त्म होती है ए.आई. की बुद्धि वहाँ से शुरू होती है।
किसी भी तकनीक में कुछ अच्छाइयाँ हैं, तो बुराइयाँ भी होती हैं। ए.आई. के लिए जिस सॉफ्टवेयर और तकनीक का इस्तेमाल होता है उसके लिए उचित संसाधनों की आवश्यकता होती है, जो काफ़ी महँगी होती है। ए.आई. का कार्य मशीन करता है, अतः इसमें न नैतिकता होती है, न भावना, न मूल्य, न सही-ग़लत का फ़ैसला लेने की क्षमता। इनमें न संवेदनशीलता होती है, न भावनात्मकता। इससे मिलने वाली जानकारी की फिल्टरिंग नहीं होती है। ए.आई. के द्वारा मनुष्य के दिमाग को नियंत्रित किया जा रहा है और हम आसानी से इसके चक्कर में पड़कर कई बार बहुत बड़ा नुक़सान कर लेते हैं। ए.आई. के दुरुपयोग के कारण कितने लोगों की जान जा चुकी है। चूँकि मशीन के पास सोचने की क्षमता नहीं है अतः इसका इस्तेमाल विनाशकारी कार्यों में कुशलता से हो सकता है। इसकी सहायता से तबाही और विध्वंस लाया जा सकता है। एक क्लिक से साइबर हमला होगा और दुनिया तहस-नहस हो जाएगी।
इस कृत्रिम बुद्धिमत्ता से सब कुछ सम्भव है, परन्तु सामाजिक मूल्य, मनुष्य की कुशलता व दक्षता नष्ट हो रही है। मनुष्य आलसी और कृत्रिम बुद्धि के मशीन पर निर्भर होता जा रहा है। जो काम मनुष्य सारा दिन लगाकर करता है, मशीन के द्वारा चंद मिनट में हो जाता है। ऐसे में सरकारी उद्यम हो या उद्योग, उद्योगपति हो या व्यवसायी, कार्यरत आदमी हो या आम आदमी, हर लोग मशीन को अपना रहा है ताकि पैसा बचे। इससे बेरोज़गारों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। निश्चित रूप से आई.टी. सेक्टर (इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी) को छोड़कर हर क्षेत्र में बेरोज़गारी बढ़ेगी।
संयमित और संतुलित तरीक़े से अगर ए.आई. का उपयोग हो, तो देश और अधिक उन्नति कर सकता है। लेकिन अगर दुर्भावना से इसका प्रयोग होगा तो निःसंदेह दुनिया बहुत डरावनी और विनाश की तरफ अग्रसर हो जाएगी। मशीन की बुद्धि का उपयोग मानव अपनी बुद्धि से करे, तभी मानवता का हित सम्भव है। ए.आई. हमारे जीवन में जितनी सुविधा दे रहा है, उतना ही एक अनजाना-सा डर मन में भर रहा है।
-जेन्नी शबनम (15.7.2023)
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जागरूक करती पोस्ट. बधाई
ReplyDeleteAapne is lekh se Kritrim Buddhi se avlok karaayaa...... Sach main is kism ki takneeki upyog bhayaavah pariNaam kar sakta Hai. Vyakti ko bahut sambhaal kar rahnaa hoga. Arvind Pathak
ReplyDeleteमशीन की बुद्धि का उपयोग मानव अपनी बुद्धि से करे, तभी मानवता का हित सम्भव है। ए.आई. हमारे जीवन में जितनी सुविधा दे रहा है, उतना ही एक अनजाना-सा डर मन में भर रहा है।
ReplyDeleteसही कहा आपने...
बहुत सुंदर संदेशप्रद लेख
धोखे का बाज़ार इतना समृद्ध हो चुका है कि सभी का सभी से भरोसा उठ चुका है। पत्थर जैसी मार करने वाला सत्य कह दिया है आपने। अपने अनुभव को आधार बनाकर सटीक एवं उपयोगी लेख लिखा है आपने। आभार एवं अभिनंदन।
ReplyDeleteसामाजिक जागरूकता के लिए बहुत उपयोगी लेख लिखा है, बाहुत बधाई। आपने जो घटना शुरू में बताई, ऐसी और भी सुनने में आई है। असामाजिक तत्व तकनीकी का इस्तेमाल करते हुए लोगों को ठगने के नित नए तरीके खोज लेते हैं, इसलिए हमको ही खुद को हर वक़्त सतर्क और सजग रखना होगा।
ReplyDeleteआजकल इस प्रकार की घटनाएँ आम हो गई हैं। जागरूकता फैलाने के प्रयास किए जा रहे हैं पर जाने- आनजाने लोग इसके शिकार होते चले जा रहे हैं। अतः हमें और अधिक सचेत रहने की जरुरत है। आपने एक सामयिक विषय को चुना है। इस प्रकार के लेखों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया जाना चाहिए, ताकि लोग ठगी का शिकार होने से बचे रहें।
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