Tuesday, February 19, 2019

63. पटरियों पर दौड़ती सपनों की रेल


अमृतसर जाने की ख़्वाहिश मुझे बचपन से थी। मेरे माता-पिता और भाई वहाँ जा चुके थे, सिर्फ़ मैं न जा सकी थी स्वर्ण मन्दिर और जलियाँवाला बाग़ के बारे में बचपन से सुनती और तस्वीर देखती आ रही थी वाघा बॉर्डर पर सैनिकों का परेड देखने की भी मेरी दिली तमन्ना थी दिल्ली में रहते हुए 19 साल हो गए, लेकिन कभी जाना न हो सका मेरे पति के एक क़रीबी मित्र जो रेलवे में कार्यरत हैं और उन दिनों दिल्ली में पदस्थापित थे, उनसे मैंने अमृतसर जाने की इच्छा जतलाई वे रेलवे के कार्य से अमृतसर जाते रहते हैं, तो उन्होंने कहा कि जब भी वे जाएँगे तो हमलोगों को साथ ले चलेंगे
19 फ़रवरी 2010 की रात में हमलोग निज़ामुद्दीन स्टेशन पहुँचे, जहाँ से हमलोगों को सैलून में चढ़ना था और अमृतसर जाने वाली गाड़ी में उसे जोड़ दिया जाना था सैलून में एक छोटी रसोई और खाना बनाने के लिए रसोइया था, फिर भी हमलोगों ने हल्दीराम से खाना ले लिया पहली बार सैलून में चढ़ना था इसलिए बहुत उत्साह था; क्योंकि मेरी माँ काफ़ी पहले सैलून में सफ़र कर चुकी हैं, तो ख़ूब सुना है सैलून के बारे में एक मज़ेदार घटना यह हुई कि स्टेशन पर मेरा चप्पल टूट गया मित्र ने अपने किसी आदमी से भेजकर मेरा चप्पल ठीक कराया, लेकिन जैसे ही मैं ट्रेन में चढ़ी कि फिर टूट गया मैंने हल्दीराम के झोले जिसमें खाना आया था, की रस्सी खोलकर चप्पल को इस तरह बाँधा कि सुबह अमृतसर पहुँचकर दूकान तक जा सकूँ
सैलून में ए.सी. लगा हुआ दो सोने का कमरा, जिसके साथ लगे बाथरूम में गीज़र भी था। ड्राइंग रूम और उसमें ही डाइनिंग टेबल, सिटिंग रूम जहाँ ऑफ़िस का काम किया जा सके, रसोईघर, साथ चलने वाले कर्मचारियों के लिए अलग से सोने के लिए बेड तथा बाथरूम आधा घंटा तो हमलोग भीतर ही घूमते रहे और फोटो लेते रहे कि पता नहीं फिर कभी सैलून में चढ़ें या नहीं सुबह उठने पर ट्रेन में नहाने का लोभ संवरण नहीं हुआ मैंने जीभरकर नहाया ट्रेन में नहाने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी, पर यहाँ तो ट्रेन नहीं बल्कि हिलता-डुलता हुआ घर लग लग रहा था सैलून में सबसे पीछे कुर्सी-टेबल लगा था, जहाँ अधिकारी ऑफ़िस का काम करते हैंवहाँ सुबह-सुबह बैठकर चाय पीते हुए पीछे छूटती रेलवे लाइन को देखना और धूप का आनन्द लेना बड़ा अच्छा लगा सुबह का चाय-नाश्ता सैलून की रसोई में बना, साथ ही किसी स्टेशन से आलू का पराठा, दही और अचार भी नाश्ते के लिए आया 
अमृतसर में ट्रेन से सैलून को निकालकर साइड ट्रैक में खड़ा कर दिया गया हमारे मित्र अपने ऑफ़िस का काम निपटाने लगे और हमलोग आराम से तैयार होते रहे, क्योंकि सैलून की सवारी का यह पहला मौक़ा था और जितना ज़्यादा हो सके हम इसका आनन्द लेना चाहते थे सैलून के हर कोने की तस्वीर हमलोगों ने ली, साथ ही उसके इंजन पर चढ़कर भी फोटो लिया






 
 
