आज दिनांक 10.10.10 है। मुझे याद भी न रहा आज का यह दिन! जाने कैसे भूल गई, जबकि मेरे बच्चे ऐसे ख़ास दिन याद दिलाते रहते हैं। जानती हूँ कि आज का ये दिन दोबारा नहीं आएगा। वैसे सच कहा जाए तो कोई भी पल जो गुज़र जाता है दोबारा नहीं आता। फिर भी कोई एक ख़ास तारीख़, कोई ख़ास बात यादों का हिस्सा बन जाती है। आज मैं एक कविता लिखी 'जीवन के बाद रूह का सफ़र' और जब तिथि देखी तो कहा अरे वाह! मेरी एक निशानी, आज के दिन के लिए। जब भी इस कविता को पढूँगी यह दिन 10.10.10 भी दिखेगा और यह भी याद रहेगा कि आज मेरी बेटी ख़ुशी यहाँ नहीं है। मेरी बेटी के जन्म लेने पर मेरे बेटे ने उसका नाम ख़ुशी रखा, वैसे स्कूल का नाम परान्तिका है। आजकल वह मुझसे दूर है, अपने पिता के साथ भागलपुर में ख़ुशियाँ बाँट रही है।
यों मैं हर दिन को कोई न कोई ख़ास दिन मानती हूँ, और चाहती हूँ कि हर दिन ख़ुशहाल बीते। पर इधर कुछ दिनों से अस्वस्थ हूँ, चलने और लिखने में परेशानी हो रही है। फिर भी कोशिश करती रहती है कि लिखना जारी रखूँ, वर्ना और भी उदासी छा जाएगी। एक तो तबीयत की वज़ह से दुःखी हूँ और उस पर मेरी बेटी अपने पापा के साथ भागलपुर चली गई, क्योंकि कॉमन वेल्थ गेम्स के लिए उसका स्कूल बंद है। उसे भागलपुर में ज़्यादा मज़ा भी आता है; क्योंकि वहाँ पूरी आज़ादी है, बेफ़िक्र होकर खेलती है अपने मित्रों के साथ।
मेरे बेटे अभिज्ञान की 'ए' लेवल (12वीं) की बोर्ड परीक्षा 13 अक्टूबर से शुरू हो रही है, इसलिए मैं नहीं जा सकती थी इन छुट्टियों में। मैं और मेरा बेटा घर में हैं। वह अपने कमरे में बंद रहता है, कभी परीक्षा के लिए पढ़ता है, कभी किन्डल (ई-बुक) पर कोई ई-किताब पढ़ता है, कभी गिटार बजाता है, कभी पी.एस.पी. पर कोई गेम खेलता है या कंप्यूटर में व्यस्त रहता है और बीच-बीच में आकर अपना चेहरा दिखा देता है।
जिस दिन मेरी बेटी भागलपुर गई उसी दिन कॉमन वेल्थ गेम्स के शुरुआत का समारोह था। यों चलने में मुझे बहुत परेशानी थी, बावजूद अपने पति से कहकर पास का प्रबंध कराया। मैंने कह दिया था कि चाहे पास का प्रबंध करो या टिकट का, पर मुझे जाना है देखने; क्योंकि अपने पाँव को लेकर मैं बहुत परेशान थी और लगा कि शायद अब कभी ऐसा समारोह देख पाऊँगी या नहीं। पता नहीं मेरे हाथ-पाँव का क्या हो, इसलिए इस मौक़ा को गँवाना नहीं है। पर 2 घंटे खड़ा रहना मेरे लिए और भी बड़ी मुसीबत बन गई। ख़ैर रुक-रुककर धीरे-धीरे मैं और मेरा बेटा वहाँ तक पहुँचे और समारोह ख़त्म होने तक हमने जीभरकर आनन्द लिया। बेटे ने अपने बड़े-से कैमरे से ख़ूब सारी तस्वीर लीं।
दूसरे दिन घर में जैसे सन्नाटा पसरा हो। कहीं कोई आवाज़ नहीं, कोई चहल-पहल नहीं। मेरी बेटी स्कूल से आते ही खाना और टी.वी. देखना एक साथ शुरू करती है। सी.आई.डी. उसका सबसे प्रिय सीरियल है और जब तक मैं मना न करूँ वह देखती रहती है। वह चुप होकर भी घर में रहे, तो लगता है कि घर भरा हुआ है।
