Wednesday, July 1, 2020

78. श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' द्वारा 'लम्हों का सफ़र' की समीक्षात्मक भूमिका


मेरी पुस्तक 'लम्हों का सफ़र', मेरा प्रथम एकल कविता-संग्रह है, जिसका लोकार्पण 7.1.2020 को विश्व पुस्तक मेला, दिल्ली में संपन्न हुआ। श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु', केन्द्रीय विद्यालय से अवकाशप्राप्त प्राचार्य और साहित्यकार हैं, पुस्तक के लोकार्पण में शामिल न हो सके, इसका मुझे अफ़सोस है; परन्तु उनकी शुभकामनाएँ सदैव मेरे साथ हैं। मेरी पुस्तक में उन्होंने अपनी बात और इसकी भूमिका लिखी हैउनके द्वारा लिखी गई समीक्षात्मक भूमिका प्रस्तुत है    
मैं और रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
 
 
अभिभूत करने वाली कविताएँ
 
जीवन एक यज्ञ हैजिसमें न जाने कितने भावों की आहुति दी जाती है। मन के अभावों को दूर करने के लिए न जाने कितने प्रयासों की समिधा जीवन के यज्ञ-कुण्ड में होम की जाती है। जीवन-ज्योति को उद्भासित करने के लिए हृदय का कोमल और अनुभूतिपरक होना बहुत टीस पहुँचाता है। पता नहीं कबकौन-सी बात फाँस बनकर चुभ जाए और करकने लगे। पुनीत प्रेम से भरा मानव छलकता हृदय लिए दूसरों से वैसा ही प्रेम पाने की लालसा में  पूरा जीवन होम कर देता है। बदले में मिलता है- अपमानसन्तापपश्चात्ताप का म घोटने वाला धूम। डॉ. जेन्नी शबनम की कविताओं में जीवन की जद्दोजहद के साथ सन्तप्त मन लिये आगे बढ़ने का संघर्ष हैदो पल की गहन विश्रान्ति की तलाश है। मन के बीहड़ वन में इतना कुछ भरा हुआ है कि उससे निकलकर आगे क़दम बढ़ाना दुसाध्य ही है।
इनके काव्य की गहराई ने मुझे सदा अभिभूत किया है। सच तो यह है कि इनकी प्रभावशाली एवं व्यापक अर्थगर्भी कविताओं के कारण ही इनसे जुड़ा। इनका गद्य जितना सधा हुआ हैकाव्य  भी उतना ही मन की गहराइयों में उतरने वाला है। परिवेश और विषम परिस्थितियों के संघर्ष ने इनको ख़ूब तपाया है। भागलपुर में शिक्षाविश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर पिता का कम उम्र में संसार से चले जाना, भागलपुर के दंगों का साक्षी होनाव्यथित मन को लिये शान्तिनिकेतन में कुछ समय के लिए रहना और विवाहोपरान्त दिल्ली में निवासप्रसिद्ध कवयित्री अमृता प्रीतम से आत्मीयताइमरोज़ जी का प्रोत्साहन। सभी कुछ जीवन में जुड़ते चले गए। जीवन की कठोरताएँ और उससे उत्पन्न भावों का आकाशीय विस्तार इनकी कविताओं की भावभूमि बना। कुछ कविताओं का अवगाहन किया जाएतो रचनाकर्म की परिपक्वता सामने आती है।
 
लम्हों का सफ़र इन सात लम्हों में विभाजित है- 1. जा तुझे इश्क़ हो, 2. अपनी कहूँ, 3. रिश्तों का कैनवास, 4.आधा आसमान5. साझे सरोकार, 6. ज़िन्दगी से कहा सुनी  और  7. चिन्तन।
 
जा तुझे इश्क़ हो इश्क़ की यह दुआ देना या सांसारिक परिप्रेक्ष्य में शाप देना ही है। इस कविता की अभिशप्त स्थिति की यह अनुभूति देखिए-
ग़ैरों के दर्द को महसूस करना और बात है / दर्द को ख़ुद जीना और बात, / एक बार तुम भी जी लोमेरी ज़िन्दगी जी चाहता है / तुम्हे शाप दे ही दूँ-  ''जा तुझे इश्क़ हो!'' 
       
