स्तब्ध हूँ! अवाक् हूँ! मन को यकीन नहीं हो पा रहा कि सुनील मिश्र जी अब हमारे बीच नहीं हैं। कैसे यकीन करूँ कि एक सप्ताह पूर्व जिनसे आगे के कार्यक्रमों पर चर्चा हुई, यूँ अचानक सब छोड़कर चले गए? उनके व्हाट्सएप स्टेटस में लिखा है ''कोई दुःख मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं, वही हारा जो लड़ा नहीं।'' फिर आप कैसे हार गए सुनील जी? आपको लड़ना था, खूब लड़ना था, हम सब के लिए लड़कर जीतकर आना था।
यूँ सफ़र अधूरा छोड़कर नहीं जाना था।
आपके अपने, अपने परिवार, अपने मित्र, अपने प्रशंसक, अपने शुभचिंतक, अपने सहकर्मी सबको रुलाकर कल आप चले गए।
इस संसार को बहुत ज़रुरत थी आपकी। यूँ अलविदा नहीं कहा जाता सुनील जी।
जीवन की असफलताओं से जब भी मैं हारती थी, आप मुझे समझाते थे।
जीवन में संसारिकता, व्यावहारिकता, सरलता, सहजता, सहृदयता कैसे अपनाएँ, बताते थे।
आपके कहे शब्द आज भी मेरे पास सुरक्षित हैं - ''इतने गहरे होकर विचार करने की उम्र नहीं है।
हम सभी जिस समय में रह रहे हैं, अजीब-सा वातावरण है और इसमें जीवन की स्वाभाविकता के साथ जीना अच्छा है।
यह ठीक वह समय है जब अपने आसपास से इसकी भी अपेक्षा न करके बल वर्धन करना चाहिए।
थोड़ा उपकार वाले भाव में आओ।
बाल बच्चे यदि व्यस्त हैं, फ़िक्र करने या जानने का वक़्त नहीं है, अपने संसार में हैं तो उनको खूब शुभकामनाएँ दो।
यही हम सबकी नियति है। और उस रिक्ति को अपनी सकारात्मकता के साथ एंटीबायोटिक की तरह विकसित करो।
हम तो यही कर रहे हैं।
काफी समय से।'' आपकी वैचारिक बुद्धिमता, मानवीयता, गंभीरता और संवेदना सचमुच ऊर्जा देती है मुझे। मेरे लिए आप मित्र भी हैं और प्रेरक वक्ता भी हैं।
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चिन्तन में सुनील जी
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मेरे जन्मस्थान भागलपुर में गायक किशोर कुमार का ननिहाल है।
वहाँ से सम्बंधित जानकारी लेने को सुनील जी बहुत उत्सुक रहते थे।
एक बार किशोर कुमार के ननिहाल मैं गई लेकिन कुछ ख़ास जानकारी हासिल न हो सकी थी।
14 अप्रील को फ़ोन पर हम बात कर रहे थे कि कोरोना का प्रभाव ख़त्म हो तो वे किसी मित्र की गाड़ी से आएँगे और नालंदा विश्वविद्यालय देखने जाएँगे।
फिर भागलपुर आएँगे और किशोर कुमार के ननिहाल का पूरा व्योरा लेने चलेंगे।
मैंने उन्हें कहा कि आप आएँ तो विक्रमशिला विश्वविद्यालय और कर्ण गढ़ भी आपको ले चलेंगे जो भागलपुर के इतिहास की धरोहर है।
मेरी माँ 30 जनवरी 2021 को सदा के लिए छोड़कर चली गई।
माँ के बारे में उनसे बात हो रही थी, मैं रो पड़ी और वे भी अपनी माँ को याद कर रो पड़े।
मेरे लिए उनके अंतिम शब्द थे ''चुप हो जाओ, रोओ नहीं, यही दुनिया है, ऐसे ही जीना होता है, 6 साल हो गए मेरी माँ को गए हुए लेकिन अब भी माँ को यादकर रो पड़ता हूँ, तुम्हारे लिए तो अभी-अभी की घटना है, खुश रहने का प्रयत्न करो और स्वस्थ रहो।'' सुनील मिश्र जी से मेरा परिचय फेसबुक पर हुआ था। मैं उन दिनों अंतर्जाल पर नई थी।
सुनील जी का फ्रेंड रिक्वेस्ट आया।
मैंने देखा कि वे फिल्म क्रिटिक है, तो तुरंत उन्हें जोड़ लिया।
यूँ भी फिल्म देखना मेरा पसंदीदा कार्य है।
सुनील जी के नियमित कॉलम अखबारों में आते रहते थे और फिल्म की समीक्षा भी।
किसी भी नए फिल्म की उनके द्वारा लिखी समीक्षा पढ़कर मैं फिल्म देखने का अपना मन बनाती थी, सलमान की फिल्में छोड़कर (सलमान खान की हर फिल्म देखती हूँ)।
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सिनेमा पर सर्वोत्तम लेखन के लिए अवार्ड लेते सुनील जी
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सुनील
जी से जब आत्मीयता बढ़ी, तब जाना कि वे वरिष्ठ फिल्म समीक्षक ही नहीं बल्कि
लेखक, नाटककार, कवि, कला मर्मज्ञ, वरिष्ठ पत्रकार और मध्यप्रदेश के कला
संस्कृति विभाग में अधिकारी हैं।
उनके नाटकों का मंचन समय-समय पर होता रहता है, जिसका विडियो मैंने देखा।
सन 2006 में सुनील जी ने अमिताभ बच्चन पर पुस्तक लिखी 'अजेय महानायक'। मई
2018 में सुनील जी को सिनेमा पर सर्वोत्तम लेखन के लिए 65 वाँ नेशनल अवार्ड
मिला है।
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अमिताभ बच्चन जी का पत्र सुनील जी के नाम
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फिल्म और कला से जुड़े सभी क्षेत्र के लोगों के साथ वृहत संपर्क रहा है उनका।
मुझे याद है, सलीम साहब और हेलेन के साथ उनकी तस्वीर देखकर मैंने कहा कि आप मुझे सलमान खान से मिलवा दीजिएगा।
वे हँस पड़े और कहे कि यह तो मुश्किल काम है पर कोशिश करेंगे; सलमान सचमुच दिल का बहुत अच्छा इंसान है।
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सलीम साहब और हेलेन जी के साथ सुनील जी
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फिल्मों पर उनसे खूब बातें होती थीं।
धर्मेन्द्र के वे बहुत बड़े प्रशंसक हैं और इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने फेसबुक पर धर्म छवि के नाम से प्रोफाइल बनाया है। |
धर्मेन्द्र पापाजी को उनके जन्मदिन पर बधाई देते सुनील जी
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सुनील जी से घनिष्टता बढ़ने के बाद उनके बहुमुखी व्यक्तित्व के हर पहलू को देखा मैंने।
वे इतने सहज और सामान्य रहते थे कि शुरू में मुझे पता ही नही चलता था कि वे कितने बड़े विद्वान् और संस्कृतिकर्मी हैं। वे अपने प्रशंसनीय कार्य की चर्चा नहीं करते थे। उनके बारे में या उनके लिखे को कहीं पढ़ा तब पूछने पर वे बताते थे।
फिल्म ही नहीं बल्कि कला और साहित्य के हर क्षेत्र पर उनकी पकड़ बहुत मज़बूत है।
उनकी हिन्दी इतनी अच्छी है कि मैं अक्सर कहती थी - आपके पास इतना बड़ा शब्द-भण्डार कहाँ से आता है? उनकी कविताओं में भाव, बिम्ब और प्रतीकों का इतना सुन्दर समावेश होता है कि मैं चकित हो जाती हूँ।
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बाएँ किनारे सुनील जी, बीच में 3 बहुरुपिया, दाएँ किनारे मैं
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5 - 7 अक्टूबर 2018 को इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली में बहुरुपिया फेस्टिवल हुआ था।
वहाँ 6 अक्टूबर को मैं सुनील जी से मिलने गई।
यह मेरा पहला और आख़िरी मिलना हुआ उनसे।
बहुत सारे बहुरूपियों से मेरा परिचय कराया उन्होंने।
मेरे लिए यह अद्भुत अनुभव था।
मैंने पहली बार बहुरूपियों का जीवन, उनकी कर्मठता, उनकी कला, उनकी परेशानियों को जाना। |
बाएँ किनारे सुनील जी, बीच में दो बहुरुपिया, दाएँ किनारे मैं
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सुनील जी कला के कर्मयोगी थे।
उनकी पारखी नज़रें कला को गंभीरता से देखती थीं फिर उनकी कलम चलती थी।
कभी-कभी मैं उनसे कहती थी कि आप इतने बड़े-बड़े लोगों को जानते हैं, मुझ जैसे साधारण दोस्तों को कैसे याद रखते हैं? वे हँसकर कहते कि वे सभी औपचारिक और कार्य का हिस्सा हैं। कुछ ही ऐसे हैं जिनसे व्यक्तिगत जुड़ाव है।
अब उसमें चाहे कोई बड़ी हस्ती हो या तुम जैसी सहज मित्र, सब मुझे याद है और साथ हैं।
उनकी कार्यक्षमता, कार्यकुशलता, कर्मठता, विद्वता, लेखनी सबसे मैं अक्सर हैरान होती रहती थी। अकूत ज्ञान का भण्डार और विलक्षण प्रतिभा थी उनमें। |
सुनील जी द्वारा लिखी पुस्तक
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2017 की बात है।
फेसबुक पर उनकी कविताएँ कम दिख रही थीं।
मैंने पूछा कि कविताएँ नहीं दिख रहीं, तो उन्होंने बताया कि इंस्टाग्राम पर पोस्ट है। इंस्टाग्राम डाउनलोड करना और उसके फीचर्स भी उन्होंने बताए मुझे।
कोरोना काल में हम सभी का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था।
आशंका और भय का वातावरण था।
ऐसे में सुनील जी ने 16 अप्रैल 2020 को ग़ज़ल सिंगर जाज़िम शर्मा जी के साथ पहला लाइव संवाद किया।
मैं फेसबुक और इंस्टाग्राम पर कोशिश करती रही कि देखूँ पर तकनीक का अल्प ज्ञान होने के कारण समझ ही नहीं आया कि लाइव कहाँ हो रहा है। सुनील जी से बात हुई तो उन्होंने कहा कि क्यों न ऐसे लाइव को रोज़ किया जाए और हमारे बात करते-करते ही कार्यक्रम का नाम बातों बातों में रख दिया उन्होंने।
23 अप्रैल 2020 को 'इंस्टा - बातों बातों में' के लाइव की पहली कड़ी प्रस्तुत हुई जिसमें उन्होंने सर्वेश अस्थाना जी (विख्यात हास्य व्यंग्य कवि) को संवाद के लिए आमंत्रित किया।
मैं पहली दर्शक-श्रोता थी, क्योंकि इस बार मैं अच्छी तरह समझकर इंस्टाग्राम खोल कर बैठी थी।
बहुत रोचक कार्यक्रम हुआ।
पहले दिन कम लोग थे, परन्तु हम सभी का परिचय उन्होंने सर्वेश जी से करवाया। बहुत सफल कार्यक्रम रहा और सुनील जी बहुत प्रसन्न थे।
फिर यह कार्यक्रम हमारे कोरोना-काल का हिस्सा बन गया।
निर्धारित समय पर रोज़ अलग-अलग विख्यात हस्ती के साथ संवाद का यह कार्यक्रम चलता रहा।
31 जुलाई को 100 वीं कड़ी हुई, जिसमें निर्देशक-अभिनेता सतीश कौशिक दोबारा आमंत्रित थे।
सुनील जी इस दिन बहुत प्रसन्न थे और बोले कि वे सोचे ही नहीं थे कि बात करते-करते 'बातों बातों में' कार्यक्रम बन जाएगा और इतना सफल होगा। सुविधा के अनुसार कार्यक्रम का दिन और समय बदलता रहा लेकिन यह सिलसिला चलता रहा।
इसी बीच इरफ़ान खान, सुशांत सिंह राजपूत, ऋषि कपूर, बासू चटर्जी, जगदीप की मृत्यु हुई।
इसपर अलग से ट्रिब्यूट के लिए कार्यक्रम रखा उन्होंने।
14 अप्रैल 2021 को 'इंस्टा - बातों बातों में' की 175 वीं कड़ी थी. पिछले दो माह से मैं नेट से दूर थी, क्योंकि मेरी माँ का देहांत हुआ था। 14 अप्रैल को न जाने क्या हुआ कि सुनील जी से काफी लम्बी बातें हुईं, भागलपुर आने का कार्यक्रम बना और फिर शाम को लाइव देखा मैंने। 14 अप्रैल तथा 175 वीं कड़ी अंतिम कड़ी बन गई सुनील जी और हमारे बीच की। 22 अप्रैल 2021 को रात्रि 8 बजे वे हम सबको छोड़कर चले गए, जहाँ से अब वे कभी न आएँगे न मुझे कुछ ज्ञान की बात बताएँगे। आपसे दुनियादारी बहुत सीखा मैंने,
आपको कभी भूल नहीं पाएँगे। आपको श्रधांजलि अर्पित करते हुए प्रणाम करती हूँ।
सुनील जी अपनी आवाज़, अपनी लेखनी, अपनी विद्वता, अपनी सहृदयता के साथ हमारे दिलों में सदा जिएँगे। सुनील जी की एक कविता :
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इंसटाग्राम से कॉपी
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कोई कविता सृजित हो रही होगी
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- जेन्नी शबनम (23. 4. 2021)______________________________________________
विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteनमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteॐ शांति क्या कहें आजकल समय बड़ा विकट चल रहा है। आप हौंसला रखें।
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि । इतना सुंदर संस्मरण आपकीं यादों से निकालकर शब्दान्कित हुए यही असली आदरांजलि है।
ReplyDeleteयह तो बहुत ही दुखद समाचार है। आपने श्रद्धांजलि स्वरूप जो उनके विषय में लिखा है, उससे उनके व्यक्तित्व को जानने का अवसर मिला। सत्य ही सुनील जी का जाना साहित्य और कला जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteअशोक आंद्रे
नमन।
ReplyDeleteDivik Ramesh said...
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि।
April 24, 2021 at 9:04 PM
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सुनील जी जैसे व्यक्तित्व का चला जाना साहित्य और कला के लिए बहुत बड़ी क्षति है. उनको श्रधांजलि के लिए आभार दिविक रमेश जी.
Blogger Udan Tashtari said...
ReplyDeleteनमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि
April 25, 2021 at 1:53 AM Delete
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आभार समीर जी.
Blogger Pallavi saxena said...
ReplyDeleteॐ शांति क्या कहें आजकल समय बड़ा विकट चल रहा है। आप हौंसला रखें।
April 25, 2021 at 12:38 PM Delete
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बड़ा दुखद समय चल रहा है. इतने अपने लोग चले गए, सच कहें तो अब स्थिति असह्य हो चला है. धन्यवाद पल्लवी जी.
Blogger HINDI AALOCHANA said...
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि
April 26, 2021 at 2:26 PM Delete
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धन्यवाद राजीव जी.
Blogger Ramesh Kumar Soni said...
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि । इतना सुंदर संस्मरण आपकीं यादों से निकालकर शब्दान्कित हुए यही असली आदरांजलि है।
April 26, 2021 at 3:48 PM Delete
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सुनील जी के साथ बहुत यादें जुड़ी हैं. उन्हें याद करना ही आदरांजलि है. धन्यवाद रमेश कुमार सोनी जी.
Blogger जितेन्द्र माथुर said...
ReplyDeleteयह तो बहुत ही दुखद समाचार है। आपने श्रद्धांजलि स्वरूप जो उनके विषय में लिखा है, उससे उनके व्यक्तित्व को जानने का अवसर मिला। सत्य ही सुनील जी का जाना साहित्य और कला जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
April 27, 2021 at 8:57 AM Delete
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सुनील जी जैसा व्यक्तित्व होना अब असंभव है. कला संस्कृति की क्षति के साथ ही हम जैसे मित्रों के लिए जीवन भर का दुःख है. आभार जितेन्द्र माथुर जी.
Blogger ashok andrey said...
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि।
अशोक आंद्रे
April 28, 2021 at 12:28 PM Delete
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आपका आभार भाई साहब.
ReplyDeleteBlogger सुशील कुमार जोशी said...
नमन।
May 18, 2021 at 8:03 PM Delete
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आभार सुशील जी.