Friday, February 28, 2025

122. युद्ध

चित्र - गूगल से साभार 
फ़िल्म 'छावा' देखकर मन व्याकुल हो गया यह जानते हुए कि यह फ़िल्म है और क्रूरता के दृश्य फ़िल्माए गए हैं परन्तु उन ख़ौफ़नाक दृश्यों की कल्पना करके रूह काँप जाती है ऐसी बहुत सी ऐतिहासिक घटनाओं पर फ़िल्म बन चुकी है, जिसमें छल-बल के द्वारा युद्ध, युद्ध की विभीषिका और ख़ौफ़नाक मंज़र देख चुके हैं।  

हज़ारों युद्ध से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। कभी साम्राज्य के विस्तार के लिए, सत्ता पाने के लिए, एक साम्राज्य द्वारा दूसरे को अधीन करने के लिए, दूसरे साम्राज्य से अपने साम्राज्य को बचाए रखने के लिए, अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए, दूसरे साम्रज्य की संपत्ति हड़पने के लिए, आपसी द्वेष के कारण, स्त्री के लिए, भाई-भाई में सत्ता के लिए इत्यादि-इत्यादि युद्ध जो राजा युद्ध जीतता है, वह अमानवीयता की सारी हदें पार कर जाता है वह हारे हुए राजा की नृशंसता से हत्या कर देता है या बन्दी बना लेता है, क्रूरतम यातनाएँ देता है, बन्दी सैनिकों की बेरहमी और बर्बरता से हत्या करता है, हारे हुए राजा की रानियों और सैनिकों की पत्नियों पर अत्याचार करता हैहर युद्ध का यही परिणाम होता है

शासन, सत्ता और आधिपत्य की लालसा तथा अहंकार के कारण मनुष्य क्रूरता की सारी हदें पार कर देता है; लेकिन यह ऐसी भूख है कि मिटती नहीं अगर वश चले तो पृथ्वी ही नहीं आकाश भी अपने अधीन कर लेमिथक कथाओं, लोक कथाओं, जातक कथाओं, पौराणिक कथाओं तथा ऐतिहासिक कथाओं में ऐसे अनेक युद्धों की गाथा सुनते हैं इतिहास गवाह है कि हर सम्राट का मक़सद अपने साम्राज्य का विस्तार और अपना आधिपत्य स्थापित करना रहा है; चाहे किसी भी देश या काल-खण्ड की बात हो सुर-असुर का संग्राम, राम-रावण का युद्ध, कौरव-पाण्डव का युद्ध इत्यादि सत्ता और अहंकार का ही युद्ध है। वैदिक काल का सबसे बड़ा युद्ध कुरुक्षेत्र का युद्ध माना जाता है, जो कौरवों और पाण्डवों के बीच सत्ता तथा अपमान के कारण हुआ 

लगभग 200 बार हिन्दुस्तान पर विदेशी शासकों द्वारा आक्रमण हुआ हैभारत के इतिहास का सबसे महत्त्वपूर्ण और ख़ौफ़नाक युद्ध ईसा पूर्व 261 में कलिंग का युद्ध है; हालाँकि कलिंग युद्ध के बाद सम्राट असोक का हृदय परिवर्तन हुआ और वे बौद्ध धर्म अपना लिए, ऐसा अमूमन किसी और राजा का नहीं हुआ सम्राट असोक ने भी सत्ता पाने के लिए अपने भाइयों की क्रूरता से हत्या की थी 1192 ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच युद्ध हुआ, जिसमे गोरी की जीत के साथ ही मुग़ल सल्तनत की नींव रखी गई 1526 ईस्वी में बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच युद्ध हुआ1556 ईस्वी में अकबर और हेम चंद्र विक्रमादित्य के बीच युद्ध हुआ 1576 ईस्वी में हल्दीघाटी का युद्ध अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हुआ1689 ईस्वी में औरंगज़ेब और छत्रपति संभाजी महाराज के बीच युद्ध हुआ, जिसमें औरंगज़ेब ने बेहद क्रूरता से संभाजी की हत्या की 1704 ईस्वी में गुरु गोविन्द सिंह और मुग़ल सेना के बीच युद्ध हुआ 1761 ईस्वी में पानीपत का तीसरा युद्ध हुआ जो मराठा साम्राज्य और अहमद शाह अब्दाली के बीच हुआ यह युद्ध 18वीं सदी की सबसे ख़तरनाक ख़ूनी लड़ाई थी, जिसमें एक लाख से ज़्यादा सैनिक शामिल थे 1757 ईस्वी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और सिराजुद्दौला के बीच युद्ध हुआ1858 ईस्वी में झांसी का युद्ध हुआ जिसमें अंग्रेज़ी सेना द्वारा लक्ष्मी बाई की हत्या हुई 1887 ईस्वी में ब्रिटिश और भारतीय सिपाही के बीच युद्ध हुआ भारत की आज़ादी तक कई बार अंग्रेज़ी सरकार के साथ संघर्ष और युद्ध हुए वर्ष 1962 में चीन के साथ भारत का युद्ध हुआ। वर्ष 1965, 1971,1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ द्वितीय विश्वयुद्ध मानव इतिहास का सबसे क्रूर युद्ध था, जिसमे कई करोड़ लोग मारे गए, जिनमें से अधिकांश सोवियत संघ और चीन के नागरिक थे