       तुम शामिल हो कविता में प्रेम की अनेकानेक छवियाँ उभरती हैं। कभी बयार, कभी ठण्ड की गुनगुनी धूप बनकर, कभी फूलों की ख़ुशबू, कभी जलकभी अग्निकभी साँसकभी आकाशकभी धराकभी सपना तो कभी भय बनकर अनेक रूपों में प्रेम की अनुभूतियों की एक-एक गाँठ खुलती है। कविता वेगवती उद्दाम नदी की तरह आगे बढ़ती जाती है। जीवन और भावों के कई-कई मोड़ पार करती हुईयथार्थ की चट्टानों से टकराती हुई। कुछ पंक्तियाँ-
कभी फूलों की ख़ुशबू बनकर जो उस राततुम्हारे आलिंगन से मुझमें समा गई और रहेगीउम्र भर!
तुम शामिल हो मेरे सफ़र के हर लम्हों में / मेरे हमसफ़र बनकर कभी मुझमें मैं बनकर / कभी मेरी कविता बनकर!
 
       ‘तय था कविता की मार्मिकता हृदय के एक-एक कोश को पार करते हुए प्राणों में उतरती जाती है। प्रेम की व्याख्या का दर्शन अव्यक्त और अनिर्णीत रह जाता हैक्योंकि सब कुछ तय होने पर भी ऐसा कुछ न कुछ रह जाता हैजिसका हमारे पास कोई विकल्प नहीं होता। प्रेम में वैसे भी कोई विकल्प नहीं होता। जो कुछ हैसब अवश कर देने वाला-
- तय यह भी तो थाबिछड़ गए गर तोएक दूजे की यादों को सहेजकर / अर्घ्य देंगे हम!
और वह स्थिति कभी सोची ही नहीं थी कि बिखरने के बाद (जिसकी सम्भावना सदा बनी रहती है) क्या करना होगा-
बस यह तय न कर पाए थे कि तय किये सभीसपने बिखर जाएँ / फिर क्या करेंगे हम?
           
       ‘अपनी कहूँ’ की कविताओं में स्वत्व की तलाश है। इस खण्ड में एक ऐसी ही कविता है- ‘मैं भी इंसान हूँ,’ इस कविता का सम्प्रेष्य यही है कि आदमी न जाने कितने चेहरे लगाकर जीवन व्यतीत करता हैफिर भी दर्द तो जीवन का शाश्वत सत्य हैजो सभी को व्यथित करता है-
दर्द में आँसू निकलते हैंकाटो तो रक्त बहता हैठोकर लगे तो पीड़ा होती हैदगा मिले तो दिल तड़पता है।
 
       वहीं कवयित्री अतीत में लौटती है जाने कहाँ गई वो लड़की को खोजने के लिए। अतीत की किताब पन्ना-दर-पन्ना खुलती जाती है। खोज में बीते पलों को फिर से जीने की ललक मार्मिकता से अभिव्यक्त कर दी है-
उछलती-कूदतीजाने कहाँ गई वो लड़की वह शहर क्या गई गाँव की सारी ख़ुशबू भी लेती गई। जीवन की कठोरता इस पंक्ति में उतार दी गई-
- जाने कहाँ गईवो मानिनी मतवालीशायद शहर के पत्थरों में चुन दी गई
   
       कवयित्री ने जीवन के महत्त्वपूर्ण पड़ाव पर पिताजी को खोया हैजिससे पूरा परिवार अस्त-व्यस्त हुआ। इसकी अनुगूँज - ‘बाबा आओ देखो! तुम्हारी बिटिया रोती है में हूक की तरह सुनाई पड़ती है-
बूँद आँसू न बहेतुमने इतने जतन से पाले थे
जाना ही थातो साथ अपनेमुझे और अम्मा को भी ले जाते मेरे आधे आँसूअम्मा की आँखों से भी बहते हैं
जानती हूँआसमान सेन कोई परी आएगी, न तुम आओगे फिर भीमन में अब भीएक नन्ही बच्ची पलती है
  इन पंक्तियों में पीड़ा गलकर बह उठती है-
सपनों में तुम आते होजैसे कभी कहीं तुम गए नहीं
बाबा! जब भी आँसू बहते हैंमन छोटी बच्ची बन जाता है
 
       ‘आधा आसमान’ खण्ड के अन्तर्गत ‘मैं स्त्री हूँ’ कविता आज में घने असुरक्षा के वातावरण की कड़वाहट को बहुत गहनता और पीड़ा के साथ उजागर करती है। लगता है औरत का जन्म इस धरती पर दुःख झेलने के लिए ही हुआ है। वह दु:ख अनेक रूपों में एक टीस छोड़ जाता है कि सामाजिक पतन की कोई सीमा नहीं है। सड़े-गले कृत्य समाज को भी बदबूदार बनाने में पीछे नहीं-
मैं स्त्री हूँ जब चाहे भोगी जा सकती हूँमेरा शिकारहर वो पुरुष करता है /
जो मेरा सगा भी हो सकता हैऔर पराया भी / जिसे मेरी उम्र से कोई सरोकार नहीं /
चाहे मैंने अभी-अभी जन्म लिया हो या संसार से विदा होने की उम्र हो क्योंकि पौरुष की परिभाषा बदल चुकी है।  
 
