Thursday, April 1, 2010

7. हँसी-ठिठोली, बड़ा मज़ा आया !

आज पहली अप्रैल है यानी कि 'मूर्ख दिवस' । यूँ तो सभी लोग आज के दिन अपने-अपने तरीके से अपने मित्रों परिचितों को मूर्ख बनाने में लगे रहते हैं और ये मज़ाक का सिलसिला सारा दिन चलता है  हर फ़ोन, हर खाना या किसी के कुछ भी कहने पर एक बार मन में ज़रूर आता है कि कहीं उसे अप्रैल फूल तो नहीं बनाया जा रहा है 


हँसी मज़ाक के लिए समर्पित यह दिन जिसका इंतज़ार एक महीना पहले से हम सभी करते हैं और दूसरों को मूर्ख बनाने के नए-नए तरीके खोजे जाते हैं  बहुत मज़ा आता है जब कोई मूर्ख बनता है और हम सभी ताली पीट-पीट कर हँस-हँस कर लोट-पोट हुआ करते हैं  अपनी होशियारी और मूर्ख बना व्यक्ति जब अपनी मूर्खता पर शर्माता है तब तो मस्ती देखते बनती है 


मुझे याद है बचपन में मैं अपने भाई के साथ मिलकर सबको खूब अप्रैल फूल बनाया करती थी  जो भी मेहमान हमारे घर आते तो उनको नाश्ता और शरबत दिया जाता था  नीबू चीनी की शरबत बनती थी, जिसमें हमलोग खूब सारा नमक मिला देते थे और बुद्धू सा चेहरा बना कर घर आये मेहमान को देते थे  वे बेचारे मेहमान शरबत मुँह में रखते ही थू-थू करने लगते थे । हम फिर बाद में अच्छा वाला शरबत देते, जिसे भी वो संदेह के साथ मुँह में डालते और हम लोग ठहाका लगाते थे 


ठिठोली का एक मज़ेदार यन्त्र बनाना जाने कहीं से हम भाई बहन सीख लिए थे इस नए इज़ाद में बड़ा मजेदार तकनीक शामिल था । एक बटन को रबड़ में लगा कर चूड़ी में लपेट देते थे, फिर खूब लपेट कर किसी कागज़ में अच्छे से बंद कर किसी लिफ़ाफ़े में रखकर जिन्हें मूर्ख बनाना होता उनका पता लिख देते थे, फिर उस सज्जन को यह कह कर दे देते कि आपकी चिट्ठी आई है  जैसे ही हाथ में लेकर लिफाफा फाड़ा कि खूब जोर से फर-फर की आवाज़ होती और वो सज्जन उछल कर उसे दूर फेंक देते थे, और हम लोग ताली बजा-बजा कर लोट पोट   


मैं छोटी थी तभी मेरे रिश्ते की एक दीदी की शादी मेरे घर से हुई  हर छुट्टी में या जब भी हमलोग गाँव जाते तो दीदी जीजाजी मिलने आते थे  हम दोनों भाई बहन बहुत छोटे थे पर जीजाजी को बहुत तंग करते थे  अप्रेल फूल बनाने के न जाने कितने तरीके हम उनपर प्रयोग करते थे  हमलोग शाकाहारी थे तो बहुत प्रकार के पकवान बनते जिनमें हरी सब्जियों के तरह- तरह के पकौड़े मुख्य रूप से होते थे  हम लोग घास या मिट्टी को बेसन में लपेट कर पकौड़े की तरह छान कर उनको खाने के लिए देते, जैसे पहला कौर मुँह में कि हमारा ठहाका और दादी की डांट एक साथ  घर के सब लोग हँस पड़ते, हम दोनों प्यार भरी डांट भी सुनते, लेकिन फिर कुछ और नया तरीका सोचते और फिर शुरू हो जाता नया मज़ाक 


याद नहीं कि कोई भी वर्ष ऐसा बीता हो जब किसी को अप्रैल फूल न बनाया हो  चाय में नमक, शरबत में नमक, खीर में नमक, आटा का नमकीन हलवा, घास या मिटटी के पकौड़े आदि तो खाने के द्वारा मज़ाक हुआ । किसी को फ़ोन कर कह दिया कि माँ ने बुलाया है, या फिर माँ को कह दिया कि भैया का फ़ोन आया है, या घंटी बजाकर माँ को कह दिया कि कोई मिलने आए हैं, ये सब छोटा-छोटा तरीका हर साल करते रहे और सबको मूर्ख बनाते रहे  ख़ुद अप्रैल फूल बहुत कम बन पाई क्योंकि सारा दिन याद रहता था कि आज जो भी कुछ होगा सँभल कर वरना अप्रैल फूल...


