Monday, April 6, 2020

72. क़ातिल कोरोना का क़हर

भारत तथा विश्व की वर्तमान परिस्थिति पर ध्यान दें, तो ऐसा लग रहा है मानो प्रकृति हमें चेतावनी दे रही है कि बहुत हुआ, अब तो चेत जाओ, वापस लौट जाओ अपनी-अपनी जड़ों की तरफ़, जिससे प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर एक सुन्दर दुनिया निर्मित हो सके सिर्फ़ भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व आधुनिकता की दौड़ में इस तरह उलझ चुका है कि थोड़ी देर रुककर चिन्तन, मनन, आत्मविश्लेषण करने को तैयार नहीं। अगर ज़रा देर रुके तो शेष दुनिया न जाने कितनी आगे निकल जाएगी, कितना कुछ छूट जाएगा, जाने कितना नुक़सान हो जाएगा। पैसा, पद, प्रतिष्ठा, पहचान, पहुँच आदि सफलता के नए मानदण्ड बन गए हैं। सफल होना तभी सम्भव है, जब प्रतिस्पर्धा की दौड़ में ख़ुद को सबसे आगे रखा जाए। प्रतिस्पर्धा में जीतना ही आज के समय में दुनिया जीतने का मंत्र है।  

जीव-जन्तु तो सदैव अपनी प्रकृति के साथ जीवन जीते हैं, भले आज के समय में उन्हें हम मनुष्यों ने प्रकृति से दूर कर दिया है। परन्तु मनुष्य प्रकृति के विरुद्ध प्रकृति को हथियार बनाकर विजयी होना चाहता है। इस कारण एक तरफ़ प्रकृति का दोहन हो रहा है, तो दूसरी तरफ़ हम प्रकृति से दूर होते चले जा रहे हैं। हम भूल गए हैं कि मनुष्य हो या कोई भी जीव-जन्तु, सभी प्रकृति के अंग हैं और प्रकृति पर निर्भर हैं। प्राकृतिक संसाधन हमें प्रचुर मात्रा में मिला है; लेकिन हमारी प्रवृत्ति ने हमें आज विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। हमारी जीवन शैली ऐसी हो चुकी है कि हम सिर्फ़ एक दिन भी प्रकृति के साथ नहीं गुज़ार सकते हैं। अप्राकृतिक जीवनचर्या के कारण हमारी शारीरिक क्षमताएँ धीरे-धीरे कम हो रही हैं। हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित हो गई है, जिससे रोग प्रतिरोधक शक्ति भी कम हो गई है।  

सभी जानते हैं कि हानिकारक जीवाणु (बैक्टीरिया) हो या कोई भी विषाणु (वायरस) इसका प्रसार संक्रमण के माध्यम से होता है। कोरोना वायरस के संक्रमण से आज पूरी दुनिया संकट में है और असहाय महसूस कर रही है। अज्ञानता, मूढ़ता, भय, लापरवाही, अतार्किकता, असंवेदनशीलता आदि के कारण जिस तरह कोरोना का संक्रमण बढ़ता जा रहा है, निःसन्देह यह न सिर्फ़ चिन्ता का विषय है, बल्कि हमारी विफलता भी है। कोरोना से मौत का आँकड़ा प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। टी.वी. और अख़बार के समाचार के मुताबिक़ सिर्फ़ चीन, जहाँ से कोरोना के संक्रमण की शुरुआत हुई थी, वहाँ स्थिति नियंत्रण में है। शेष अन्य देशों की स्थिति गम्भीर होती जा रही है।  

आम जनता को कोरोना की भयावहता का अनुमान शुरू में नहीं हुआ था।मार्च 22 को जब एक दिन का जनता कर्फ़्यू लगा और ताली, थाली, घंटी आदि बजाने का आह्वान प्रधानमंत्री ने किया, तब इसका भय लोगों में बढ़ा काफ़ी सारे लोगों के लिए ताली-थाली-घंटी बजाना मनोरंजन का अवसर रहा वे अपने-अपने घरों से निकलकर मानो उत्सव मनाने लगे; यों जैसे ताली-थाली-घंटी पीटने से कोरोना की मृत्यु हो रही हो, या यह कोई जादू-टोना या टोटका हो, जिससे कोरोना समाप्त हो जाएगा। अप्रैल 5 को जब प्रधानमंत्री ने रात के 9 बजे घर की बत्ती बुझाकर दीया जलाने को कहा, तो लोगों ने इसे दीपोत्सव बना दिया। दीये जलाए गए, आतिशबाज़ी भी ख़ूब हुई, मोदी जी के लिए ख़ूब नारे लगे। यों लग रहा था मानो यह कोई त्योहार हो। अगर प्रधानमंत्री एक दीया जलाकर दो मिनट मौन रखने को कहते, जो लोग इस महामारी में मारे गए हैं, तो शायद लोग इसे गम्भीरता से लेते और भीड़ इकट्ठी कर न पटाखे फोड़ते न दीवाली मनाते। हम भारतीय इतने असंवेदनशील कैसे होते जा रहे हैं? कोरोना कोई एक राक्षस नहीं है जिसे भीड़ इकट्ठी कर अग्नि से डराकर ललकारा जाए और वह मनुष्यों की एकजुटता और उद्घोष से डर कर भाग जाए।  

प्रधानमंत्री द्वारा लॉकडाउन की घोषणा किए जाने के बाद जिस तरह अफ़वाहों का बाज़ार गर्म हुआ, उससे कोरोना का संक्रमण और फैल गया। अधिकतर लोग बाज़ार से महीनों का सामान घर में भरने लगे। जिससे बाज़ार में ज़रूरी सामानों की क़िल्लत हो गई और दुकानों में भीड़ इकट्ठी होने लगी। चारों तरफ़ अफ़रा-तफ़री का माहौल हो गया। क्वारंटीन, आइसोलेशन, सोशल डिसटेनसिंग, घर से बाहर न निकलना आदि को लेकर ढेरों भ्रांतियाँ फैलने लगीं। लोग भय और आशंका से पलायन करने लगे; जिससे ट्रेन, बस इत्यादि में संक्रमण और फैलने लगा।  

जनवरी 2020 के अंत में जब भारत में पहला कोरोना का मामला आया तभी सरकार को ठोस क़दम उठाना चाहिए था। विदेशों से जितने भी लोग आ रहे थे, उसी समय उन्हें क्वारंटीन करना चाहिए था। देश में जितने भी समारोह, सम्मलेन, सभा का आयोजन जिसमें भीड़ इकट्ठी होनी थी, तुरन्त बंद कर देना चाहिए था। कोरोना का मामला आने के बाद भी ढेरों सरकारी कार्यक्रम हुए जिनमें देश-विदेश से लोगों ने शिरकत की कहीं भी किसी तरह की भीड़ इकत्रित होने पर पाबन्दी नहीं लगाई गई। लगभग दो महीने से थोड़े कम दिन में जब कोरोना के संक्रमण का फैलाव बहुत ज़्यादा हुआ और मौत का सिलसिला शुरू हुआ तब सरकार जाग्रत हुई। इतने विलम्ब से लॉकडाउन के निर्णय का कारण समझ से परे है; क्योंकि वास्तविक स्थिति का अंदाज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय के पास रहा ही होगा। अगर स्वास्थ्य मंत्रालय इसकी भयावहता से अनभिज्ञ था, तो यह भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश के लिए शर्म की बात है।  

लॉकडाउन होने के बाद दिल्ली से पलायन करने के लिए हज़ारों की संख्या में लोग एकत्रित हो गए। इनमें दूसरे राज्यों से आए दिहाड़ी मज़दूरों की संख्या ज़्यादा थी। निःसन्देह अफ़वाहों और सरकार के प्रति अविश्वसनीयता के कारण वे सभी ऐसा करने के लिए विवश हुए। न काम है, न अनाज है, न पैसा है, न घर है; ऐसे में कोई क्या करे? सरकार खाना देगी यह गारंटी कौन किसे दे? गरीबों की सुविधा का ध्यान कभी किसी सरकार ने रखा ही कब? हालाँकि पहली बार यह हुआ है कि दिल्ली में सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की स्थिति आश्चर्यजनक रूप से बहुत अच्छी हुई है। रैनबसेरा, सस्ता खाना आदि का प्रबन्ध उत्तम हुआ है। फिर भी राजनीति, नेता और सरकार पर विश्वास शीघ्र नहीं होता है। ऐसे में उन्हें यही विकल्प सूझा होगा कि किसी तरह अपने-अपने घर चले जाएँ, ताकि कम-से-कम ज़िन्दा तो रह सकें। इनमें सभी जाति-धर्म के लोग शामिल थे। लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद सरकार अपने ख़र्च पर सुरक्षित तरीक़े से सभी को अपने-अपने गाँव या शहर पहुँचा देती, तो समस्याएँ इतनी विकराल रूप नहीं लेतीं। शेल्टर में रहकर कोई कितने दिन समय काट सकता है?  

निज़ामुद्दीन स्थित मरकज़ में तब्लीग़ी जमात के लोगों की गतिविधियाँ बेहद शर्मनाक हैं। लॉकडाउन के बावजूद वे सभी इतनी बड़ी संख्या में साथ रह रहे थे। उन्हें जब जबरन जाँच के लिए ले जाया जा रहा था तब और अस्पताल में जाने के बाद जिस तरह की घिनौनी हरकत वे कर रहे हैं, उन्हें कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए। सरकार द्वारा निवेदन और चेतावनी के बावजूद निज़ामुद्दीन के अलावा देश में कई स्थानों पर अब भी भीड़ इकट्ठी हो रही है। कई जगह स्वास्थ्यकर्मियों एवं पुलिस के साथ बदसलूकी की जा रही है।कई मामले ऐसे हो रहे हैं जब संक्रमित व्यक्तियों को आइसोलेशन में रखा गया, तो वे भाग गए या ख़ुद को ख़त्म कर लेने की धमकी दे रहे हैं। कुछ लोग कोई-न-कोई जुगाड़ लगाकर लॉकडाउन के बावजूद घर से बहार निकल रहे हैं। जबकि सभी को मालूम है कि जितना ज़्यादा सोशल डिसटेनसिंग रहेगा संक्रमण से बचाव होगा। ऐसे लोग जान-बूझकर जनता, सरकारी व्यवस्था और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए परेशानी पैदा कर रहे हैं। लॉकडाउन से कोरोना के रफ़्तार में जो कमी आती, उसे इनलोगों ने न सिर्फ़ रोक दिया है बल्कि ख़तरा को बहुत ज़्यादा बढ़ा दिया है। समाज की भलाई किसी भी धर्म-संप्रदाय से बढ़कर है

राजनीति और सियासत का खेल हर हाल में जारी रहता है, भले देश में आपातकाल की स्थिति हो। एक दिन अख़बार में फोटो के साथ ख़बर छपी कि दिल्ली सरकार एक लड्डू, ज़रा-सा अचार के साथ सूखी पूड़ी बाँट रही है। अब देश में महा-समारोह तो नहीं चल रहा कि पकवान बना-बनाकर सरकार परोसेगी। यहाँ अभी किसी तरह ज़िन्दा और सुरक्षित रहने का प्रश्न है। ऐसे हालात में दो वक़्त दो सूखी रोटी और नमक या खिचड़ी मिल जाए, तो भी काम चलाया जा सकता है। अगर अच्छा भोजन उपलब्ध हो सके, तो इससे बढ़कर ख़ुशी की क्या बात होगी। अफ़वाह यह भी फैला कि खाना मिल ही नहीं रहा है, भूख से लोग मर रहे हैं। जबकि दिल्ली सरकार, केन्द्र सरकार, ढेरों संस्थाएँ, सामाजिक कार्यकर्ता आदि इस काम में पूरी तन्मयता से लगे हुए हैं।  