       ‘भागलपुर दंगा (24.10.1989)' की पीड़ा भूलते नहीं बनती। आहत और हृदय को तार-तार करने वाली क्रूरता की इस इबारत को डॉ. जेन्नी शबनम जी ने काग़ज़ पर उतारते समय बहुत से सवाल भी छोड़ दिए हैंजो आज भी अनुत्तरित हैं-
बेटा-भैया-चाचा सारे रिश्तेजो बनते पीढ़ियों से पड़ोसीअपनों से कैसा डरथे बेख़ौफ़, और क़त्ल हो गई ज़िन्दगी।
- तीन दिन तीन युग-सा बीतापर न आयामसीहा कोई औरत बच्चे जवान बूढ़ेचढ़ गए सबधर्म के आगे बली।
 
       यद्यपि डॉ. जेन्नी शबनम की अधिक संख्य कविताएँ आत्मपरक हैंलेकिन सामाजिक सरोकार की उपेक्षा नहीं की गई है। जीवन की जटिलताओं और मन की तरंगों को आपने चित्रित किया है। कवयित्री की भाषा सधी हुई और प्रवाहमयी है। हर पंक्ति में एक-एक लम्हे की संवेदना की द्रवित करने वाली लय अंकुरित होती है। मैं आशा करता हूँ कि जेन्नी जी का यह काव्य-संग्रह सहृदय पाठकों के बीच अपना अपनत्व-भरा स्थान बनाएगा।
                                                                          
- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’  
दिसम्बर, 2019 (ब्रम्प्टन, कनाडा)
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26 comments:

  1. बहुत सुन्दर समीक्षा।
    बहुत-बहुत बधाई हो आपको।

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  2. बेहतरीन समीक्षा की है रामेश्वरम जी उन्हें मेरा प्रणाम , आपको ढेर सारी बधाइयां लम्हों के सफर के लिए , आपकी सारी रचनाओं को एक घर मिला पुस्तक के रूप में , जिसका नाम आपने लम्हों का सफ़र रक्खा , इस किताब में जीवन के हर रंग,लम्हों का जिक्र बखूबी किया है आपने, इस सुखद अनुभूति के लिए अनंत शुभकामनाएं आप मेरी ओर से स्वीकारे,नमन

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  3. बहुत ही सुन्दर समीक्षा , आपकी पुस्तक लम्हों के सफर के लिए आपको बहुत बहुत बधाई हो ,नमन

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०४-०-७२०२०) को 'नेह के स्रोत सूखे हुए हैं सभी'(चर्चा अंक-३७५२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  5. शबनम जी, किसी भी पुस्तक को जाँचने-परखने की जो क्षमता व दृष्टि आदरणीय गुरूदेव कम्बोज जी में है वो शायद वर्तमान में दौर में मौज़ूद किसी भी समीक्षक में नहीं है। आदरणीय रामेश्वर कम्बोज हिमांशु जी हमारे गुरू हैं। लघुकथा, आलेख आदि लिखने को हमें प्रेरित करते हैं।

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  6. बहुत ही उम्दा समीक्षा जिसमें जा तुझे इश्क को शीर्षक मुझे बहुत आकर्षित कर रहा है। आपको आपकी पुस्तक लम्हों के सफर के लिए ढेरों शुभकामनाएं एवं बहुत बहुत बधाई इस माह मेरे भी दो कहानी संग्रह प्रकाशित होने जा रहे है। आशा है आपका सहयोग बना रहेगा। 🙏🏼

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  7. काम्बोज जी द्वारा लम्हों का सफ़र की बहुत सुंदर समीक्षा।आपकी कविताएँ पढ़ते ही मन के भीतर गहरे में उतर जाती हैं।जीवन की अनुभूतियों को संवेदना की स्याही में डुबो डुबो कर लिँखी हैं।काम्बोज जी और आपको बहुत बहुत बधाई.

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  8. बढ़िया समीक्षा
    👍👍

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  9. धन्यवाद बहन। फ़ोटो से सोनीपत वाले घर की याद आ गई।

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  10. बहुत ही सुंदर समीक्षा ।... पुस्तक और आपकी कविताओं के मर्म को लिखा है ... आपको बहुत बहुत बधाई ...

