Wednesday, September 14, 2022

99. राजभाषा नहीं राष्ट्रभाषा हिन्दी

महात्मा बुद्ध के समय पाली लोकभाषा थी और इसकी लिपि ब्राह्मी थी। माना जाता है कि पाली भाषा परिवर्तित होकर प्राकृत भाषा बनी और आगे चलकर प्राकृत भाषा के क्षेत्रीय रूपों से अपभ्रंश भाषाएँ बनी। अपभ्रंश भाषा से हिन्दी भाषा का जन्म हुआ, जिसका समय 1000 ईस्वी माना जाता है। अनुमानतः 13वीं शताब्दी में हिन्दी भाषा में साहित्य रचना का कार्य प्रारम्भ हुआ। 1800 ईस्वी के दशक में हिन्दी राष्ट्रीय भाषा के रूप में उभरने लगी थी। वर्ष 1878 में पहला हिन्दी समाचार पत्र प्रकाशित हुआ था। हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी है, जो ब्राह्मी लिपि पर आधारित है। हिन्दी लिखने के लिए खड़ी बोली को आधार बनाया गया।  

हिन्दी शब्द वास्तव में फारसी भाषा का है, जिसका अर्थ है हिन्द से सम्बन्धित। हिन्दी शब्द की निष्पत्ति सिन्धु-सिन्ध से हुई है। ईरानी भाषा में स को ह बोलते हैं, इसलिए सिन्ध को हिन्द बोला गया और सिन्धी को हिन्दी। सन् 1500-1800 के बीच हिन्दी में बहुत परिवर्तन हुए तथा इसमें फ़ारसी, अरबी, तुर्की, पश्तो, पुर्तगाली, स्पेनी, फ्रांसीसी और अँगरेज़ी आदि शब्दों का समावेश हुआ। 
  
सितम्बर 14, 1949 को भारत की राजभाषा या आधिकारिक भाषा के रूप में हिन्दी भाषा को स्वीकार किया गया, जिसकी लिपि देवनागरी होगी। हिन्दी के प्रचार-प्रसार और महत्व को बढ़ाने के लिए वर्ष 1953 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने आधिकारिक तौर पर हर साल 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की। हिन्दी को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए विश्व हिन्दी सम्मलेन की शुरुआत हुई और पहला आयोजन जनवरी 10, 1975 को नागपुर में हुआ। इसके बाद वर्ष 2006 से प्रति वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है। वर्ष 1918 में गांधी जी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी को राजभाषा बनाने को कहा था। वर्ष 1881 में बिहार ने सबसे पहले हिन्दी को आधिकारिक राजभाषा बनाया था।  

हिन्दी देश की पहली और विश्व की तीसरी भाषा है, जो सबसे ज़्यादा बोली जाती है। लगभग 70% लोग भारत में हिन्दी बोलते हैं; फिर भी हिन्दी को एक दिवस के रूप में मनाया जाता है। निःसंदेह ब्रिटिश शासन के बाद अँगरेज़ी का बोलबाला हो गया, पर आज़ादी के बाद इसे आधिकारिक भाषा के साथ ही मातृभाषा बना देना चाहिए था। हालाँकि अ-हिन्दी भाषी लोगों को इससे आपत्ति थी। जिस तरह अँगरेज़ी मुख्य भाषा बन गई, उसी तरह हिन्दी को हर प्रान्त को अपनाना चाहिए। 

मेरी दादी हिन्दी लिखना-पढ़ना जानती थीं। वे कैथी लिपि में भी लिखना-पढ़ना जानती थीं। वे हिन्दी और बज्जिका बोलती थीं। कैथी लिपि का प्रयोग बिहार में 700 साल पहले से लेकर ब्रिटिश काल तक होता रहा है। सरकारी कामकाज और ज़मीन के दस्तावेज़ कैथी लिपि में लिखे जाते थे। शेरशाह ने 1540 ईस्वी में इस लिपि को अपने कोर्ट में शामिल किया था। वर्ष 1880 के दशक में बिहार के न्यायालयों में इसे आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया था। अब तो कैथी लिपि पढ़ने-लिखने वालों की संख्या नगण्य होगी। 

कुछ साल पहले मैं एक पत्रिका के कार्यालय गई थी। वहाँ सब-एडिटर के पोस्ट के लिए लिखित परीक्षा हुई, जिसमें अँगरेज़ी से हिन्दी अनुवाद करने को कहा गया। मुझे लगा कि हिन्दी पत्रिका के लिए अँगरेज़ी का ज्ञान आवश्यक क्यों है? लेकिन हमारे देश की सच्चाई यही है कि निजी संस्थानों में आपको नौकरी तभी मिलेगी जब आपको अँगरेज़ी आती हो। अँगरेज़ी माध्यम से पढ़ाई ही किसी कार्य के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसी का परिणाम है कि देश का ग़रीब, मज़दूर, किसान, माध्यम वर्ग भी अब अपने बच्चों को अँगरेज़ी मीडियम के स्कूल में पढ़ाता है। छोटी-से-छोटी नौकरी में भी अँगरेज़ी ही चाहिए; भले लिख न सके पर फ़र्राटेदार बोलना आना चाहिए। अगर अँग्ररेज़ी न आती हो, तो बाहर ही नहीं घर में भी सम्मान नहीं मिलता है। 

मुझे लगता है कि हमारी भाषा और बोली जो भी हो, हमें हिन्दी को अपनी मातृभाषा बनानी ही होगी। दुनिया के सभी देशों की अपनी-अपनी भाषा है, एक भारत है जिसकी अपनी भाषा नहीं, यह बेहद दुःखद है। शान से हम हिन्दी दिवस और हिन्दी पखवाड़ा मनाते हैं। सरकार को चाहिए कि हिन्दी को पूरे देश में प्रथम भाषा के रूप में स्थापित करे। हिन्दी को राजकीय नहीं बल्कि राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित किया जाए। शिक्षा का माध्यम हिन्दी हो, सभी नौकरी के लिए हिन्दी लिखना-पढ़ना और फ़र्राटेदार हिन्दी बोलना अनिवार्य हो। यह सब रातों-रात सम्भव नहीं है; लेकिन योजना और रूपरेखा बनाकर 10-12 साल में इसे अनिवार्य किया जा सकता है। फिर हम हिन्दी दिवस नहीं बल्कि अँगरेज़ी दिवस मनाएँगे और दुनिया में सम्मान पाएँगे।  

- जेन्नी शबनम (14.9.2022)
____________________     

20 comments:

  1. हिंदी के इतिहास का उल्लेख करते हुए वर्तमान में उसकी स्थिति को बतलाता हुआ सम्यक,सुचिंतित आलेख।बधाई।

    ReplyDelete
  2. बिलकुल सही लिखा आपने जेन्नी जी। जब तक हिन्दी प्रथम भाषा नहीं बन जाती तब तक इसकी स्थिति ऐसी ही रहेगी। दिवस या पखवाड़ा मनाने से कुछ नहीं होने वाला सरकार की ओर से किए गए प्रयास से ही सम्भव होगा। जिसकी प्रतीक्षा बनी रहेगी।
    बहुत सुंदर सटीक एवं सारगर्भित आलेख के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ। सुदर्शन रत्नाकर

    ReplyDelete
  3. अति उत्तम विचार आदरणीय !

    ReplyDelete
  4. बहुत ज्ञानवर्धक आलेख, विचारणीय विषय यह है कि हम हिंदी को राजभाषा के रूप में आज तक स्थापित नहीं पाए है तो फिर मातृभाषा कैसे बना पाएंगे ? हमें पूरे देश में हिंदी को वहां की स्थानीय भाषा के साथ प्राथमिक स्तर से शिक्षा का अनिवार्य अंग बना दिया जाना चाहिए.

    ReplyDelete
  5. इसके लिए शासन अकेले कुछ नहीं कर सकता, जनता की हूंकार ज़रूरी है। इसके लिए किसी को जन-नायक बनना ही होगा। वरना तो, छोटी-छोटी बातों के लिए सड़क पर उतरने वाले, तोड़-फोड़ करने वाले हैं हम लोग।

    ReplyDelete
  6. सार्थक और बहुत अच्छा आलेख

    ReplyDelete
  7. सही कहा जेन्नी जी यह वाकई दुखद एवं चिंतनीय है कि हमारे देश की अपनी राष्ट्रभाषा नहीं है ।
    बहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक लेख .

    ReplyDelete
  8. आप क्यूंकि बिहार प्रदेश से आती हैं
    जहां हिंदी को तोड़ मरोड़ कर बोला जाता है - मैथिली / मघई / भोजपुरी / खड़ी बोली (मैथिली)
    मगर लिखा ज़रूर हिंदी लिपि में जाता है
    इसीलिए शायद हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की वकालत कर रही हैं
    भारत में
    हिंदी - प्राय: उत्तर भारत के कुछ ही प्रदेश, मध्य भारत, उत्तर पूर्व के कुछ प्रदेशों तक ही सीमित है
    और इसके इलावा -इन प्रदेशों में भी, हर 200 किलो मीटर के बाद हिंदी भाषा को बोलने का अंदाज़ भी बदल जाता है

    भारत में कुल 22 भाषायें संविधान से पारित हैं - असामीज, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, मैथिली, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू भाषा ।

    हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में, हम बाकी की 21 भाषाओं के साथ नाइंसाफी नहीं कर रहे होंगे ।
    वैसे
    वर्तमान सरकार उर्दू भाषा के साथ सौतेला बर्ताव तो कर ही रही है, जिसे कवियों, लेखकों , शायरों की समृद्ध भाषा का सम्मान प्राप्त है ( अब तक )

    ReplyDelete


  9. Blogger विजय कुमार सिंघल 'अंजान' said...

    अच्छा लेख !

    September 15, 2022 at 4:21 AM Delete
    ___________________________________________

    आभार विजय जी.

    ReplyDelete
  10. Blogger शिवजी श्रीवास्तव said...

    हिंदी के इतिहास का उल्लेख करते हुए वर्तमान में उसकी स्थिति को बतलाता हुआ सम्यक,सुचिंतित आलेख।बधाई।

    September 15, 2022 at 7:10 AM Delete
    _____________________________________________

    सराहना के लिए आपका आभार शिवजी श्रीवास्तव जी.

    ReplyDelete
  11. Anonymous Anonymous said...

    बिलकुल सही लिखा आपने जेन्नी जी। जब तक हिन्दी प्रथम भाषा नहीं बन जाती तब तक इसकी स्थिति ऐसी ही रहेगी। दिवस या पखवाड़ा मनाने से कुछ नहीं होने वाला सरकार की ओर से किए गए प्रयास से ही सम्भव होगा। जिसकी प्रतीक्षा बनी रहेगी।
    बहुत सुंदर सटीक एवं सारगर्भित आलेख के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ। सुदर्शन रत्नाकर

    September 15, 2022 at 8:15 AM Delete
    ______________________________________________

    हम तो सालों से इस इंतज़ार में हैं कि हिन्दी को उसका सम्मान मिले और राष्ट्र भाषा बने. सही है कि सरकार के प्रयास के बिना यह संभव नहीं है. आपका बहुत आभार रत्नाकर जी.

    ReplyDelete
  12. Harash Mahajan said...

    अति उत्तम विचार आदरणीय !
    September 15, 2022 at 8:40 AM
    ___________________________________

    बहुत-बहुत आभार हर्ष जी.

    ReplyDelete
  13. Blogger रेखा श्रीवास्तव said...

    बहुत ज्ञानवर्धक आलेख, विचारणीय विषय यह है कि हम हिंदी को राजभाषा के रूप में आज तक स्थापित नहीं पाए है तो फिर मातृभाषा कैसे बना पाएंगे ? हमें पूरे देश में हिंदी को वहां की स्थानीय भाषा के साथ प्राथमिक स्तर से शिक्षा का अनिवार्य अंग बना दिया जाना चाहिए.

    September 15, 2022 at 3:31 PM Delete
    _______________________________________________

    रेखा जी, सही है कि हिन्दी राजभाषा भी पूरी तरह से राजभाषा बन नहीं पाई है. आज भी अंग्रेज़ी का ही राज है. स्थानीय भाषा तो बोलचाल के लिए है ही, लेकिन शिक्षा और सरकारी काम-काज पूरे देश में एक ही भाषा में होना ज़रूरी है.आभार आपका.

    ReplyDelete
  14. Blogger Gajendra Bhatt "हृदयेश" said...

    इसके लिए शासन अकेले कुछ नहीं कर सकता, जनता की हूंकार ज़रूरी है। इसके लिए किसी को जन-नायक बनना ही होगा। वरना तो, छोटी-छोटी बातों के लिए सड़क पर उतरने वाले, तोड़-फोड़ करने वाले हैं हम लोग।

    September 18, 2022 at 12:17 AM Delete
    __________________________________________________

    जनता आराम से हुँकार नहीं भरेगी जबतक कोई अगुवाई न करे या सरकार बाध्य न करे. सही है, किसी सार्थक काम को छोड़कर बेवजह की बातों के लिए सड़क पर तोड़-फोड़ होता है. सबसे पहले एक ऐसे आन्दोलन की ज़रुरत है जिससे मानव इंसान बन सके. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत आभार गजेन्द्र जी.

    ReplyDelete
  15. Anonymous said...

    सार्थक और बहुत अच्छा आलेख
    September 18, 2022 at 11:44 PM
    __________________________________

    बहुत आभार आपका.

    ReplyDelete

  16. Blogger Sudha Devrani said...

    सही कहा जेन्नी जी यह वाकई दुखद एवं चिंतनीय है कि हमारे देश की अपनी राष्ट्रभाषा नहीं है ।
    बहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक लेख .

    September 19, 2022 at 3:45 PM Delete
    __________________________________________________

    मुझे तो सचमुच लज्जा आती है और आक्रोश भी होता है जब अपने ही देश का रहने वाला कोई भारतीय हिन्दी में बात नहीं करता जबकि सामने वाला हिन्दी में बोल रहा हो, चाहे वह हिन्दी प्रदेश का ही क्यों न हो. आपका बहुत धन्यवाद सुधा जी.

    ReplyDelete

  17. Blogger VINOD said...

    आप क्यूंकि बिहार प्रदेश से आती हैं
    जहां हिंदी को तोड़ मरोड़ कर बोला जाता है - मैथिली / मघई / भोजपुरी / खड़ी बोली (मैथिली)
    मगर लिखा ज़रूर हिंदी लिपि में जाता है
    इसीलिए शायद हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की वकालत कर रही हैं
    भारत में
    हिंदी - प्राय: उत्तर भारत के कुछ ही प्रदेश, मध्य भारत, उत्तर पूर्व के कुछ प्रदेशों तक ही सीमित है
    और इसके इलावा -इन प्रदेशों में भी, हर 200 किलो मीटर के बाद हिंदी भाषा को बोलने का अंदाज़ भी बदल जाता है

    भारत में कुल 22 भाषायें संविधान से पारित हैं - असामीज, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, मैथिली, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू भाषा ।

    हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में, हम बाकी की 21 भाषाओं के साथ नाइंसाफी नहीं कर रहे होंगे ।
    वैसे
    वर्तमान सरकार उर्दू भाषा के साथ सौतेला बर्ताव तो कर ही रही है, जिसे कवियों, लेखकों , शायरों की समृद्ध भाषा का सम्मान प्राप्त है ( अब तक )

    September 23, 2022 at 10:39 PM Delete
    ____________________________________________________

    विनोद जी, आपने जिन बोलियों और भाषा की बात की है, सभी की लिपि देवनागरी है. हिन्दी हर क्षेत्र में अपने-अपने हिसाब से बोली जाती है, लेकिन व्याकरण एक ही होता है.
    मेरे हिन्दी भाषी होने के कारण भी मुमकिन है कि मुझे हिन्दी पसंद हो. लेकिन हमारे देश की अपनी भाषा होना क्या उचित नहीं? कबतक अंग्रेज़ी को अपनी मातृभाषा/ राजभाषा/ राष्ट्रभाषा बनाकर महानगर के मुताबिक़ पूरा देश चलेगा? दुनिया के सभी देश की अपनी भषा है, क्या हमारे देश में न होना शर्मनाक नहीं? हिन्दी और उर्दू को तो कभी भी अलग नहीं किया जा सकता है. उर्दू देवनागरी लिपि में हिन्दी में मान्य है. लेकिन किसी भी क्षेत्रीय भाषा को अगर राष्ट्रभाषा बनायेंगे तो देश का एनी सभी प्रांत बोल नहीं सकेगा. हिन्दी ही ऐसी भषा है जो सबसे ज्यादा बोली जाती है, इसलिए भी मैंने हिन्दी की वकालत की है.
    आपने अपने विचार स्पष्ट रूप से रखे अच्छा लगा. निश्चित रूप से हमें इसपर आगे भी चर्चाकर एकमत होना चाहिए. बहुत आभार आपका.

    ReplyDelete
  18. बहुत सार्थक और जानकारीपरक लेख है, बहुत बधाई

    ReplyDelete
  19. सबको अपनी मातृभाषा प्यारी लगती है।
    भारत में कोई भी भाषा राष्ट्रभाषा नहीं हो सकता है। भारत विविध प्रकार के लोग रहते हैं।
    मैं अजय कुमार गुप्ता इलाहाबाद का रहने वाला हूं।
    I am post graduate in Hindi Literature A central University of Allahabad and B.ed, primary and junior CTET exam qualified job preparation in Hindi Literature teacher

    ReplyDelete