Saturday, October 10, 2020

80. सुश्री संगीता गुप्ता एवं श्री अनिल पाराशर 'मासूम' की भावनाएँ - मुझे और मेरे 'लम्हों का सफ़र' को

                    

मेरी पुस्तक 'लम्हों का सफ़र' का प्रकाशन वर्ष 2020, जनवरी माह में हुआसुश्री संगीता गुप्ता, आयकर विभाग में पूर्व मुख्य आयुक्त, प्रतिष्ठित कवयित्री और चित्रकार, ने मुझे सदैव छोटी बहन-सा स्नेह व सम्बल दिया है उनकी चित्रकारी मेरी पुस्तक का आवरण चित्र है। उन्होंने भावपूर्ण शुभकामना सन्देश दिया, जो पुस्तक में प्रेषित है। इस शुभकामना सन्देश को मैं यहाँ प्रेषित कर रही हूँ।  


सन 2008 में ऑरकुट पर अनिल जी से परिचय, फिर मुलाक़ात हुई। अनिल पाराशर जी बिड़ला कम्पनी में कार्यरत थे और 'मासूम' शायर के नाम से प्रसिद्ध हैं उनके लेखन में गज़ब का भाव होता है, चाहे वे किसी पुरुष की मनोदशा लिखें या स्त्री की उन्होंने मेरी पुस्तक की परिचर्चा में एक संक्षिप्त समीक्षात्मक विचार दिए हैं, जिसे मैं यहाँ प्रेषित कर रही हूँ। 
_______________________________________ 

मैं और संगीता दी
जीवन के विविध रंग 
- संगीता गुप्ता  

'लम्हों का सफ़र' जेन्नी शबनम का पहला कविता-संग्रह है, पर संकलित कविताएँ एक लम्बे जिए जीवन का बयान हैस्त्री बोध में कभी अपने पिता को याद करती नन्ही बिटिया है, कभी अमरूद के पेड़ पर चढ़ती नटखट लड़की है, जो पेड़ को ही याद नहीं करती; बल्कि उस अल्हड़ बचपन को खोने का दंश भी महसूसती है। असमय गुज़रे पिता की कमी सिर्फ़ उसकी ही नहीं, उसकी माँ की भी क्षति है। माँ हारती नहीं, अकेले ही सब करती है; पर हँसना भूल जाती है। जेन्नी की कविताएँ एक संवेदनशील स्त्री की त्रासदी से उपजी टीस है। प्रेम करती स्त्री की अपेक्षाएँ, सपने क़दम-क़दम पर टूटते ही हैं, यह शाश्वत सत्य है; पर उनको शब्दों में पिरोने का हुनर जेन्नी को सहज उपलब्ध है। उनकी कविताएँ भोगे हुए यथार्थ से जन्मी है। 
 
जीवन एक यात्रा है, जिस पर सब चलते हैं, कभी उमगकर, कभी हताश होकर, कभी ज़िद में भरकर, कभी यादों के सहारे, कभी किसी का फ़लसफ़ा पढ़कर। चलना तो सतत है और स्त्री चलती है, कभी पिता की उँगली पकड़कर, कभी प्रेम की बाँह थामकर और कभी बच्चा उसकी उँगली पकड़कर चलना सीखता है और कभी वह इस सच से डरकर भी जीती है कि समय आने पर बेटा उसकी उँगली पकड़कर चलेगा या नही।  

एक छोटे क़स्बे से आई लड़की की जीवन से ठनती है और अपनी जंग जीतने का हौसला पैदा करने वाली स्त्री अपने एकांत में उन्हें शब्दों में पिरोकर बरस-दर-बरस सँभालकर रखती है। ऐसे में तय होता है- 'लम्हों का सफ़र'। जेन्नी ने अपने आपको इन कविताओं में जिया, बचाया है। 

जीवन के सारे रंग इस संग्रह के कैनवस पर बिखरे हैं, एक अच्छा पाठक उन्हें अवश्य अपने अनुभव जगत् में पाएगा और सहेजेगा। मेरी अनंत शुभकामनाएँ। जेन्नी सृजन-पथ पर अग्रसर रहे, इस शुभेक्षा के साथ-

संगीता गुप्ता 
15.10.2019 
(सफ़दरजंग एन्क्लेव, नई दिल्ली) 
______________________
 
अनिल जी, शानू जी और मैं
सफ़र लम्हों का है 
- अनिल पाराशर 'मासूम'  

कैसा अजीब है, सफ़र लम्हों का है, उँगली क़ज़ा की थामे है और ज़िन्दगी भर को जारी है। आज हम जेन्नी जी की पुस्तक पर उनकी कविता पर बात करने आए हैं मैं एक बात से बात शुरू करता हूँ कि जेन्नी जी की कविताओं की नायिका जिस जीवन को जी रही है या सह रही है, वही इनके लम्हों का सफ़र है। इन्होंने ख़ुद एक जगह लिखा है ''कविता लिखना एक कला है, जैसे कि ज़िन्दगी जीना'' ये इनके काव्य की परिभाषा है। इनकी एक कविता में इनकी नायिका एक श्राप को जी रही है, और वो श्राप है इश्क़ और खीज; वो नायक को श्राप देती है- ''जा तुझे इश्क़ हो!''

इनके इश्क़ में बहुत सादगी है, भौतिक कुछ नहीं चाहिए नायिका को; वह इश्क़ के शुरू के दिनों में पलाश के गहनों से ही सज जाती थी। अब फिर वहीं जाना चाहती है, अपने मीत से वादा करके कि अब न गहने लेगी न पलाश के पत्ते लाएगी। दरअसल भौतिक जीवन और इश्क़ के बीच रस्साकशी है कविता की आत्मा। नायिका को पता है नायक की मज़बूरी और कविता में कहा भी है ''पगडंडी पर तुम चल न सकोगे, उस पर पाँव-पाँव चलना होता है'', पर नायक उड़ता है, चलता नहीं है। थकी नायिका अंत में ऐसी दुनिया की कल्पना भी कर लेती है, जहाँ पगडंडी और आकाश मिलते हैं। ये नायिका के लिए ही नहीं पूरे समाज के लिए एक आशा है।  

जेन्नी जी की कविताओं का एक पहलू इमरोज़-अमृता से प्रभावित होता है। इनका मानना यह है कि हर प्रेम अमृता-इमरोज़ की तरह शुरू होता है, पर समय के साथ स्त्री वही स्त्री रहती है मगर हर इमरोज़ पुरुष बन जाता है; और वह स्त्री पर अधिकार चाहता है बस। इनकी एक कविता की कुछ पंक्तियाँ हैं-
''मर्द ने कहा-
ऐ औरत!
ख़ामोश होकर मेरी बात सुन...।'' 

स्त्री को परिभाषित करती एक कविता में बहुत अद्भुत बात कहती हैं जेन्नी जी- ''मैं स्त्री हूँ, मुझे ज़िंदा रखना उतना ही सहज है, जितना सहज मुझे गर्भ में मार दिया जाना।'' स्त्री का पूरा चित्र हमारे सामने ये पंक्तियाँ रख देती हैं।  
जीवन के मूल्यों का बदलना भी बहुत मार्मिक तरीक़े से पुस्तक में कहा गया है कि नायिका बहुत यत्न से जीवन की गुल्लक में लम्हें इकट्ठे कर रही थी। जब उसने गुल्लक तोड़ी तो उसमें इकन्नी-दुअन्नी-चवन्नी निकले जिनका चलन ही नहीं रहा, वैसे ही नायिका का चलन भी अब नहीं रहा।  

कल्पना की पराकाष्ठा दिखती है जब अपने पुत्र के 18वें जन्मदिन पर लिखी कविता में जेन्नी जी कहती हैं कि ''मैंने अपनी आँखों पे नहीं / अपनी संवेदनाओं पर पट्टी बाँध रखी है / इसलिए नहीं, कि तुम्हारा शरीर वज्र का कर दूँ / इसलिए कि अपनी तमाम संवेदनाएँ तुममें भर दूँ।'' इसी तरह पुत्री के लिए भी बहुत मार्मिक कविताएँ रची हैं इन्होंने।

अपने पिता और उनके कम्युनिस्ट-विचार से जेन्नी जी बहुत प्रभावित रही हैं। यही कारण है कि प्रेम में भी ये केवल पलाश के बीजों के गहने माँगती हैं। बचपन में गुज़र चुके अपने पिता के लिए प्रेम, ये बिना किसी बनावट के लिखती हैं- ''बाबा आओ देखो! तुम्हारी बिटिया रोती है।''

जेन्नी जी की कविता के शब्द शहर में बड़े हुए हैं, मगर जन्म गाँव के खेत खलिहानों में लिया है। जैसे कि वे लिखती हैं- बिरवा, बकरी का पगहा, रास्ता अगोरा तुमने आदि।

ऐसी अमूल्य रचनाओं को हम तक पहुँचाने के लिए जेन्नी जी को मैं धन्यवाद करता हूँ। और अंत में एक आशा भी है इन्हीं के शब्दों में- 
''अब तो यम से ही मानूँगी / विद्रोह का बिगुल / बज उठा है।''

हमारी दुआ है, आप किसी से न हारें, यम से भी नहीं और आपके श्राप का आशीर्वाद हम आपकी रचनाओं को देते हैं। जो इन्हें पढ़ें, उनको इनकी संवेदनाओं से इश्क़ हो!

अनिल पाराशर 'मासूम'
19.1.2020 
(आई.पी.एक्सटेंशन, दिल्ली)
___________________

12 comments:

  1. बधाई एवम शुभकामनाएं। लिखती रहें।

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छा लिखा है संगीता जी और अनिल जी ने। पुस्तक पढ़ने की उत्कंठा हो गई है। शुभकामनाएं आपको।

    ReplyDelete
  3. संगीता गुप्ता जी एवं अनिल पराशर ‘मासूम’ जी ने लम्हों के सफ़र के लिए बहुत सुंदर ,सटीक लिखा है।ज़ेन्नी जी बढ़िया सृजन के लिए आपको हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  4. दोनों ही व्याख्याएँ बहुत सुंदर हैं। आपको बहुत बहुत बधाई जेनी जी और अग्रिम शुभकामनाएँ..💐💐

    ReplyDelete
  5. Blogger सुशील कुमार जोशी said...

    बधाई एवम शुभकामनाएं। लिखती रहें।

    October 11, 2020 at 9:43 AM Delete
    ________________________________________

    शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत शुक्रिया सुशील जी.

    ReplyDelete
  6. Blogger अरुण चन्द्र रॉय said...

    बहुत अच्छा लिखा है संगीता जी और अनिल जी ने। पुस्तक पढ़ने की उत्कंठा हो गई है। शुभकामनाएं आपको।

    October 11, 2020 at 11:52 AM Delete
    ____________________________________________

    मेरी पुस्तक ज़रूर पढ़िए, मुझे ख़ुशी होगी. अपनी राय अवश्य दीजियेगा, प्रतीक्षा रहेगी. धन्यवाद अरुण जी.

    ReplyDelete
  7. Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

    आपको हार्दिक बधाइयाँ।

    October 12, 2020 at 11:51 AM Delete
    ____________________________________________

    धन्यवाद शास्त्री जी.

    ReplyDelete
  8. Blogger Sudershan Ratnakar said...

    संगीता गुप्ता जी एवं अनिल पराशर ‘मासूम’ जी ने लम्हों के सफ़र के लिए बहुत सुंदर ,सटीक लिखा है।ज़ेन्नी जी बढ़िया सृजन के लिए आपको हार्दिक बधाई।

    October 13, 2020 at 6:32 PM Delete
    __________________________________________

    हृदय से आभार रत्नाकर जी.

    ReplyDelete
  9. Blogger Saras said...

    दोनों ही व्याख्याएँ बहुत सुंदर हैं। आपको बहुत बहुत बधाई जेनी जी और अग्रिम शुभकामनाएँ..💐💐

    October 14, 2020 at 7:27 PM Delete
    ____________________________________________________

    हार्दिक धन्यवाद सरस जी. पुस्तक छप चुकी है, जनवरी में ही लोकार्पण भी हुआ.

    ReplyDelete
  10. मेरा सौभाग्य है कि इस पुस्तक के बारे में मुझे कुछ लिखने को कहा गया, जिस कारण और भी ध्यान से इसे पढ़ सका। जेन्नी शबनम जी की कलम इन्हें ही कुरेदती रहती है। यूं लगता है जब कुछ लिखती हैं नयी पीड़ा से गुज़रती हैं और वो पीड़ा इन की खुराक बन चुकी है। इन के लेखन को सलाम इन की कविता एक ही शख़्स से प्रभावित है और वो और कोई नहीं खुद जेन्नी जी है। शुक्रिया मुझे सदा सम्मान देने के लिए आभार

    ReplyDelete
  11. Blogger masoomshayer said...

    मेरा सौभाग्य है कि इस पुस्तक के बारे में मुझे कुछ लिखने को कहा गया, जिस कारण और भी ध्यान से इसे पढ़ सका। जेन्नी शबनम जी की कलम इन्हें ही कुरेदती रहती है। यूं लगता है जब कुछ लिखती हैं नयी पीड़ा से गुज़रती हैं और वो पीड़ा इन की खुराक बन चुकी है। इन के लेखन को सलाम इन की कविता एक ही शख़्स से प्रभावित है और वो और कोई नहीं खुद जेन्नी जी है। शुक्रिया मुझे सदा सम्मान देने के लिए आभार

    October 25, 2020 at 10:01 AM Delete
    ______________________________________________________

    हृदय से आभार अनिल जी. आपकी सराहना, सहयोग और प्रोत्साहन लिखने की प्रेरणा देती है.

    ReplyDelete