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  11. लम्हों का सफ़र"की समीक्षा पढ़ने और जेन्नी जी को समझने के बाद लगा कि कवयित्री जेन्नी शबनम जी की कविताओं ने संवेदनशीलता को संजोकर रखी हैं।इन्हें इनकी संवेदना को किसी क्षण की तल्ख हक़ीक़त कुरेद जाती है और कभी वह अपनी संवेदना के सहारे समकालीन ज़िन्दगी के किसी एक आयाम का लेखा-जोखा करने लगता है। कविताएं ज़िन्दगी के प्रत्येक क्षण के आमने-सामने हैं। कई क्षणों के अलग-अलग बिम्ब अथवा मनःस्थितियाँ आकार ग्रहण कर संवेग की संश्लिष्टता की रीढ़ बन जाती है। कविताएं व्यापक मानव-बोध का साफ-सुथरा आईना हैं जिसमें प्रेम की पीड़ा का दर्द, युग के भटकाव की अनुभूति तथा नारी की संवेदना उसकी भावुकता का रेखांकन साफ दिखता है। कविता में जीवन का सही एहसास है। इसका सौंदर्य इसलिए और बढ़ जाता है कि स्थिति से जूझती हुई मनस्थिति का सांकेतिक व्यौरा पूरी कविता में है तथा इसमें अनुभूत्यात्मक सच्चाई है और सहजता का आकर्षण है । बधाई और मेरी शुभकामनाएं हैं।

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  12. SATISHRAJ PUSHKARANA
    Mon, 6 Jul, 17:16 (5 days ago)
    to me

    साझा संसार की समीक्षा पढ़ी. उद्धृत कविताओं से मैंने सहज़ ही अनुमान लगा लिया की प्रिय कम्बोज जी ने मात्र रिश्ते नहीं निभाए हैं पुस्तक के साथ पूरा पूरा न्याय किया है. समीक्षा बार बार पुस्तक पढ़ने हेतु उकसाती है. वस्तुतः यही समीक्षा एवं पुस्तक की विशेषता है.
    शबनम जी आप एवं कम्बोज जी दोनों बधाई के पात्र हैं.

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  13. 1 – 18 of 18

    Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

    बहुत सुन्दर समीक्षा।
    बहुत-बहुत बधाई हो आपको।

    July 2, 2020 at 5:25 PM Delete
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    शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री जी.

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  14. Blogger Jyoti Singh said...

    बेहतरीन समीक्षा की है रामेश्वरम जी उन्हें मेरा प्रणाम , आपको ढेर सारी बधाइयां लम्हों के सफर के लिए , आपकी सारी रचनाओं को एक घर मिला पुस्तक के रूप में , जिसका नाम आपने लम्हों का सफ़र रक्खा , इस किताब में जीवन के हर रंग,लम्हों का जिक्र बखूबी किया है आपने, इस सुखद अनुभूति के लिए अनंत शुभकामनाएं आप मेरी ओर से स्वीकारे,नमन

    July 2, 2020 at 11:54 PM Delete
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    आपका हृदय से धन्यवाद ज्योति जी. कितना सही कहा मेरी रचनाओं को एक घर मिला है पुस्तक के रूप में. आभार!

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  15. Blogger Jyoti Singh said...

    बहुत ही सुन्दर समीक्षा , आपकी पुस्तक लम्हों के सफर के लिए आपको बहुत बहुत बधाई हो ,नमन

    July 3, 2020 at 5:49 PM Delete
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    बहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी.

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  16. Blogger अनीता सैनी said...

    जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०४-०-७२०२०) को 'नेह के स्रोत सूखे हुए हैं सभी'(चर्चा अंक-३७५२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    July 3, 2020 at 6:01 PM Delete
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    हार्दिक धन्यवाद अनीता जी.

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  17. Blogger MahavirUttranchali said...

    शबनम जी, किसी भी पुस्तक को जाँचने-परखने की जो क्षमता व दृष्टि आदरणीय गुरूदेव कम्बोज जी में है वो शायद वर्तमान में दौर में मौज़ूद किसी भी समीक्षक में नहीं है। आदरणीय रामेश्वर कम्बोज हिमांशु जी हमारे गुरू हैं। लघुकथा, आलेख आदि लिखने को हमें प्रेरित करते हैं।

    July 4, 2020 at 6:15 PM Delete
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    आदरणीय काम्बोज भाई की यही तो विशेषता है. वे गुरु की तरह न सिर्फ दिशा निर्देश देते हैं बल्कि अपनों की तरह प्रेरित और उत्साहित भी करते हैं. उनके द्वारा की गई समीक्षा मेरे और मेरी पुस्तक के लिए बहुत मूल्यवान है. आपका बहुत बहुत आभार महावीर जी.

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  18. Blogger Pallavi saxena said...

