चित्र गूगल से साभार |
दरवाज़े की घंटी बजी। बहुत क़रीने से साड़ी पहनी हुई एक स्त्री ने मुस्कुराते हुए दरवाज़ा खोल आने का कारण पूछा। फिर बड़े तहज़ीब से बैठक में बिठा पानी लेकर आई। पानी का ग्लास देने के बाद घर के भीतर गई और उस सदस्य को सूचना दी, जिससे मिलना था। फिर वह मुस्कुराती हुई आई और चाय देकर चली गई। अमूमन आम घरों का यह एक सामान्य चलन है। लेकिन जब पता चले कि वह स्त्री जीवित इंसान नहीं बल्कि रोबोट है, तो निःसन्देह हम चौंक जाएँगे या डर जाएँगे, मानो भूत देख लिया हो।
सुना है कि ऐसे-ऐसे रोबोट बन गए हैं जो हर काम चुटकियों में कर देते हैं, और वह भी उत्तम तरीक़े से। विज्ञान और तकनीक ने मनुष्य का विकल्प रोबोट बनाया है। ऐसे रोबोट बन गए हैं जो स्त्री का विकल्प ही नहीं बल्कि स्त्री ही है, जो हर वह काम करेगी जो एक स्त्री करती है। घर के सारे काम से लेकर पुरुष के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने का कार्य वह बेहिचक और पूरी तन्मयता से करेगी। स्त्री-रोबोट देखने में ख़ूबसूरत और सुडौल होगी, आपके पसन्द का परिधान पहनेगी, आपके पसन्द का भोजन पकाएगी, जो गीत आप सुनना चाहें वह गाएगी, ऑनलाइन आपके बैंक के कार्य करेगी, बाज़ार से ऑनलाइन सामान मँगाएगी, आपके हर कार्य का हिसाब रखेगी, आपके रूटीन का ध्यान रखेगी, खाना-दवा सही वक़्त पर देगी। आपके मनोभाव के अनुरूप वह हर काम करेगी, जिससे आपको आनन्द आए और जीवन सुचारू रूप से चले। बस वह बच्चा पैदा नहीं कर सकती।
अभी एक फ़िल्म आई थी 'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया'। इसमें स्त्री पात्र का चरित्र एक ख़ूबसूरत स्त्री-रोबोट का है, जिसके प्रेम में फ़िल्म का नायक पड़ जाता है; यहाँ तक कि उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध भी बनाता है। उस स्त्री-रोबोट से विवाह करने को व्यग्र हो जाता है और विवाह करने के लिए एक सुघड़ सुसंस्कृत बहु के रूप में घरवालों से मिलवाता है। ख़ैर... यह तो फ़िल्म है, जो हमें हमारे समाज के भविष्य का रूप दिखा रहा है। ऐसा सचमुच कब होगा मालूम नहीं, जब हम एक आम स्त्री और रोबोट में फ़र्क़ न कर पाएँ। हालाँकि फ़िल्म में इसके दुष्परिणाम भी दिखाए गए हैं; लेकिन यह तो सत्य है कि हर पुरुष ऐसी ही रोबोट स्त्री चाहता है, जो बिना थके बिना किसी शिकायत किए चौबीस घंटा उसके लिए मुस्कुराती हुई उपलब्ध रहे।
समाज में स्त्रियों की जो स्थिति है ऐसे में मुनासिब है कि संसार से स्त्री प्रजाति मिट जाए और उसकी जगह स्त्री-रोबोट ले ले। हमारे पुरुषप्रधान समाज में सैकड़ों सालों से स्त्री जीवन के सुधार के लिए कार्य किए गए; लेकिन नतीज़ा सिफ़र। कुछ ख़ास तबक़े और वर्ग को छोड़ दें, तो हज़ारों साल से स्त्री की वास्तविक स्थिति में ज़्यादा सुधार नहीं हुआ है। हाँ! अब स्त्री पढ़ रही है, कार्य करती है, बच्चे सँभालती है और पुरुष को बराबर का सहयोग देती है। परन्तु यह सब इतना कम है कि अगर सही मायने में सर्वे हो, तो सारी बातें स्पष्ट रूप से सामने आएँगी।
बलात्कार व बलात्कार के बाद हत्या, दहेज़ के लिए प्रताड़ना व हत्या, भ्रूण हत्या, अशिक्षा, बाल विवाह, घरेलु हिंसा, छेड़खानी इत्यादि दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। हज़ारों प्रयत्न के बाद भी स्त्रियों को आज़ादी एवं सुरक्षा नहीं मिल सकी है। स्त्री का जीवन माँ के गर्भ में आने से लेकर मृत्युपर्यन्त ख़तरे में रहता है। दोष सिर्फ़ पुरुष समाज का नहीं, हम सभी की इसमें बराबर भागीदारी है।