 
हमारे मित्र ने वहाँ गाड़ी का इन्तिज़ाम किया था, जो सीधे प्लेटफार्म जहाँ सैलून को रखा गया था, तक आ गई हम लोग सबसे पहले बाटा के दूकान गए जहाँ से मैंने एक चप्पल लिया और टूटे हुए चप्पल को अमृतसर के उस दूकान के हवाले कर दिया, वहाँ की मिट्टी में मिल जाने के लिए; शायद उसका अन्तिम संस्कार वहीं होना था फिर हमलोग स्वर्ण-मन्दिर पहुँचे, जहाँ मित्र के परिचितों ने दर्शन कराने का सारा इन्तिज़ाम कर रखा था, ताकि लम्बी पंक्ति में न लगना पड़े सहज ही दर्शन हो गया प्रसाद के रूप में गेरुआ रंग का एक-एक कपड़ा सभी को मिला, बाद में हलवा भी मिलाफिर वहाँ के लंगर में पंक्तिबद्ध बैठकर हमने रोटी-दाल खाई वहाँ से हमलोग जलियाँवाला बाग़ देखने गए। 
 

जलियाँवाला बाग़ का नाम सुनते ही जैसे सिहरन-सी महसूस होती है इतने बड़े नरसंहार की कल्पना से रोंगटे खड़े हो जाते हैं गोलियों से बने सुराख़ के निशान दीवारों में दिख रहे थे वह कुआँ भी देखा, जिसमें जान बचाने के लिए लोग कूद गए थे जिस जगह के लिए अब तक सुना था, आँखों से देख रही थी, लेकिन स्मृतियों में उस समय के हालात थे, जिससे मन बहुत व्याकुल होने लगा।  

अब हम लोग वाघा बॉर्डर जा रहे थे मन में एक अजीब-सी हलचल थी, पकिस्तान को इतने नज़दीक से देखने की फ़िल्म 'वीर ज़ारा' के दृश्य आँखों में घूम रहे थे वाघा बॉर्डर से पहले किसी सैनिक कैंप में हमलोगों के लिए चाय-नाश्ते का प्रबन्ध था वहाँ से हमलोगों को वाघा बॉर्डर ले जाया गयादर्शक दीर्घा में बहुत अच्छी जगह बैठने का इन्तिज़ाम था, जिससे सामने होने वाले कार्यक्रम को ठीक से देखा जा सके बहुत ज़्यादा भीड़ थी पता चला कि दोनों तरफ़ हर रोज़ परेड देखने स्थानीय लोगों और पर्यटकों की ऐसी ही भीड़ होती है उस दिन के आयोजन में सम्मिलित होने भारत के तात्कालीन गृहमंत्री श्री पी. चिदंबरम आए थे अपने नियत समय पर कार्यक्रम शुरू हुआ।  
दोनों देशों के बीच के गेट को खोलने का एक अलग ही तरीक़ा है गेट खोलने के बाद दोनों देश के जवान परेड करते हैं जितना ऊँचा हो सके पाँव को उठाकर ज़ोर से पटकते हैं इतनी ज़ोर से मानो सामने दुश्मन है और उसे हुंकारकर युद्ध के लिए ललकार रहे हों कोई भी किसी से ज़रा भी कमतर नहीं। हाथ भी मिलाते हैं तो लगता है जैसे दो दुश्मन हाथ मिला रहे हों समाप्ति पर गेट बंद होता है; उस समय भी एक दूसरे को वैसे ही ललकारते हैं समाप्ति के बाद सभी ऐसे हँसते-बोलते हैं जैसे कि अब तक जो हुआ, वह एक तमाशा था 
 
जिस तरह वे हुंकार भर रहे थे, मेरे ज़ेहन में एक ही बात आई कि क्या ऐसा करना उचित है युद्ध तो नहीं छिड़ा है जो एक देश दूसरे को ललकार रहा है और दूसरा देश भी वैसे ही जवाब दे रहा है। परन्तु यह भी सत्य है कि पाकिस्तान द्वारा भारत की ज़मीन पर किए गए जबरन कब्ज़े के कारण समय-समय पर युद्ध एवं आतंकवादियों को संरक्षण दिए जाने के कारण पाकिस्तान से दोस्ताना सम्बन्ध कदापि सम्भव नहीं है और न कभी होगा एक अजीब-सी बात मुझे दिखी कि पकिस्तान में स्त्रियों और पुरुषों को अलग-अलग बिठाया गया था जबकि हमारे यहाँ ऐसा नहीं है निःसंदेह पाकिस्तान में स्त्रियों को पुरुषों के बराबर आज भी नहीं समझा जाता है  

अब अँधेरा घिर रहा था, हमलोग अटारी स्टेशन गए जहाँ से भारत और पाकिस्तान के बीच ट्रेन चलती है। वीर ज़ारा का शाहरुख़ और प्रीती जिंटा मेरे सामने जीवन्त हो गए उनकी प्रेम कहानी को मैं भारत और पकिस्तान के बॉर्डर पर ढूँढती रही हाँ! ऐसा प्रेम तो काल्पनिक ही हो सकता है, यथार्थ में कहीं भी इसका एक अंश भी नहीं दिखता है अंततः हम लौट आए रेलवे का वह शानदार सैलून जो एक दिन के लिए हमारा पटरियों पर दौड़ता सपनों का घर बना था, हमारे इन्तिज़ार में पलकें बिछाए बैठा था 
अक्सर दिल में यह ख़याल आता है कि हमारा अतीत हमें उस दुनिया की सैर करा लाता है जहाँ हम दोबारा जा तो सकते हैं मगर एहसास वैसा नहीं होता जैसा पहली बार होता है अमृतसर, जलियाँवाला बाग़, वाघा बॉर्डर, अटारी स्टेशन तथा रेलवे के सैलून में मैं कभी फिर दोबारा जाऊँ कि न जाऊँ, लेकिन एक दिन का वह सफ़र ढेरों यादें दे गया।  

- जेन्नी शबनम (19.2.2019)
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41 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (21-02-2019) को "हिंदी साहित्य पर वज्रपात-शत-शत नमन" (चर्चा अंक-3254) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    देश के अमर शहीदों और हिन्दी साहित्य के महान आलोचक डॉ. नामवर सिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का ताना-बाना अमृतसर की गलियों में ही बुना गया है

    अमृतसरी पापड़ और वड़ियों के चर्चे तो सारी दुनिया में हैं। गोल्डन टैंपल के पीछे पूरा पापड़ बाज़ार

    उधर पुराने अमृतसर की गलियों में सौ सालों से जारी 'केसर दा ढाबा' देसी घी के वेज फूड के लिए जाना जाता है। मा दी दाल के ऊपर गर्मागर्म देसी घी डलवा-डलवा कर लोग चाव से खाते हैं। बेंगन का भरता, मटर पनीर वगैरह आइटम गिनी-चुनी हैं, लेकिन जो खाता है, स्वाद भूल नहीं पाता। ढाबे की शुरुआत केसर मल ने करीब 100 साल पहले अब के पाकिस्तान के शेखपुरा से की थी।

    सत्तर के दशक में, देश का पहला मल्टी स्क्रीन सिनेमाहॉल यहीं बना और खूब चला। नाम था - सूरज, चांद और सितारा। एक ही परिसर में तीन हॉल और सभी में अलग-अलग फिल्म का मजा क्या था। संयोग है कि पी वी आर की शुरूआत करने वाले बिजली भाइयों के पिता बिजली पहलवान अमृतसर के ही हैं।

    जेन्नी जी ...जब फिर मौक़ा मिले तो दो दिन का ट्रिप ले कर जाएँ ..और अमृतसर को अनोखा लुत्फ़ उठायें राजेश जी को मेरा नमस्कार

    सप्रेम

    विनोद कुमार ऐलावादी

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  3. बेहतरीन...
    मंगलवार की प्रस्तुति में इसे स्थान देंगे
    पाँच लिंको का आनन्द में
    सादर..

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  4. लगा हम बी साथ यात्रा कर रहे हैं..सजीव...सही कहा कि अक्सर दिल में यह ख़याल आता है कि हमारा अतीत हमें उस दुनिया की सैर करा लाता है जहाँ हम दोबारा जा तो सकते हैं मगर एहसास वैसा नहीं होता जैसा पहली बार होता है...

    उम्दा वृतांत

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  5. बहुत अच्छा संस्मरण । आपका गद्य भी पद्य की तरह पाठक को बाँध लेता है।

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  6. बहुत जीवन्त चित्रण किया है -जो व्यक्ति 1947 पूर्व के भारत में रह चुका है उसके लिएऐसे विभाजन और उसके परिणामो के देखना कष्टकर होता है.

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  7. "सपनों की रेल" वास्तव में स्वप्निल अनुभूति जैसी ही है।
    इस संस्मरणात्मक सुंदर सजीव चित्रण के लिए हार्दिक बधाई! सैलून की मेरे लिए जानकारी नई है जिसके लिए आपको साधुवाद एवं आत्मिक आभार !!

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  8. "सपनों की रेल" वास्तव में स्वप्निल अनुभूति जैसी ही है।
    इस संस्मरणात्मक सुंदर सजीव चित्रण के लिए हार्दिक बधाई! सैलून की मेरे लिए जानकारी नई है जिसके लिए आपको साधुवाद एवं आत्मिक आभार !!

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  9. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 26 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  10. रोचक चर्चा।
    शासकीय अधिकारी अपने परिचितों को वह सुविधाएँ उपलब्ध कराएँ जिसके वे पात्र नहीं है, यह कितना उचित है? इसे व्यक्तिगत न लें। भारत रत्न सर विश्वेश्वरैया मैसूर राज्य के दीवान थे। अपने दौरे के बीच किसी गाँव में कैम्प कर अपना काम निबटा रहे थे। कुछ दे बात उन्होंने उठकर अपने सामान में से मोमबत्ती निकाल कर जलाई और पहले से जल रही माँ बत्ती बुझाकर कुछ लिखने लगे। लेखन समाप्त होने पर किसी ने पूछा मोमबत्ती तो पहले से जल रही थी, अपने दूसरी मोमबत्ती जलाकर पहली क्यों बुझाई? पहली मोमबत्ती में ही लिख लेते।

    एम्.वी. ने उत्तर दिया पहली मोमबत्ती सरकारी है, उसे जलाकर सरकारी काम कर रहा था। वह ख़तम होने पर घर पर समाचार देने के लिए पत्र लिखना था, वह निजी काम करने में सरकारी मोमबत्ती कैसे जलाता? दूसरी मोमबत्ती मेरी व्यक्तिगत है इसलिए उसे जलाकर व्यक्तिगत कार्य किया।

    क्या आज ऐसी कल्पना भी की जा सकती है?

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  11. सुन्दर सचित्र वर्णन...

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  12. आपने बहुत खुबसूरत तस्वीरों के संग अपनी यादगार यात्रा का बहुत सुन्दर वर्णन किया.लाजवाब.
    अशोक आंद्रे

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  13. बहुत रोचक यात्रा वृतांत ।

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  14. बहुत सुंदर यात्रा संस्मरण।

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  15. आदरणीय श्रीमती सम्पाद्ज जेनी शबनम जी ,
    आपके आदेशानुसार मैंने स्नेहपूर्वक आपका ब्लॉग देखा और विहंगम दृष्टि से कुछ पढ़ा भी मुझे अत्यंत रुचिकर और आकर्षक लगा | आपने मीराकुमार जो भूतपूर्व संसद की स्पीकर थीं उनके विषय में पढकर मेरे मन को बहुत ठोस लगी | मीराकुमार एक आदर्श भारतीय नारी है और गांधी जी के विचारों का एक ज्वलंत उदाहरण रही हैं | वह अनुकरणीय महिला हैं | उनके प्रति अनुचित शब्द प्रयोग करना मानवता का अपमान है | शेष सभी अंश महत्वपूर्ण हैं | आप इसी प्रकार हिन्दी कि सेवा करती रहें | मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं | शुभ -कांक्षी -श्याम त्रिपाठी -प्रमुख सम्पादक हिन्दी चेतना कैनेडा

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  16. बहुत ही ज़बरदस्त... बेहतरीन पोस्ट

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  17. वाह ! आपका यह संक्षिप्त संस्मरण भी बड़ा रोचक था...| सबसे अच्छी बात ये कि न केवल अमृतसर जाने का आपका सपना पूरा हुआ बल्कि आपने यात्रा भी एक अलग ही अंदाज़ में की | आपकी इस पोस्ट के बहाने हमें भी सलून देखने का मौक़ा मिला |
    इस प्यारी सी पोस्ट के लिए दिल से बहुत बधाई...|

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  18. Blogger रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said...
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (21-02-2019) को "हिंदी साहित्य पर वज्रपात-शत-शत नमन" (चर्चा अंक-3254) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    देश के अमर शहीदों और हिन्दी साहित्य के महान आलोचक डॉ. नामवर सिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    February 20, 2019 at 8:33 PM
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    लिंक और सूचना देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री जी.

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  19. Blogger VINOD KUMAR AILAWADI said...
    चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का ताना-बाना अमृतसर की गलियों में ही बुना गया है

    अमृतसरी पापड़ और वड़ियों के चर्चे तो सारी दुनिया में हैं। गोल्डन टैंपल के पीछे पूरा पापड़ बाज़ार

    उधर पुराने अमृतसर की गलियों में सौ सालों से जारी 'केसर दा ढाबा' देसी घी के वेज फूड के लिए जाना जाता है। मा दी दाल के ऊपर गर्मागर्म देसी घी डलवा-डलवा कर लोग चाव से खाते हैं। बेंगन का भरता, मटर पनीर वगैरह आइटम गिनी-चुनी हैं, लेकिन जो खाता है, स्वाद भूल नहीं पाता। ढाबे की शुरुआत केसर मल ने करीब 100 साल पहले अब के पाकिस्तान के शेखपुरा से की थी।

    सत्तर के दशक में, देश का पहला मल्टी स्क्रीन सिनेमाहॉल यहीं बना और खूब चला। नाम था - सूरज, चांद और सितारा। एक ही परिसर में तीन हॉल और सभी में अलग-अलग फिल्म का मजा क्या था। संयोग है कि पी वी आर की शुरूआत करने वाले बिजली भाइयों के पिता बिजली पहलवान अमृतसर के ही हैं।

    जेन्नी जी ...जब फिर मौक़ा मिले तो दो दिन का ट्रिप ले कर जाएँ ..और अमृतसर को अनोखा लुत्फ़ उठायें राजेश जी को मेरा नमस्कार

    सप्रेम

    विनोद कुमार ऐलावादी

    February 24, 2019 at 10:58 PM
    _______________________________________

    अरे वह आपको तो अमृतसर के चप्पे चप्पे की जानकारी है. अगली बार अगर जा सके तो अवश्य इन सभी जगहों को देखने जाएँगे और खाने का भी लुत्फ़ लेंगे. आपका बहुत बहुत आभार विनोद जी. राजेश जी को आपका नमस्कार पहुँचा देंगे.

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  20. Blogger Digvijay Agrawal said...
    बेहतरीन...
    मंगलवार की प्रस्तुति में इसे स्थान देंगे
    पाँच लिंको का आनन्द में
    सादर..

    February 24, 2019 at 11:10 PM
    ____________________________________

    पांच लिंकों में मेरी लेखनी को स्थान देने के लिए हृदय से धन्यवाद दिग्विजय जी.

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  21. Blogger Udan Tashtari said...
    लगा हम बी साथ यात्रा कर रहे हैं..सजीव...सही कहा कि अक्सर दिल में यह ख़याल आता है कि हमारा अतीत हमें उस दुनिया की सैर करा लाता है जहाँ हम दोबारा जा तो सकते हैं मगर एहसास वैसा नहीं होता जैसा पहली बार होता है...

    उम्दा वृतांत

    February 24, 2019 at 11:36 PM
    _____________________________________________

    उड़न तश्तरी पर यूँ भी आप काफी यात्राएँ करते हैं, अच्छा है जो इस बार मेरे ब्लॉग के साथा यात्रा कर लिए समीर जी. मेरे एहसास को समझने के लिए तहे दिल से शुक्रिया.

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  22. Blogger RAMESHWAR KAMBOJ HIMANSHU said...
    बहुत अच्छा संस्मरण । आपका गद्य भी पद्य की तरह पाठक को बाँध लेता है।

    February 24, 2019 at 11:40 PM
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    आपने सदा मुझे और मेरी लेखनी को प्रोत्साहित किया है, बहुत-बहुत धन्यवाद भैया.

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  23. Blogger प्रतिभा सक्सेना said...
    बहुत जीवन्त चित्रण किया है -जो व्यक्ति 1947 पूर्व के भारत में रह चुका है उसके लिएऐसे विभाजन और उसके परिणामो के देखना कष्टकर होता है.

    February 25, 2019 at 10:41 AM
    ________________________________________

    सचमुच अंग्रेजी शासन की क्रूरता, देश का विभाजन और उससे जुड़ी यादें दिल दुखाती हैं. प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद प्रतिभा जी.

    ReplyDelete

  24. Blogger Rekha said...
    "सपनों की रेल" वास्तव में स्वप्निल अनुभूति जैसी ही है।
    इस संस्मरणात्मक सुंदर सजीव चित्रण के लिए हार्दिक बधाई! सैलून की मेरे लिए जानकारी नई है जिसके लिए आपको साधुवाद एवं आत्मिक आभार !!

    February 25, 2019 at 10:56 AM
    ___________________________________________

    मेरे लिए भी सैलून की सवारी पहली बार थी, जो बहुत सुखद अनुभूति है. आपको मेरा संस्मरण अच्छा लगा, इसके लिए धन्यवाद रेखा जी.

    ReplyDelete
  25. Blogger yashoda Agrawal said...
    आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 26 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    February 25, 2019 at 11:31 AM
    _______________________________________

    पाँच लिंकों में शामिल करने के लिए धन्यवाद यशोदा जी.

    ReplyDelete

  26. Blogger sanjiv verma said...
    रोचक चर्चा।
    शासकीय अधिकारी अपने परिचितों को वह सुविधाएँ उपलब्ध कराएँ जिसके वे पात्र नहीं है, यह कितना उचित है? इसे व्यक्तिगत न लें। भारत रत्न सर विश्वेश्वरैया मैसूर राज्य के दीवान थे। अपने दौरे के बीच किसी गाँव में कैम्प कर अपना काम निबटा रहे थे। कुछ दे बात उन्होंने उठकर अपने सामान में से मोमबत्ती निकाल कर जलाई और पहले से जल रही माँ बत्ती बुझाकर कुछ लिखने लगे। लेखन समाप्त होने पर किसी ने पूछा मोमबत्ती तो पहले से जल रही थी, अपने दूसरी मोमबत्ती जलाकर पहली क्यों बुझाई? पहली मोमबत्ती में ही लिख लेते।

    एम्.वी. ने उत्तर दिया पहली मोमबत्ती सरकारी है, उसे जलाकर सरकारी काम कर रहा था। वह ख़तम होने पर घर पर समाचार देने के लिए पत्र लिखना था, वह निजी काम करने में सरकारी मोमबत्ती कैसे जलाता? दूसरी मोमबत्ती मेरी व्यक्तिगत है इसलिए उसे जलाकर व्यक्तिगत कार्य किया।

    क्या आज ऐसी कल्पना भी की जा सकती है?
    February 25, 2019 at 12:51 PM
    ________________________________________

    संजीव वर्मा जी,
    सर विश्वेश्वेरैया जी ने जो किया वह न सिर्फ प्रशंसनीय है बल्कि अनुकरणीय भी है. ऐसे लोग विरले ही होते हैं. अब तो ऐसे लोग नहीं मिलेंगे. सच है कि कल्पना भी नहीं की जा सकती.
    जहाँ तक प्रश्न है मेरी ऐसी यात्रा की, तो जो भी नियम और प्रावधान है उसे पूरा करते हुए ही हमलोग गए थे.
    आपकी जागरूक प्रतिक्रिया ने मेरा मान बढाया है, इसके लिए आपका हृदय से धन्यवाद.

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  27. Blogger sudha devrani said...
    सुन्दर सचित्र वर्णन...

    February 26, 2019 at 11:50 PM
    ________________________________

    प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद सुधा जी.

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  28. Anonymous Anonymous said...
    आपने बहुत खुबसूरत तस्वीरों के संग अपनी यादगार यात्रा का बहुत सुन्दर वर्णन किया.लाजवाब.
    अशोक आंद्रे

    February 27, 2019 at 9:47 AM
    _____________________________________

    सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल से आभार अशोक आंद्रे जी.

    ReplyDelete
  29. Blogger रेखा श्रीवास्तव said...
    बहुत रोचक यात्रा वृतांत ।

    February 27, 2019 at 2:24 PM
    __________________________________

    टिप्पणी के लिए धन्यवाद रेखा जी.

    ReplyDelete

  30. Blogger मन की वीणा said...
    बहुत सुंदर यात्रा संस्मरण।

    February 27, 2019 at 4:49 PM
    ____________________________________

    बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी.

    ReplyDelete
  31. Blogger Shiam said...
    आदरणीय श्रीमती सम्पाद्ज जेनी शबनम जी ,
    आपके आदेशानुसार मैंने स्नेहपूर्वक आपका ब्लॉग देखा और विहंगम दृष्टि से कुछ पढ़ा भी मुझे अत्यंत रुचिकर और आकर्षक लगा | आपने मीराकुमार जो भूतपूर्व संसद की स्पीकर थीं उनके विषय में पढकर मेरे मन को बहुत ठोस लगी | मीराकुमार एक आदर्श भारतीय नारी है और गांधी जी के विचारों का एक ज्वलंत उदाहरण रही हैं | वह अनुकरणीय महिला हैं | उनके प्रति अनुचित शब्द प्रयोग करना मानवता का अपमान है | शेष सभी अंश महत्वपूर्ण हैं | आप इसी प्रकार हिन्दी कि सेवा करती रहें | मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं | शुभ -कांक्षी -श्याम त्रिपाठी -प्रमुख सम्पादक हिन्दी चेतना कैनेडा

    March 1, 2019 at 6:33 AM
    ______________________________________________

    आदरणीय श्याम जी,
    यह मेरा आदेश नहीं बल्कि विनम्र अनुरोध है कि मेरी लेखनी पर आपकी प्रतिक्रिया हो ताकि अपनी लेखनी का आकलन मैं कर सकूँ. आपने मेरा निवेदन स्वीकार कर सार्थक प्रतिक्रिया दी, इसके लिए मैं हृदय से आभारी हूँ.
    मीरा कुमार के लिए की गई टिप्पणी ने मुझे भी बहुत आहत किया था, इसी लिए 'छोटी बात, जात और मैं' लेख मैंने लिखा था. विदुषी और आदर्श महिला के लिए ऐसे शब्द न सिर्फ आपत्तिजनक हैं बल्कि भारतीयता के लिए भी अपमानजनक है. बहुत दुखद है कि यह सब हो ही रहा है. लोगों की सोच अब तक नहीं बदली.
    आपका स्नेहाशीष मुझे मिला मन से आभार.

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  32. Blogger संजय भास्‍कर said...
    बहुत ही ज़बरदस्त... बेहतरीन पोस्ट

    March 1, 2019 at 3:06 PM
    __________________________________

    टिप्पणी के लिए बहुत धन्यवाद संजय जी.

    ReplyDelete
  33. बहुत ही रोचक और मजेदार यात्रा ट्रेवलॉग लिखा आपने....

    ReplyDelete

  34. Apoorva Joshi
    Mon, 25 Feb, 10:29 (11 days ago)
    to me

    Dear Dr.Jenny,

    Interesting memoir. Kindly feel free to send your writings tome for our magazinee "PAKHI".

    Best Regards /Apoorva Joshi --- Editor Pakhi
    ______________________________________________

    बहुत बहुत धन्यवाद अपूर्वा जी.

    ReplyDelete

  35. divik ramesh
    25 Feb 2019, 17:32 (11 days ago)
    to me

    एक अच्छा संस्मरण पढ़वाने के लिए आभारी हूं। आपको बधाई।
    सैलून में तो मेंने कभी नहीं सफर किया , बल्कि कहूं कि उसे कभी देखा भी नहीं लेकिन आपके चित्रण ने उसे मेरी निगाहों के सामने ला दिया।
    हां जिन-जिन स्थानों का आपने अनुभव साझा किया है उन सब स्थानों का अनुभव मुझे भी है।

    शुभकामनाओं के साथ,

    दिविक रमेश
    ________________________

    मेरी यात्रा और संमरण से आपकी यादें ताज़ा हो गईं, अच्छा लगा. सैलून का सफ़र इतना रोमांचक अनुभव था कि इसे साझा करने का मन हुआ. आपको मेरी लेखनी पसंद आई, धन्यवाद दिविक रमेश जी.

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  36. SATISHRAJ PUSHKARANA
    25 Feb 2019, 10:12 (11 days ago)
    to me

    Apka yeh sansmaran saloon ko zyada focus karata hai. Vagha boarder ko kum.Swarn Mandir aur Jalinawala bagh gaun ho gaye hein.
    Kulmilaker ye na to sansmaran hi ban paya na hi yatra sansmaran.
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    आदरणीय पुष्करणा जी,
    सैलून की यात्रा मेरे लिए रोमांचक थी इसलिए इस संस्मरण में मैंने सैलून को ही फोकस किया है. यह संस्मरण यात्रा-संस्मरण भले न हो या लिख न पाई हूँ, परन्तु मेरे लिए वह एक संमरण है जो सैलून की यात्रा पर है. आपकी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद. आशा है कि आपकी स्पष्ट प्रतिक्रिया यूँ ही मिलती रहेगी ताकि अपनी लेखनी में सुधार एवं प्रखरता ला सकूँ. आभार!