    बहुत ही उम्दा समीक्षा जिसमें जा तुझे इश्क को शीर्षक मुझे बहुत आकर्षित कर रहा है। आपको आपकी पुस्तक लम्हों के सफर के लिए ढेरों शुभकामनाएं एवं बहुत बहुत बधाई इस माह मेरे भी दो कहानी संग्रह प्रकाशित होने जा रहे है। आशा है आपका सहयोग बना रहेगा। 🙏🏼

    July 4, 2020 at 7:05 PM Delete
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    बहुत धन्यवाद पल्लवी जी. कहानी संग्रह के लिए बहुत बहुत बधाई पल्लवी जी.

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  19. Blogger Sudershan Ratnakar said...

    काम्बोज जी द्वारा लम्हों का सफ़र की बहुत सुंदर समीक्षा।आपकी कविताएँ पढ़ते ही मन के भीतर गहरे में उतर जाती हैं।जीवन की अनुभूतियों को संवेदना की स्याही में डुबो डुबो कर लिँखी हैं।काम्बोज जी और आपको बहुत बहुत बधाई.

    July 4, 2020 at 7:42 PM Delete
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    मेरी रचनाओं को स्नेह देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार रत्नाकर जी.

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  20. Blogger राजीव तनेजा said...

    बढ़िया समीक्षा
    👍👍

    July 4, 2020 at 8:57 PM Delete
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    धन्यवाद राजीव जी.

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  21. Blogger सहज साहित्य said...

    धन्यवाद बहन। फ़ोटो से सोनीपत वाले घर की याद आ गई।

    July 5, 2020 at 5:58 PM Delete
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    जी भैया, सोनीपत वाले घर की तस्वीर है. मुझे और मेरी रचनाओं को सदा आपने बहुत स्नेह और आशीष दिया है. आपका सहयोग न मिलता तो यह पुस्तक प्रकाशित न हो पाती. आपने इतनी सुन्दर समीक्षा की है कि मुझे लगा कि जो मेरी पुस्तक न पढ़ सकें हों वे आपके द्वारा की हुई समीक्षा यहाँ पढ़ लें तो बेहद ख़ुशी होगी. आपका बहुत बहुत आभार काम्बोज भाई.

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  22. Blogger राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

    सुन्दर समीक्षा

    July 6, 2020 at 10:39 AM Delete
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    धन्यवाद कुमारेन्द्र जी.

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  23. Blogger दिगम्बर नासवा said...

    बहुत ही सुंदर समीक्षा ।... पुस्तक और आपकी कविताओं के मर्म को लिखा है ... आपको बहुत बहुत बधाई ...

    July 7, 2020 at 9:02 AM Delete
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    धन्यवाद दिगंबर जी.

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  24. Blogger दयानन्द जायसवाल said...

    लम्हों का सफ़र"की समीक्षा पढ़ने और जेन्नी जी को समझने के बाद लगा कि कवयित्री जेन्नी शबनम जी की कविताओं ने संवेदनशीलता को संजोकर रखी हैं।इन्हें इनकी संवेदना को किसी क्षण की तल्ख हक़ीक़त कुरेद जाती है और कभी वह अपनी संवेदना के सहारे समकालीन ज़िन्दगी के किसी एक आयाम का लेखा-जोखा करने लगता है। कविताएं ज़िन्दगी के प्रत्येक क्षण के आमने-सामने हैं। कई क्षणों के अलग-अलग बिम्ब अथवा मनःस्थितियाँ आकार ग्रहण कर संवेग की संश्लिष्टता की रीढ़ बन जाती है। कविताएं व्यापक मानव-बोध का साफ-सुथरा आईना हैं जिसमें प्रेम की पीड़ा का दर्द, युग के भटकाव की अनुभूति तथा नारी की संवेदना उसकी भावुकता का रेखांकन साफ दिखता है। कविता में जीवन का सही एहसास है। इसका सौंदर्य इसलिए और बढ़ जाता है कि स्थिति से जूझती हुई मनस्थिति का सांकेतिक व्यौरा पूरी कविता में है तथा इसमें अनुभूत्यात्मक सच्चाई है और सहजता का आकर्षण है । बधाई और मेरी शुभकामनाएं हैं।

    July 8, 2020 at 6:47 AM Delete
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    आदरणीय जायसवाल जी, आपका हार्दिक धन्यवाद. आपने मेरी पुस्तक पढी है, यह मेरे लिए अत्यंत ख़ुशी की बात है. मेरी लेखनी के मर्म और मेरी भावनाओं को आपने समझा और इतनी प्रेरक प्रतिक्रिया दी, मैं हृदय से आभारी हूँ.

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