'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' फ़िल्म देखकर यह ख़याल आया कि सचमुच ऐसे रोबोट बनाए जाएँ, जो पूर्णतः शारीरिक और मानसिक रूप से स्त्री हो, ताकि पुरुष अपने मनमाफ़िक़ उसका संचालन और उपयोग करे। स्त्री-रोबोट 24 घण्टे हर काम के लिए उपलब्ध रहेगी। घर का काम, बैंक का काम या कोई गुप्त कार्य वह आसानी से करेगी। उसे न भूख लगेगी न प्यास, न आँसू बहाएगी न कोई शिकायत करेगी, न उसे कोई तकलीफ़ होगी, न कोई अपेक्षा रखेगी। जितना मर्ज़ी उसके साथ हमबिस्तर हुआ जा सकता है। अगर बलात्कार भी हो, तो वह न चीखेगी न चिल्लाएगी। पुरुष जो भी कार्य का आदेश देगा वह करेगी।
अधिकतर पति को अपनी पत्नी से शिकायत रहती है। ढेरों चुटकुले बने हैं पत्नी पीड़ित पुरुष द्वारा स्त्री के लिए। पुरुष के अनुसार पत्नी अपने पति को ग़ुलाम बनाकर रखना चाहती है, उसकी आज़ादी छीन लेती है, उसपर हमेशा सन्देह करती है, निराधार आरोप लगाती है, सिर्फ़ पति के पैसे से मतलब रखती है इत्यादि। ऐसे में स्त्री-रोबोट सचमुच बहुत बढ़िया विकल्प है। पुरुष की सारी ज़रूरत स्त्री-रोबोट पूरी करेगी। अगर ऐसा हो जाए तो पुरुषों की दुनिया बहुत अच्छी और आनन्दमय हो जाएगी।
जहाँ तक सवाल है कि रोबोट बच्चे पैदा नहीं कर सकती, जो एक जीवित स्त्री का कार्य है; तो इसके लिए रोबोटिक्स के इंजीनियर थोड़ी और मेहनत करें और बच्चा पैदा करने वाली स्त्री-रोबोट का आविष्कार करें। फिर इस संसार से सारी स्त्री ख़त्म हो जाएगी। यों स्त्री की हत्या कई कारणों से होती रहती है- माँ के गर्भ में, दहेज के लिए ससुराल में, प्रेम के लिए हामी न भरने पर पागल प्रेमी द्वारा, बलात्कार करके, प्रतिष्ठा के लिए (ऑनर किलिंग)। स्त्री-रोबोट आ जाने से ये सारे अपराध बन्द हो जाएँगे।
स्त्री को यों भी नरक का द्वार कहा गया है। न रहेगा द्वार न कोई प्रवेश करके जाएगा नरक में। स्त्री मुक्त संसार से यह दुनिया स्वर्ग बन जाएगी। फिर सारे पुरुष स्वर्ग में निवास करेंगे।
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएँ।
चित्र गूगल से साभार |
-जेन्नी शबनम (8.3.2024)
(अन्तर्रष्ट्रीय महिला दिवस)
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 10 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteस्त्री बिना संसार की कल्पना? पुरुष आधा भी नहीं है :)
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteअन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteमन को भेदती रचना।
विचारणीय आलेख.
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसही विषय को उठाया है ।
ReplyDeleteविचारोत्तेजक !
ReplyDeleteपुरुष मानसिकता में स्त्री को अनुगामिनी,मूक गुडिया ही चाहिए,उसे लगता है स्त्री रोबोट उसके अनुकूल होगी..पर यदि रोबोट स्त्री भी सोचना शुरू कर दे तो खतरे बहुत बढ़ेंगे।विचारोत्तेजक आलेख।
ReplyDeleteबहुत सुंदर....
ReplyDeleteआपकी पोस्ट बहुत प्रश्न उठाती है.क्या सचमुच पुरुष संतुष्ट हो पायेगा?
ReplyDeleteआपकी पोस्ट में अहम प्रश्न है, पर क्या सिर्फ रोबोटिक स्त्री हर कार्य कर सकेगी? जननी भी बन सकेगी? शायद नहीं। इसलिए स्त्री की जगह पूरी तरह रोबोट नही ले सकता।
ReplyDeleteपुरुष की मानसिकता ही न ख़ुश होने की है। सुंदर विचारणीय आलेख। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से आपने पुरुषों की महिलाओं से अपेक्षाओं को लिखा है. हालांकि महिलाओं की जगह कोई नहीं ले सकता लेकिन सोचने वाली बात यह है कि महिलाओं को लोग रोबोट के रूप में क्यों देखना चाहते हैं.
ReplyDeleteस्त्री के प्रति ओछी मानसिकता वाले लोगों के मुँह पर एक करारा तमाचा मारा है आपने...खास तौर से 'स्त्री नरक का द्वार है...' वाली पंक्ति में...।
ReplyDeleteइस सशक्त-करारी और सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई ।