महात्मा बुद्ध के समय पाली लोकभाषा थी और इसकी लिपि ब्राह्मी थी। माना जाता है कि पाली भाषा परिवर्तित होकर प्राकृत भाषा बनी और आगे चलकर प्राकृत भाषा के क्षेत्रीय रूपों से अपभ्रंश भाषाएँ बनी। अपभ्रंश भाषा से हिन्दी भाषा का जन्म हुआ, जिसका समय 1000 ईस्वी माना जाता है। अनुमानतः 13वीं शताब्दी में हिन्दी भाषा में साहित्य रचना का कार्य प्रारम्भ हुआ। 1800 ईस्वी के दशक में हिन्दी राष्ट्रीय भाषा के रूप में उभरने लगी थी। वर्ष 1878 में पहला हिन्दी समाचार पत्र प्रकाशित हुआ था। हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी है, जो ब्राह्मी लिपि पर आधारित है। हिन्दी लिखने के लिए खड़ी बोली को आधार बनाया गया।
हिन्दी शब्द वास्तव में फारसी भाषा का है, जिसका अर्थ है हिन्द से सम्बन्धित। हिन्दी शब्द की निष्पत्ति सिन्धु-सिन्ध से हुई है। ईरानी भाषा में स को ह बोलते हैं, इसलिए सिन्ध को हिन्द बोला गया और सिन्धी को हिन्दी। सन् 1500-1800 के बीच हिन्दी में बहुत परिवर्तन हुए तथा इसमें फ़ारसी, अरबी, तुर्की, पश्तो, पुर्तगाली, स्पेनी, फ्रांसीसी और अँगरेज़ी आदि शब्दों का समावेश हुआ।
सितम्बर 14, 1949 को भारत की राजभाषा या आधिकारिक भाषा के रूप में हिन्दी भाषा को स्वीकार किया गया, जिसकी लिपि देवनागरी होगी। हिन्दी के प्रचार-प्रसार और महत्व को बढ़ाने के लिए वर्ष 1953 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने आधिकारिक तौर पर हर साल 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की। हिन्दी को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए विश्व हिन्दी सम्मलेन की शुरुआत हुई और पहला आयोजन जनवरी 10, 1975 को नागपुर में हुआ। इसके बाद वर्ष 2006 से प्रति वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है। वर्ष 1918 में गांधी जी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी को राजभाषा बनाने को कहा था। वर्ष 1881 में बिहार ने सबसे पहले हिन्दी को आधिकारिक राजभाषा बनाया था।
हिन्दी देश की पहली और विश्व की तीसरी भाषा है, जो सबसे ज़्यादा बोली जाती है। लगभग 70% लोग भारत में हिन्दी बोलते हैं; फिर भी हिन्दी को एक दिवस के रूप में मनाया जाता है। निःसंदेह ब्रिटिश शासन के बाद अँगरेज़ी का बोलबाला हो गया, पर आज़ादी के बाद इसे आधिकारिक भाषा के साथ ही मातृभाषा बना देना चाहिए था। हालाँकि अ-हिन्दी भाषी लोगों को इससे आपत्ति थी। जिस तरह अँगरेज़ी मुख्य भाषा बन गई, उसी तरह हिन्दी को हर प्रान्त को अपनाना चाहिए।
मेरी दादी हिन्दी लिखना-पढ़ना जानती थीं। वे कैथी लिपि में भी लिखना-पढ़ना जानती थीं। वे हिन्दी और बज्जिका बोलती थीं। कैथी लिपि का प्रयोग बिहार में 700 साल पहले से लेकर ब्रिटिश काल तक होता रहा है। सरकारी कामकाज और ज़मीन के दस्तावेज़ कैथी लिपि में लिखे जाते थे। शेरशाह ने 1540 ईस्वी में इस लिपि को अपने कोर्ट में शामिल किया था। वर्ष 1880 के दशक में बिहार के न्यायालयों में इसे आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया था। अब तो कैथी लिपि पढ़ने-लिखने वालों की संख्या नगण्य होगी।
कुछ साल पहले मैं एक पत्रिका के कार्यालय गई थी। वहाँ सब-एडिटर के पोस्ट के लिए लिखित परीक्षा हुई, जिसमें अँगरेज़ी से हिन्दी अनुवाद करने को कहा गया। मुझे लगा कि हिन्दी पत्रिका के लिए अँगरेज़ी का ज्ञान आवश्यक क्यों है? लेकिन हमारे देश की सच्चाई यही है कि निजी संस्थानों में आपको नौकरी तभी मिलेगी जब आपको अँगरेज़ी आती हो। अँगरेज़ी माध्यम से पढ़ाई ही किसी कार्य के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसी का परिणाम है कि देश का ग़रीब, मज़दूर, किसान, माध्यम वर्ग भी अब अपने बच्चों को अँगरेज़ी मीडियम के स्कूल में पढ़ाता है। छोटी-से-छोटी नौकरी में भी अँगरेज़ी ही चाहिए; भले लिख न सके पर फ़र्राटेदार बोलना आना चाहिए। अगर अँग्ररेज़ी न आती हो, तो बाहर ही नहीं घर में भी सम्मान नहीं मिलता है।
मुझे लगता है कि हमारी भाषा और बोली जो भी हो, हमें हिन्दी को अपनी मातृभाषा बनानी ही होगी। दुनिया के सभी देशों की अपनी-अपनी भाषा है, एक भारत है जिसकी अपनी भाषा नहीं, यह बेहद दुःखद है। शान से हम हिन्दी दिवस और हिन्दी पखवाड़ा मनाते हैं। सरकार को चाहिए कि हिन्दी को पूरे देश में प्रथम भाषा के रूप में स्थापित करे। हिन्दी को राजकीय नहीं बल्कि राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित किया जाए। शिक्षा का माध्यम हिन्दी हो, सभी नौकरी के लिए हिन्दी लिखना-पढ़ना और फ़र्राटेदार हिन्दी बोलना अनिवार्य हो। यह सब रातों-रात सम्भव नहीं है; लेकिन योजना और रूपरेखा बनाकर 10-12 साल में इसे अनिवार्य किया जा सकता है। फिर हम हिन्दी दिवस नहीं बल्कि अँगरेज़ी दिवस मनाएँगे और दुनिया में सम्मान पाएँगे।
- जेन्नी शबनम (14.9.2022)
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