सुबह का व्यस्ततम समय, एक अनजाने नंबर से मोबाइल पर फ़ोन ''मे आई टॉक टू ...।'' मैंने कहा ''हाँ, बोलिए''! उसने कहा ''आई वांट टू डिस्कस ऐन इन्वेस्टमेंट प्ला न विथ यू।'' मैंने कहा माफ़ कीजिएगा मुझे नहीं चाहिए। उसकी ज़िद कि मैं न लूँ पर सुन तो लूँ। बहुत तहज़ीब से उसने कहा '''इफ यू फ्री देन आई विल एक्सप्लेन रिगार्डिंग सम इन्वेस्टमेंट।'' मैंने कहा ''बहुत धन्यवाद, ज़रूरत होगी तो मैं आपसे सम्पर्क करूँगी'', फिर उसका अधूरा वाक्य ''थैंक्स मैड s...।'' एक दिन घर के नंबर पर फ़ोन आया ''मे आई टॉक टू ...।'' मैंने कहा ''वह घर में नहीं है'', कोई आवश्यक काम हो तो बताएँ।" उसने कहा ''आई ओनली टॉक टू हिम बिकॉज़ दिस कॉल इज़ रिगार्डिंग हिज़ क्रेडिट कार्ड्स।'' मैंने दोबारा कॉल करने का वक़्त बता दिया।
बीते हिन्दी-पखवारे में ऐसे ही असमय मेरे लिए फ़ोन आया, सधा हुआ अँगरेज़ी लहजा ''में आई टॉक टू...।'' उस दिन किसी कारण से मेरा मन खिन्न था और किसी से बात करने की इच्छा नहीं थी। मैंने कहा ''...मैडम घर में नहीं हैं, आप शाम को 6 बजे फ़ोन कीजिए।'' उसने अँगरेज़ी में पूछा कि मैं कौन बोल रही हूँ। मैंने कहा ''साहब हम आपकी अँगरेज़ी नहीं समझते हैं, हम यहाँ काम करते हैं चौका-बर्तन, आपको ज़रूरी है तो मैडम के मोबाइल पर बात कर लीजिए, नहीं तो शाम को फ़ोन कीजिए।'' उसने कहा ''सॉरी, आई डिस्टर्ब यू।'' मुझे बेहद हँसी आई कि ये कैसे अँगरेज़ पैदा हुए हैं देश में जो एक शब्द हिन्दी नहीं बोल सकते। उनके सॉरी को कामवाली समझ रही होगी, उसे कैसे पता। कहना ही था तो ''क्षमा कीजिए'' या फिर ''ठीक है'' इतना तो बोल ही सकता था। अँगरेज़ी न समझने वाली के बताने पर भी वह अँगरेज़ी में ''सॉरी'' बोल रहा है।
अँगरेज़ी जैसे हर भारतीयों की भाषा बन गई हो। फ़ोन करने वाला कैसे यह उम्मीद कर सकता है कि फ़ोन उठाने वाले को अँगरज़ी समझ आएगी ही? कम-से-कम दिल्ली और अन्य हिन्दी भाषी प्रदेश में रहने वाला हर कोई हिन्दी बोलना जानता है। मुमकिन है प्राइवेट और कॉरपोरेट सेक्टर में तहज़ीब का मतलब अँगरेज़ी बन चुका हो। फिर भी यहाँ अब भी ऐसे भारतीय हैं, जो कम-से-कम घर में तो हिन्दी बोलते हैं। आज की शिक्षा पद्धति अँगरेज़ी हो गई है; परन्तु हिन्दी को जड़ से कभी भी उखाड़ा नहीं जा सकता है।
एक बार किसी बड़े रेस्तराँ में बच्चों के साथ खाना खाने गई, वेटर अँगरेज़ी में बोल रहा था। अमूमन हर रेस्तराँ में वेटर को अँगरेज़ी में बोलना होता है।मैं उससे हिन्दी में मेनू पूछ रही थी और वह अँगरेज़ी में जवाब दे रहा था।बेवज़ह कोई अँगरेज़ी बोलता है, तो मुझे बड़ा ग़ुस्सा आता है। मैंने उससे कहा क्या आप भरत से हैं या कहीं और से आए हैं? उसने अँगरेज़ी में कहा कि वह उत्तर प्रदेश से है। मैंने कहा कि फिर हिन्दी में जवाब क्यों नहीं दे रहे? उसने कहा ''सॉरी मैडम'' फिर आधी हिन्दी और आधी अँगरेज़ी में मुझे बताने लगा। मुझे उस पर नहीं ख़ुद पर ग़ुस्सा आया कि भारत जो अँगरेज़ी का ग़ुलाम बन चुका है, मैं हिन्दी बोले जाने की उम्मीद क्यों रखती हूँ।
एक बड़े प्रकाशक के पुस्तक विमोचन समारोह में गई, जहाँ बहुत सारी पुस्तकों का विमोचन होना था। इनमें एक कवयित्री जो पेशे से डॉक्टर थीं, के हिन्दी काव्य-संग्रह का विमोचन हुआ। पुस्तक के अनावरण के बाद उनसे कुछ कहने के लिए कहा गया। वे हिन्दी में कविता लिखती हैं, लेकिन अपना सारा वक्तव्य अँगरेज़ी में दिया। मुझे बेहद आश्चर्य व क्षोभ हुआ। बार-बार मेरे मन में आ रहा था कि उनसे इस बारे में कहूँ, पर मैंने कुछ कहा नहीं; परन्तु बेहद बुरा महसूस हुआ।
हिन्दी को लेकर एक और मेरा निजी अनुभव है, जो मुझे अपने हिन्दी भाषी होने के कारण पीछे कर गया। विवाहोपरान्त मैं दिल्ली आई तो सोचा कि मैं पी-एच.डी. कर लूँ। शान्तिनिकेतन में श्यामली खस्तगीर एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जिनके मैं बहुत नज़दीक थी। उन्होंने लेडी इरविन कॉलेज में किसी से (शायद प्रिंसिपल) मिलने के लिए कहा और पत्र भी दिया। मैं जब मिली तो वे बहुत ख़ुश हुईं। उन्होंने कहा कि यहाँ सारी पढ़ाई अँगरेज़ी माध्यम से होती है और शोध कार्य पूरी तरह अँगरेज़ी में करना होगा। चूँकि मेरी समस्त शिक्षा हिन्दी माध्यम से हुई है, अतः बहुत मुश्किल हो सकता है। मैंने कहा कि शोध-कार्य तो अँगरेज़ी में लिख लूँगी लेकिन मौखिक परीक्षा (Viva) अँगरेज़ी में नहीं दे सकूँगी; क्योंकि मैं धारा प्रवाह अँगरेज़ी नहीं बोल सकती। अंततः मैंने भागलपुर विश्वविद्यालय से शोध-कार्य किया जहाँ मौखिक परीक्षा हिन्दी में हुई।
अक्सर दिमाग में आता है कि आख़िर अँगरेज़ी की ग़ुलामी कब तक? क्या अब भी वक़्त नहीं आया कि अन्य देशों की भाँति हमारे देश की अपनी एक भाषा हो। अँगरेज़ी को महज़ अन्य विदेशी भाषा की तरह पढ़ाया जाए।निःसंदेह ऐसा होना बेहद कठिन होगा; लेकिन असम्भव नहीं। भारत सरकार निम्न 3 क़दम सख़्ती से उठाए, तो मुमकिन है हमारी हिन्दी देश की राज्य भाषा से राष्ट्र भाषा बन जाएगी और जन-जन तक लोकप्रिय हो जाएगी।
1.
देश के हर विद्यालय में हिन्दी भाषा को अनिवार्य कर दिया जाए। सभी राज्य की अपनी भाषा को द्वितीय भाषा कर दिया जाए। अँगरेज़ी कोई पढ़ना चाहे तो एक विषय की तरह पढ़ सकता है।
2.
जब नर्सरी की पढ़ाई शुरू होती है, तब से यह नियम लागू किया जाए, ताकि पहले से जो बच्चे अँगरेज़ी पढ़ रहे हैं, वे अपनी पढ़ाई पुराने तरीक़े से ही पूरी करें। नए बच्चे जब शुरुआत ऐसे करेंगे, तो कहीं से कोई दिक्कत नहीं आएगी।
3.
जिन विषयों की किताबें अँगरेज़ी में है, चाहे विज्ञान, मेडिकल, इंजिनीयरिंग, विधि या अन्य कोई भी विषय, सभी का हिन्दी अनुवाद करा दिया जाए। फिर रोज़गार में भी हिन्दी माध्यम वालों को कोई मुश्किल नहीं होगी।
13 साल लगेंगे पूरी शिक्षा पद्धति को बदलने में; लेकिन इससे हमारे देश की अपनी भाषा होगी और अँगरेज़ी की ग़ुलामी से मुक्ति। हिन्दी भाषी लोगों को नौकरी में कितना अपमान सहना पड़ता है, यह मैंने कई बार देखा है। न सिर्फ़ नौकरी में बल्कि घर में भी सदैव अपमानित किया जाता है। हिन्दी और अँगरेज़ी के कारण देश दो वर्ग में बँट गया है। अमूमन हिन्दी माध्यम के स्कूल सरकारी स्कूल होते हैं, जहाँ ग़रीबों के बच्चे पढ़ते हैं और अँगरेज़ी माध्यम के स्कूल में अमीरों के बच्चे। आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हमारे विचार, व्यवहार और संस्कार से अँगरेज़ी की ग़ुलामी ख़त्म नहीं हो रही है, यह बेहद अफ़सोसनाक है। हम भारतवासियों को अपनी हिन्दी पर गर्व होना चाहिए और हिन्दी के सम्मान के लिए हर सम्भव प्रयास करना चाहिए। आख़िर अँगरेज़ भाग गए तो अँगरेज़ी को क्यों नहीं भगा सकते।
- जेन्नी शबनम (14.9.2017)
(हिन्दी दिवस)
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विचारणीय लेख। जय हिन्दी।
ReplyDelete
ReplyDeleteसार्थक चिंतन जेनी जी ! इसी सन्दर्भ में पिछले वर्ष एक पोस्ट मैंने भी लिखी थी ! आपके पास उसकी लिंक भेज रही हूँ ! आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा रहेगी मुझे !लिंक इस प्रकार है --
http://sudhinama.blogspot.in/2016/09/blog-post_14.html
उसी आलेख का थोड़ा सा अंश प्रस्तुत है !
इससे बड़ी विडम्बना और शर्म की बात और क्या होगी कि आजकल स्कूलों में बच्चों को हिन्दी में बात करने के लिए दण्डित किया जाता है ! यदि बच्चे स्कूल परिसर में अवकाश के समय में भी आपस में हिन्दी में बात करते हुए पाए जाते हैं तो टीचर्स उन्हें डाँटते हैं ! इस पर हम हिन्दी दिवस पर हिन्दी के उत्थान और सम्मान की बातें करते हैं और हिन्दी भाषा के भविष्य के प्रति अपनी चिंता व्यक्त करते हैं ! जिस भाषा में बात करने पर सज़ा मिले उस भाषा का सम्मान आज की युवा होती पीढ़ी कैसे करेगी और क्यों करेगी ? अपनी मातृ भाषा में बात करने पर किस देश में स्कूलों में बच्चों को दण्डित किया जाता है यह शोध का विषय हो सकता है !
सादर प्रणाम ,
ReplyDeleteबहुत दिन बाद आपका लेख पढ़ा मन बहुत प्रसन्न हुआ ऐसा लगा जैसे मैं खुद ही अपना लिखा हुआ पढ़ रहा हूँ .
आपके लेखन के लिए ढेरों शुभकामनायें .
निर्झर नीर
Ek atisundar lekh ke liye aapka aabhar. Devnagri lipi nahin hai isliye is pratikriya ko hindi men preshit hi samjha jaaye. dhanyawaad
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-09-2017) को
ReplyDelete"हिन्दी से है प्यार" (चर्चा अंक 2729)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
Anonymous PRAN SHARMA said...
ReplyDeleteविचारणीय लेख। जय हिन्दी।
September 14, 2017 at 8:47 PM
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आदरणीय प्राण शर्मा जी, मेरे लेख पर आपकी उपस्थिति और प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद.
Blogger sadhana vaid said...
ReplyDeleteसार्थक चिंतन जेनी जी ! इसी सन्दर्भ में पिछले वर्ष एक पोस्ट मैंने भी लिखी थी ! आपके पास उसकी लिंक भेज रही हूँ ! आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा रहेगी मुझे !लिंक इस प्रकार है --
http://sudhinama.blogspot.in/2016/09/blog-post_14.html
उसी आलेख का थोड़ा सा अंश प्रस्तुत है !
इससे बड़ी विडम्बना और शर्म की बात और क्या होगी कि आजकल स्कूलों में बच्चों को हिन्दी में बात करने के लिए दण्डित किया जाता है ! यदि बच्चे स्कूल परिसर में अवकाश के समय में भी आपस में हिन्दी में बात करते हुए पाए जाते हैं तो टीचर्स उन्हें डाँटते हैं ! इस पर हम हिन्दी दिवस पर हिन्दी के उत्थान और सम्मान की बातें करते हैं और हिन्दी भाषा के भविष्य के प्रति अपनी चिंता व्यक्त करते हैं ! जिस भाषा में बात करने पर सज़ा मिले उस भाषा का सम्मान आज की युवा होती पीढ़ी कैसे करेगी और क्यों करेगी ? अपनी मातृ भाषा में बात करने पर किस देश में स्कूलों में बच्चों को दण्डित किया जाता है यह शोध का विषय हो सकता है !
September 14, 2017 at 11:50 PM
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साधना जी, मेरे विचार से आपकी सहमति मेरे लिए महत्वपूर्ण है. आपके लेख को अभी पढ़ रही हूँ, पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया दूँगी.
यह निश्चित ही शर्म की बात है कि स्कूल में बच्चों के हिन्दी बोलने पर पाबंदी है. पर मैं इसका दोष स्कूल को न देकर हमारी शिक्षा प्रणाली को एवं सरकार को दूँगी. जब तक हिन्दी माध्यम से पढ़ाई न होगी हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा न होगी सब कुछ ऐसे ही चलेगा. इसमें मैं बच्चों को भी दोष नहीं देती न तो माता पिता को. आज के इस अंग्रेजी समाज में खुद को स्थापित करना है तो उन्हें अंग्रेजी ही बोलना होगा अन्यथा वे पिछड़ जाएँगे. आज़ादी के 70 साल हो गए हिन्दी को राष्ट्र भाषा क्यों नहीं बनाया जा रहा यह मेरी समझ से परे है. सरकार एक दिन हिन्दी के नाम कर समझती है कि देश को हिन्दी राष्ट्र बना दिया जबकि शहरों की मातृभाषा अब अंग्रेजी बन गई है. बड़ा क्षोभ होता है.
आपके बहुमूल्य प्रतिक्रया के लिए आभार.
Blogger निर्झर'नीर said...
ReplyDeleteसादर प्रणाम ,
बहुत दिन बाद आपका लेख पढ़ा मन बहुत प्रसन्न हुआ ऐसा लगा जैसे मैं खुद ही अपना लिखा हुआ पढ़ रहा हूँ .
आपके लेखन के लिए ढेरों शुभकामनायें .
निर्झर नीर
September 15, 2017 at 10:10 AM Delete
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नीर जी, मेरे ब्लॉग पर आपको देखकर मुझे बेहद ख़ुशी हुई. आप मेरे लेखन पर अपनी टिपण्णी देते रहे ताकि लिखने का मनोबल बढ़ता रहे. आप और हम जो हिन्दी भाषी हैं सभी के मन की यही बात है, हमारी हिन्दी हमें कमजोर कर चुकी है और खुद भी अंग्रेजी से दिन ब दिन हार रही है. हम सभी को इसके लिए कुछ तो कदम उठाना ही होगा. आपकी सराहना और शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद.
Blogger Sankalp said...
ReplyDeleteEk atisundar lekh ke liye aapka aabhar. Devnagri lipi nahin hai isliye is pratikriya ko hindi men preshit hi samjha jaaye. dhanyawaad
September 15, 2017 at 11:39 AM Delete
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स्क्रिप्ट भले ही रोमन है पर बात तो हिन्दी में है न, यही बहुत बड़ी बात है और इसे मैंने हिन्दी ही मान लिया है. यूँ ही ब्लॉग पर आकर अपनी प्रतिक्रया देकर मेरा हौसला बढाया करो. बहुत बहुत शुक्रिया संकल्प.
Blogger रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-09-2017) को
"हिन्दी से है प्यार" (चर्चा अंक 2729)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
September 15, 2017 at 11:47 AM Delete
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मेरे ब्लॉग का लिंक चर्चा मंच में शामिल किया आपने, तहे दिल से धन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री जी.
Good job buddy .
ReplyDeleteबहुत सटीक और सार्थक विवेचन...
ReplyDeleteसार्थकता लिए सशक्त लेखन के माध्यम से बेहद विचारणीय बात कही आपने ....
ReplyDeleteआलेख सुंदर, प्रभवशाली और हिंदी भाषा की वर्तमान में होती फजीहत को रेखांकित करती है। आज जिस दौर से हिंदी गुज़र रही है वह आगे और विकृत होगी चूंकि जनता और सरकारें अंग्रेजी भाषा की स्कूलिंग की ओर दौड़ रही है जब ये बच्चे कुछ करने योग्य होंगे तो इनके पास न हिंदी और न ही अंग्रेजी भाषा पर नियंत्रण होगा। जो हिंदी थी जानते हैं उनकी समस्याएं आप जैसी बानी रहेंगी और जो अंग्रेजी अच्छी जानते हैं वो ऐसे ही किसी कंपनी के एजेंट बने उपभोक्ता को संपर्क कर रहे होंगे। समाज हितकारी शोध, विचार, साहित्य अब अंग्रेजी में लिखा हो बाजार में बिकेगा, चमकेगा और पुरुस्कृत होगा।
ReplyDeleteहिन्दी के समर्थन में एक अच्छा और रुचिकर आलेख। धन्यवाद, आदरणीया जेन्नी जी।
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