देश और दुनिया के हालात से सबक लेकर हमें अपनी जीवन शैली में सुधार करना होगा। खान-पान हो या अन्य आदतें, प्रकृति के नज़दीक जाकर प्रकृति के द्वारा ख़ुद को सुधारना होगा। भले कोरोना चमगादड़ से फैला है, लेकिन कई सारे जानवरों से दूसरे प्रकार का संक्रमण फैलता है। अतः मांसाहार को त्यागकर शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए। योग, व्यायाम तथा उचित दैनिक दिनचर्या का पालन करना चाहिए, ताकि हमारे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़े। संचार माध्यमों के इस्तेमाल के साथ आपसी रिश्ते को मज़बूती से थामे रखा जाए, ताकि कहीं कोई अवसाद में न जाए।  

कोरोना के क़हर से बचाव के लिए हम सभी को स्वयं का और सरकार का सहयोग देना होगा। सिर्फ़ सरकार पर दोषारोपण कहीं से जायज़ नहीं है। हम देशवासियों को अपना कर्त्तव्य समझना चाहिए। जिन्हें संक्रमण की थोड़ी भी आशंका हो, उन्हें स्वयं आइसोलेट हो जाना चाहिए या क्वारंटीन के लिए चला जाना चाहिए। इस राष्ट्रीय और वैश्विक आपदा की घड़ी में अपने-अपने घरों में रहकर हम आवश्यक और मनोवांछित कार्य कर सकते हैं।मनोरंजन के ढेरों साधन घर पर उपलब्ध हैं, ऐसे में बोरियत का सवाल ही नहीं। एकान्तवास से अच्छा और कोई अवकाश नहीं होता, जब हम चिन्तन-मनन कर सकते हैं और कार्य योजना बना सकते हैं। आत्मावलोकन, आत्मविश्लेषण और कुछ नया सीखने का यह बहुत अच्छा मौक़ा है। यों कोरोना के कारण मन अशांत और ख़ौफ़ में है; परन्तु इससे कोरोना का ख़तरा बढ़ेगा, कम नहीं होगा। बेहतर है स्वयं, परिवार, समाज, देश और विश्व के उत्थान के लिए हम इस समय का सदुपयोग करें।  

- जेन्नी शबनम (6.4.2020)
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26 comments:

  1. प्रकृति की ओर वापस आना होगा । शासन और सत्ता के साथ-साथ आम जनता को भी अपने उत्तरदायित्व समझने चाहिये । हर काम के लिए कोड़ा ही चले ज़रूरी नहीं ।

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  2. बहुत बढ़िया आलेख, बधाईयां।

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  3. आपके द्वारा लिखे गए तथ्य काफी हद गक सही है। लेकिन इस सब का घड़ा केवल सरकार पर नही फोड़ा जा सकता। क्योंकि राजा घर घर जाकर नही देख सकता कि कौन क्या कर रहा है, कुछ ज़िम्मेदारी नागरिकों की भी होती है जो हमारे यहां के नागरिकों ने नही निभाई और ना आज निभा रहे है। मत भूलिए की आज मोदी जी के कारण ही इतनी सारी मौतों के बावजूद हम अब तक तीसरे चरण में नही आये है। 🙏🏼

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    1. सच कहा आपने ,हमें भी अपनी जिम्मेदारी हमेशा याद रखनी चाहिए ये सबसे ज्यादा जरूरी है

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  4. चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने और अन्य राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं को चोट देने के उद्देश्य से कोरोना नामक जैविक हथियार का निर्माण अपनी वुहान स्थित प्रयोगशाला में किया। ऐसे बहुत से नए घातक प्रयोगों पर वह कार्य कर रहा है। कहावत है न, जो दूसरों के लिए गड्डा खोदता है। वो खुद भी उसमे गिरता है। कहीं न कहीं चीन की अर्थव्यवस्था भी कोरोना से प्रभावित होगी। पिछले दो माह में लगभग २ करोड़ विदेशियों ने चीन छोड़ दिया है। जिनकी चीन की उन्नति में लगभग २० प्रतिशत भागीदारी थी। हमें यह याद रखना होगा। जो वायरस या बीमारी मृत्यलोक में पैर पसार लेती है। वह आसानी से नष्ट नहीं होती। जब तक इसकी दवा तैयार नहीं हो जाती। जब तक अंतिम व्यक्ति तक कोरोना का इलाज नहीं पहुँचता; यह विश्व में कोहराम मचाता रहेगा। आपका आलेख अत्यन्त उत्कृष्ट, ज्ञानवर्धक व परिपक्वता लिए है। अंत में अपनी एक कुण्डलिया से अपनी बात को विराम देना चाहूंगा :—

    कोरोना के ख़ौफ़ से, जीव-जन्तु भयभीत
    चीन की खुराफ़ात से, उत्पन्न मृत्यु गीत
    उत्पन्न मृत्यु गीत, कौन उसको समझाये
    उसके नए प्रयोग, विश्व पे विपदा लाये
    महावीर कविराय, मृत्यु का क्या अब रोना
    कुदरत से खिलवाड़, वायरस है कोरोना

    आपका ही
    महावीर उत्तरांचली

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  5. सार्थक और सधा हुआ लेख । -रामेश्वर कम्बोज

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  6. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (08-04-2020) को      "मातृभू को शीश नवायें"  ( चर्चा अंक-3665)    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. अक्षरशः सत्य लिखा है , हमसे चूक हो गई लेकिन अब भी सभँलने का समय है । प्रधानमंत्री जी और राज्यों के मुख्यमंत्री जी सिर्फ आदेश पारित कर सकते हैं लेकिन अगर युवा पीढी उद्दंड होकर न मानने में अपनी शान समझती है तो वह उनकी अज्ञानता ही है ।

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  8. जेन्नी जी,आपके ब्लॉग पर क़ातिल कोरोना का क़हर आलेख पढ़ा ।आपने सही लिखा है। शुरू में कुछ कमियाँ सरकार की ओर से रही हैं और अब कुछ लोगों द्वारा एवं शरारती तत्वों द्वारा हो रही हैं । बहुत सुंदर, भाषा पर अच्छी पकड़ है आपकी।

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  9. दुनिया की वर्तमान भयावह परिस्थिति को उजागर करता हुआ एक सार्थक लेख है, मेरी बधाई व शुभकामनाएँ

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  10. सही और सार्थक आलेख। ऐसे समय सरकार पर ही निर्भर न रहते हुए सभी को इससे निपटने के प्रयास करने चाहिए। यह बुरा वक्त चला जायेगा परंतु पीछे बहुत से प्रश्न भी छोड़ जाएगा।

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  11. सामयिक और संतुलित आलेख

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  12. बढ़िया लेख निष्पक्ष आईने से ।

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  13. Blogger बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

    प्रकृति की ओर वापस आना होगा । शासन और सत्ता के साथ-साथ आम जनता को भी अपने उत्तरदायित्व समझने चाहिये । हर काम के लिए कोड़ा ही चले ज़रूरी नहीं ।

    April 7, 2020 at 12:16 AM Delete
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    कौशलेन्द्र जी,
    निश्चित ही शासन सत्ता के साथ आम जनता को अपना उत्तरदायित्व समझना होगा और कर्त्तव्य का पालन करना होगा. तभी कुछ भी संभव है. प्रतिक्रिया के लिए आभार.

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  14. Blogger रवीन्द्र प्रभात said...

    बहुत बढ़िया आलेख, बधाईयां।

    April 7, 2020 at 9:01 AM Delete
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    हार्दिक आभार रवीन्द्र जी.

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  15. Blogger Pallavi saxena said...

    आपके द्वारा लिखे गए तथ्य काफी हद गक सही है। लेकिन इस सब का घड़ा केवल सरकार पर नही फोड़ा जा सकता। क्योंकि राजा घर घर जाकर नही देख सकता कि कौन क्या कर रहा है, कुछ ज़िम्मेदारी नागरिकों की भी होती है जो हमारे यहां के नागरिकों ने नही निभाई और ना आज निभा रहे है। मत भूलिए की आज मोदी जी के कारण ही इतनी सारी मौतों के बावजूद हम अब तक तीसरे चरण में नही आये है। 🙏🏼

    April 7, 2020 at 9:20 AM Delete
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    पल्लवी जी,
    यहाँ चूक तो दोनों से हुई है. सरकार देर से कदम उठाई और जनता है कि अब भी सुधर नहीं रही है. भीड़ इकट्ठी कर देश के लिए और मुसीबत खड़ी कर दे रही है. तीसरे चरण में न जाए यही कामना रहेगी. प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद.

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  16. Blogger MahavirUttranchali said...


    चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने और अन्य राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं को चोट देने के उद्देश्य से कोरोना नामक जैविक हथियार का निर्माण अपनी वुहान स्थित प्रयोगशाला में किया। ऐसे बहुत से नए घातक प्रयोगों पर वह कार्य कर रहा है। कहावत है न, जो दूसरों के लिए गड्डा खोदता है। वो खुद भी उसमे गिरता है। कहीं न कहीं चीन की अर्थव्यवस्था भी कोरोना से प्रभावित होगी। पिछले दो माह में लगभग २ करोड़ विदेशियों ने चीन छोड़ दिया है। जिनकी चीन की उन्नति में लगभग २० प्रतिशत भागीदारी थी। हमें यह याद रखना होगा। जो वायरस या बीमारी मृत्यलोक में पैर पसार लेती है। वह आसानी से नष्ट नहीं होती। जब तक इसकी दवा तैयार नहीं हो जाती। जब तक अंतिम व्यक्ति तक कोरोना का इलाज नहीं पहुँचता; यह विश्व में कोहराम मचाता रहेगा। आपका आलेख अत्यन्त उत्कृष्ट, ज्ञानवर्धक व परिपक्वता लिए है। अंत में अपनी एक कुण्डलिया से अपनी बात को विराम देना चाहूंगा :—

    कोरोना के ख़ौफ़ से, जीव-जन्तु भयभीत
    चीन की खुराफ़ात से, उत्पन्न मृत्यु गीत
    उत्पन्न मृत्यु गीत, कौन उसको समझाये
    उसके नए प्रयोग, विश्व पे विपदा लाये
    महावीर कविराय, मृत्यु का क्या अब रोना
    कुदरत से खिलवाड़, वायरस है कोरोना

    आपका ही
    महावीर उत्तरांचली

    April 7, 2020 at 11:05 AM Delete
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    महावीर जी,
    सही कहा आपने कि जो दूसरों के लिए गड्ढे खोदता है वो खुद भी उसमें गिरता है. चीन हो या अमेरिका सब का एक ही हाल है. कोरोना का पुख्ता इलाज़ शीघ्र संभव हो यही कामना है. अभी तो लगभग सभी देश इस महामारी से लड़ने में एक जुट हो रहे हैं फिर भी इसका पुख्ता इलाज़ जल्दी हो पाए यह संभव नहीं. जल्दी स्थिति नियंत्रण में हो, यही कामना है. हम सभी को पुनः प्रकृति के करीब जाना होगा और उसे बचने के लिए प्रयास करने होंगे तभी इंसान भी बच सकता है.
    आपकी कुण्डलियाँ सामयिक और संदेशप्रद है. कुदरत से खिलवाड़ का ही नतीजा है ऐसी महामारी.
    सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए आभार.

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  17. Blogger सहज साहित्य said...

    सार्थक और सधा हुआ लेख । -रामेश्वर कम्बोज

    April 7, 2020 at 12:56 PM Delete
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    काम्बोज भाई,
    आपकी टिप्पणी से लेखन को बल मिलता है. प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.

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  18. Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (08-04-2020) को "मातृभू को शीश नवायें" ( चर्चा अंक-3665) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    April 7, 2020 at 12:59 PM Delete
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    चर्चा मंच पर पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद शास्त्री जी.

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  19. Blogger रेखा श्रीवास्तव said...

    अक्षरशः सत्य लिखा है , हमसे चूक हो गई लेकिन अब भी सभँलने का समय है । प्रधानमंत्री जी और राज्यों के मुख्यमंत्री जी सिर्फ आदेश पारित कर सकते हैं लेकिन अगर युवा पीढी उद्दंड होकर न मानने में अपनी शान समझती है तो वह उनकी अज्ञानता ही है ।

    April 7, 2020 at 1:44 PM Delete
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    रेखा जी,
    चुक तो हो गई थी लेकिन जिस तरह सरकार, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस आदि अपने कर्तव्य का निर्वाहन कर रही है, हम शीघ्र ही इस पर विजय हासिल करेंगे. बस कुछ लोग न सिर्फ उद्दंड हैं बल्कि अपराध भी कर रहे हैं, अगर ये लोग सुधर जाए तो समस्या इतनी विकराल रूप न ले.
    प्रतिक्रिया के लिए आभार.

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  20. Blogger Sudershan Ratnakar said...

    जेन्नी जी,आपके ब्लॉग पर क़ातिल कोरोना का क़हर आलेख पढ़ा ।आपने सही लिखा है। शुरू में कुछ कमियाँ सरकार की ओर से रही हैं और अब कुछ लोगों द्वारा एवं शरारती तत्वों द्वारा हो रही हैं । बहुत सुंदर, भाषा पर अच्छी पकड़ है आपकी।

    April 7, 2020 at 10:59 PM Delete
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    आदरणीया रत्नाकर जी,
    आपकी प्रतिक्रिया से बहुत हौसला मिलता है. आज पूरी दुनिया में बहुत बड़ी चूक हुई है उसी का खामियाजा है कि यह महामारी का रूप ले चुका है. सरकार से तो देर हुई थी लेकिन अब जनता में से कुछलोग इसे बढ़ा रहे हैं.
    सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत आभार.

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  21. Blogger प्रियंका गुप्ता said...

    दुनिया की वर्तमान भयावह परिस्थिति को उजागर करता हुआ एक सार्थक लेख है, मेरी बधाई व शुभकामनाएँ

    April 8, 2020 at 9:20 AM Delete
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    प्रियंका जी,
    आपकी प्रतिक्रिया का सदैव इंतज़ार रहता है. बहुत शुक्रिया.

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  22. Blogger Kishor se milen said...

    सही और सार्थक आलेख। ऐसे समय सरकार पर ही निर्भर न रहते हुए सभी को इससे निपटने के प्रयास करने चाहिए। यह बुरा वक्त चला जायेगा परंतु पीछे बहुत से प्रश्न भी छोड़ जाएगा।

    April 8, 2020 at 4:59 PM Delete
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    किशोर जी,
    सरकार तो अपना काम कर ही रही है. निश्चित ही हम सभी को इससे निपटने में अपनी तरफ से योगदान देना होगा. और वह है कि हम सभी घरों में रहे और सुरक्षा के सारे इंतजाम जो सरकार कर रही है उसमें पूर्ण सहयोग दें. इस दौर के गुजरने के बाद कई पीढ़ियों तक इसकी भयावहता का असर रहेगा.
    टिप्पणी के लिए बहुत धन्यवाद.

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  23. Blogger अजय कुमार झा said...

    सच कहा आपने ,हमें भी अपनी जिम्मेदारी हमेशा याद रखनी चाहिए ये सबसे ज्यादा जरूरी है

    April 9, 2020 at 3:45 PM Delete

    Blogger अजय कुमार झा said...

    सामयिक और संतुलित आलेख

    April 9, 2020 at 3:46 PM Delete
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    अजय जी,
    सबसे पहले तो आपका बहुत बहुत धन्यवाद आपके यहाँ आने और दो बार सार्थक प्रतिक्रिया देने के लिए. सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए बहुत शुक्रिया.

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  24. Blogger G.N.SHAW said...

    बढ़िया लेख निष्पक्ष आईने से ।

    April 11, 2020 at 4:21 PM Delete
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    मेरे विचार से आपकी सहमति के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद जी. एन. शॉ जी.

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  25. कातिल कोरोना का कहर पढा़ ।आलेख सारगर्भित और पठनीय है ।सचमुच आमजन पर कहर बरपा रहा है । बचाव के लिए स्वयं सतर्क रहना पडे़गा ।
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    Narendra Kumar
    Wed, 8 Apr, 12:01 (5 days ago)
    to me
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    नरेन्द्र जी,
    मेल पर आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर अच्छा लगा. सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से धन्यवाद.

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