आज तक कभी ऐसा न हुआ कि वह मुझसे अलग कहीं दूर गई हो। जब वह 4 साल की थी, तब से मैं उसे छोड़कर भागलपुर जाती रही हूँ। भागलपुर में काफ़ी काम रहता था उन दिनों। जब मैं जाती थी छोड़कर तो मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि उसे कैसा लग रहा होगा। शुरू में वह रोती थी, बाद में उसके एक चाचा उसे घूमाने ले जाते और एक डेरी मिल्क जिसे वह काकू कहती थी, उसे देते और वह काकू पाकर मगन! थोड़ी बड़ी हुई तो ख़ुद कहती कि जाओ तुम और वह चाचा-चाची के साथ काफ़ी खुश रहती थी। अब तो उसे ज़्यादा फ़िक्र नहीं कि मैं कहाँ हूँ, अगर शहर से बाहर भी हूँ तो उसे कोई मुश्किल नहीं। अगर यहाँ हूँ तो स्कूल से आने के बाद बस इतना कि मैं घर में होनी चाहिए और वह टी.वी. में मस्त!
जाने क्यों बार-बार यही सोच रही हूँ कि वह होती तो यह करती वह करती, हम सिनेमा जाते आज, या फिर वह मेरे पसन्द का कुछ खाना बनाकर लाती। कभी शाहरुख़ खान या सलमान खान अगर दिख जाए टी.वी. में तो दौड़कर आकर टी.वी. खोल देती कि जल्दी देखो तुम्हारा फेवरिट हीरो। वह जानती है कि मैं कभी टी.वी. नहीं देखती, लेकिन अगर वे दोनों हों तो ज़रूर देखती हूँ।
भागलपुर उसके दादा-दादी भी साथ गए हैं और नानी तो वहीं रहती हैं। कभी नानी के घर तो कभी अपने घर घूम रही है। मेरे पति काफ़ी बड़े पैमाने पर दुर्गा पूजा करते हैं, तो ख़ूब धूम मचा है वहाँ। उसे फ़ोन करूँ तो जल्दी से बात करके भागेगी, जैसे कि क्या न छूट रहा हो। सोचती हूँ अच्छा है वह मुझ जैसी नहीं बन रही। अभी से अपना अलग व्यक्तित्व और अपना एक अलग स्थान चाहती है।
एक बेटी का घर में होना कितना ज़रूरी है, अब समझ में आ रहा है। मेरी माँ मेरी शादी से पहले कहती थी कि जब तुम्हारी शादी हो जाएगी तो घर कौन देखेगा, कौन रोज़ सुबह स्कूल जाने से पहले मेरी साड़ी के प्लीट ठीक करेगा। आज मैं भी सोच रही हूँ कि एक-एककर वह मेरी तरह घर की जवाबदेही लेने लगी है। मैं 12 साल के बाद यह सब करने लगी थी और वह तो 8 साल से ही जैसे मेरी माँ बन गई है। कहेगी यह पहनो वह पहनो, तरह-तरह के सामान लाएगी। अभी 3 दिन के लिए स्कूल से घूमने के लिए जयपुर गई, तो मेरे लिए वहाँ की प्रसिद्ध लाह की चूड़ी लाई।
जानती हूँ वह भी एक दिन इसी तरह से इस घर से चली जाएगी, जैसे एक दिन मैं अपना घर छोड़ आई थी। मैं भी उसी तरह से उदास होऊँगी जैसे मेरी माँ रहती थी। मैं जिस तरह व्यस्त हूँ अपने घर और काम में, एक दिन वह भी हो जाएगी। जैसे मेरी माँ को आदत हो गई मेरे बिना रहने की, मुझे भी हो जाएगी।
अपना बचपन याद आता है मुझे। एक गाना है ''बाबुल की दुआएँ लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले'' मेरे पापा अक्सर यह गाना सुनते और रो देते थे, मेरी माँ से कहते कि जेन्नी एक दिन चली जाएगी इस घर से। अब जब भी मैं ये गाना सुनती हूँ, तो समझ आता है कि मेरे पापा-मम्मी को कैसा महसूस होता होगा मुझे सोचकर।
अपनी बेटी के बारे में सोचकर आँखें भर आती हैं, मेरी भी और उसके पापा की भी, जब भी यह गाना हम सुनते हैं...
बाबा की रानी हूँ
आँखों का पानी हूँ
बह जाना है जिसे
दो पल कहानी हूँ!
अम्मा की बिटिया हूँ
आँगन की मिटिया हूँ
टुक-टुक निहारे जो
परदेस चिठिया हूँ!
बह जाना है जिसे
दो पल कहानी हूँ!
अम्मा की बिटिया हूँ
आँगन की मिटिया हूँ
टुक-टुक निहारे जो
परदेस चिठिया हूँ!
जानती हूँ वह पूजा के बाद आएगी, मेरा घर फिर चहकेगा। घर भी जैसे उदास हो गया है ख़ुशी के जाने से। बेटियाँ सच में रौनक होती हैं किसी भी घर की। मेरी बेटी का नाम ख़ुशी है, तो जहाँ जाती है ख़ुशी भी अपने साथ लिए जाती है। अब जल्दी पूजा ख़त्म हो और वह वापस आए, यही इंतिज़ार है।
- जेन्नी शबनम (10.10.10)
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बहुत ही मार्मिक पोस्ट है!
ReplyDelete--
13 अक्टूबर के चर्चा मंच पर इसकी चर्चा लगाई है!
http://charchamanch.blogspot.com/
ये सिर्फ एक पोस्ट नहीं है ,दुनिया भर की माओं का अपनी बेटियों के प्रति प्रेम की थाती भी है|बधाई
ReplyDeleteओह हो हो हो ..तो बेटी की याद आ रही है :).अब क्या करें बेटियां कम्ब्बख्त होती ही ऐसी हैं.पर आप खुश रहिये ये सोचकर कि वह वहां मस्त है :).
ReplyDeleteऔर आपकी तबियत को क्या हुआ?जल्दी ठीक हो जाइये ये लिखना कभी बंद नहीं हो सकता.
beautiful....feelings in words...we all are in the same boat....missing the presence of daughter/s...nice simple poem...
ReplyDeletewishes to you and Khushi...
Sabse pehle bitiya khushi ko janamdin ki [der se hi sahi] dhero shubhkamnayen.
ReplyDeleteJennyji, kehte hai mehsoos karne ke liye mehsoos karna chahiye aur mujhe mehsoos hua aap khushi ko kitna yaad kar rahi hain, palkein bheeg gai.
aane wali hai ab khushi jaldi, ab tayyar ho jayiye uske 'order' ka palan karne ke liye..........[:)]
shubhkamnayen
बेटियां मन का सुकून होती हैं ...बहुत अच्छी पोस्ट ...मन की भावनाओं को उडेलती हुई ..
ReplyDeletetouching post!
ReplyDeletemissing my mummy ..... will call her now!
regards,
betiyaan/ hoti hi aisi hain. lekin ek bat aap puchhna apni bitiya se ki wo CID me ais akya he jo dekhti he/ meri beti bhi CID dekhti he/ but i do;t knoe th e reason why she likr it /....
ReplyDeletesundar lekhan
यही तो बेटियों की खूबी होती है हर घर आँगन मे खुशियाँ ही खुशियाँ उँडेलती हैं……………बहुत सुन्दरता से भावनाओं को व्यक्त किया है।
ReplyDeleteबहुत ही भाव विभोर कर देने वाला संस्मरण...
ReplyDeleteSach main maa or bete ki yehi kahani hai beteyaan bahot payaari hoti hain
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है, जेन्नी,बेटियाँ तो होती ही हैं घर की रौनक, तेरे दु:ख के साथ मैंने भी अपना दु:ख साझा कर लिया।
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