शादी के बाद भी पति के भाईयों और बहनों को हर साल खूब अप्रैल फूल बनाती रही हूँ  अब तो अपने बच्चों को भी खूब अप्रैल फूल बनाती हूँ  मेरी बेटी जब छोटी थी तो मूर्ख बन जाने पर खूब चिल्लाती थी हम मूर्ख नहीं हैं... हमको क्यों मूर्ख बनाई...! क्योंकि जब एक को हम लोग मूर्ख बनाते तो बाकी सभी लोग एक पार्टी में हो जाते थे 


अब सोचती हूँ कि शायद हमारे समय में मनोरंजन के साधन ज्यादा नहीं होते थे इसलिए इस दिन को इतना याद रखते रहे  अब तो वो उत्साह नहीं दिखता, सभी ख़ुद में इतने व्यस्त हो गए हैं कि शायद हँसी मज़ाक भी भूल रहे हैं 


मशीनीकरण नें हमारे सहज स्वभाव को सरल नहीं रहने दिया है  बहुत हुआ तो एस.एम.एस के ज़रिए कोई जोक भेज दिया, फिर हँसो भी तो अकेले में ही  या फिर बेतूके जोक टेलीविजन पर देख कर हँस लिया, क्योंकि हँसने का बहाना भी खोजना पड़ता है अब । अब अप्रैल फूल चाहे हमारी परम्परा में न हो पर आज के व्यस्त दौर के लिए इसे परम्परा का हिस्सा बना ही लेना चाहिए 


हँसी ठिठोली के साथ ठहाका... अप्रैल फूल बनाया... उनको गुस्सा आया... बड़ा मज़ा आया !

- जेन्नी शबनम (1. 4. 2010)


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14 comments:

  1. हंसते रहिए अच्छा लगता है।

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  2. आपकी पोस्‍ट को पढकर अच्‍छा लगा .. सचमुच व्‍यस्‍तता के दौर में अब हंसी ठिठोली बची कहां है ??

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  3. अब सोचती हूँ कि शायद हमारे समय में मनोरंजन के साधन ज्यादा नहीं होते थे इसलिए इस दिन को इतना याद रखते रहे| अब तो वो उत्साह नहीं दीखता, सभी ख़ुद में इतने व्यस्त हो गये हैं कि शायद हँसी मज़ाक भी भूल रहे|

    bahut achchha laga

    sahi likha hain aapne

    10 sal pahale tak main bhi jarur
    1 april ko kisi ek ko to jarur fool banaya karata tha

    par ab vaesa mahol muhalle me nahi raha


    very nice

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  4. भागदौड भरी नीरस जिन्दगी में स्वास्थ्य के लिए हँसना हँसाना जरुरी हो गया है इसीलिए हास्य विनोद के नाम पर लोग प्रसन्नचित्त रहने की कोशिश करते है . अप्रेल फूल मनाने का उद्देश्य हँसना हँसाना है ...

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  5. हमने भी बनाने की दिन भर कोशिश की. कई बार बनाने की कोशिश करते करते खुद ही बन गये.

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  6. हा हा!! बढ़िया!

    आज मूर्ख दिवस मनाने में इतना व्यस्त रहा कि कहीं किसी ब्लॉग पर जाना हुआ नहीं यद्यपि दिवस विशेष का ख्याल रख यहाँ चला आया हूँ और आकर अच्छा लगा. धन्यवाद!!

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  7. Nice. Yes you are right human beings are very practical matured now and making him a fool isn't that easy any more and so laughing has become impossible for him. Keep it up.

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  8. आपकी पोस्‍ट को पढकर अच्‍छा लगा ..

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  9. bachpan se lekar bachchon tak ke khoobsurat safar ke saath aaj kee mashini zindagi ke sannate ko bahut achhe se aap bata gain......zaruri hai ise ek hissa banakar dil dimaag ko halka karna

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  10. aacha blog badhai

    http://limtykhare.blogspot.com

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  11. Bahen ji...aapka lekh paDhaa.....har pahloo se sunder aur paribhaashaa se poorNa hai.....aakhiri panktiyaan sahi dritikoN prastut karti hain....
    'Kartavya hi AAstiktaa aur Naastiktaa ki paribhaashaa hai....'

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  12. शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
    सूचनार्थ!

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