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  37. Blogger प्रियंका गुप्ता said...
    वाह ! आपका यह संक्षिप्त संस्मरण भी बड़ा रोचक था...| सबसे अच्छी बात ये कि न केवल अमृतसर जाने का आपका सपना पूरा हुआ बल्कि आपने यात्रा भी एक अलग ही अंदाज़ में की | आपकी इस पोस्ट के बहाने हमें भी सलून देखने का मौक़ा मिला |
    इस प्यारी सी पोस्ट के लिए दिल से बहुत बधाई...|

    March 4, 2019 at 1:43 PM
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    प्रियंका जी, यात्रा तो बहुत करते हैं लेकिन इस यात्रा का अनुभव ही अलग था. इतने सालों बाद इन तस्वीरों ने मुझे मेरी इस रोमांचक यात्रा की याद दिलाई, इसलिए आपलोगों से साझा करने का मन हुआ. बहुत बहुत धन्यवाद.

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  38. Blogger Mahfooz Ali said...
    बहुत ही रोचक और मजेदार यात्रा ट्रेवलॉग लिखा आपने....

    March 7, 2019 at 8:01 PM Delete
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    सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया महफूज़ जी.

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  39. शबनम, हाल में ही तुम्हारा फोन आया था पर पता नहीं आवाज की आवा जाही क्यों रुक गई।फिर तुम्हारा ब्लॉग खोला, पढ़ा, बहुत अच्छा लिखती हो तुम वर्षों से लिख रही हो।सोचकर कि तुम हरदम चल रही हो ,सुखद है मेरे लिए।'स्त्री लेखन:प्रतिरोध की संस्कृति 'विषय पर कुछ लिखो।अनुभव के आधार पर।
    स्वर्णमंदिर मैं भी अब तक गई नहीं, तुम्हारी सैलून से की गई यात्रा बड़ी शानदार रही होगी।चलचित्र -से वर्णन का जीवंत अनुभव हुआ।यूँ ही लिखती रहो।
    दुर्गा दा आये थे तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे।

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  40. Blogger manju rani singh said...
    शबनम, हाल में ही तुम्हारा फोन आया था पर पता नहीं आवाज की आवा जाही क्यों रुक गई।फिर तुम्हारा ब्लॉग खोला, पढ़ा, बहुत अच्छा लिखती हो तुम वर्षों से लिख रही हो।सोचकर कि तुम हरदम चल रही हो ,सुखद है मेरे लिए।'स्त्री लेखन:प्रतिरोध की संस्कृति 'विषय पर कुछ लिखो।अनुभव के आधार पर।
    स्वर्णमंदिर मैं भी अब तक गई नहीं, तुम्हारी सैलून से की गई यात्रा बड़ी शानदार रही होगी।चलचित्र -से वर्णन का जीवंत अनुभव हुआ।यूँ ही लिखती रहो।
    दुर्गा दा आये थे तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे।

    March 9, 2019 at 12:33 PM
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    मंजू दी, आपको यहाँ देखकर सुखद लगा. हाँ चल तो रही हूँ पर अब भी शान्ति निकेतन के वे दिन मुझे ठहरा देते हैं, बहुत सुकून था वहाँ उस समय और स्वर्णिम समय था मेरा. आप सभी से मिलना और वक़्त बीतना, मन उन दिनों की ही तरह जीना चाहता है.
    आपके सुझाए विषय पर लिखने का प्रयत्न करूँगी. दुर्गा दा से भी इधर बात नही कर सकी. यूँ सन्देश का आदान प्रदान होता है. आपका बहुत धन्यवाद. यूँ ही मेरा हौसला बढ़ाने आते रहिए. सादर.

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  41. An outstanding share! I have just forwarded this onto a colleague who had been doing a little homework on this.
    And he actually bought me lunch because I discovered it for
    him... lol. So allow me to reword this.... Thank YOU
    for the meal!! But yeah, thanx for spending
    time to talk about this topic here on your internet
    site.

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