युद्ध की विभीषिका और बेरहम हत्याओं को देखकर ऐसा लगता है कि इतिहास बार-बार स्वयं को दोहराता रहता है सम्पूर्ण विश्व में कहीं-न-कहीं युद्ध जारी है। कई देश आपस में युद्ध कर रहे हैं, जिससे समस्त मानवता विनाश के कगार पर खड़ी है। युद्धरत कोई भी देश न समझौता के लिए तैयार है न युद्ध विराम के लिए। कोई भी देश अपनी सरहद के भीतर शान्ति से रहना नहीं चाहता इन युद्धों में न सिर्फ़ सैनिक मारे जा रहे हैं; बल्कि बेबस आम नागरिक भी मारे जा रहे हैं। निःसन्देह अब युद्ध के तरीक़े बदले हैं, पर मंशा नहीं। बम, तोप, असलहा ही नहीं रासायनिक और जैविक हथियार, परमाणु बम, साइबर हमले, रोबोट, ड्रोन इत्यादि द्वारा भी युद्ध में हमले होने लगे हैं

मुग़ल शासकों के बारे में कहा जाता है कि वे न सिर्फ़ सत्ता हथियाते थे; बल्कि हारे हुए राजाओं के मुस्लिम न बनने पर मार देते थे 'छावा' में औरंगज़ेब संभाजी से कहता है कि वह धर्म परिवर्तन कर ले और उसका साथ दे हालाँकि मेरा अनुमान है कि यह इतिहास की बात नहीं, यह फ़िल्म बनाने वाले के अपने विचार हैं अगर धर्म परिवर्तन ही मुद्दा होता तो मुग़ल शासन के दौरान जितने भी हिन्दू थे मुस्लिम बन चुके होते और हिन्दुस्तान मुस्लिम राष्ट्र होता। उसी तरह अंग्रेज़ी हुकूमत के बाद हिन्दुस्तान पूर्णतः ईसाई राष्ट्र बन गया होता किसी भी शासन के काल में हिन्दू-मुस्लिम दोनों ही सैनिक रहे हैं और अपने-अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित रहे हैं। धर्म नहीं बल्कि सम्राट के प्रति वफ़ादारी होती है। सत्ता की राह में मन्दिर या मस्जिद, जो भी बाधा बने उसे नष्ट कर दिया गया। यह धार्मिक नफ़रत के कारण नहीं बल्कि सत्ता के लिए होता है। किसी भी धर्म के राजा हों, सभी का इतिहास एक जैसा रहा है। 

किसी भी युद्ध में दोनों पक्ष के सैनिकों के मन में एक ही भावना होती है कि अपनी मृत्यु से पूर्व दुश्मन पक्ष के जितना ज़्यादा हो सके सैनिकों को मार गिराना है यही युद्ध-नीति है और युद्ध-रीति भी जो जितना बड़ा घात सहकर प्रतिघात करे वह उतना ही बहादुर माना जाता है जो पक्ष जीत गया उसके हज़ारों सैनिक मरकर जीत दिलाते हैं हारे हुए पक्ष के सैनिक जो जीवित बच गए, उन्हें जैसी यातना दी जाती है कि उससे बेहतर है युद्ध में मारा जाना युद्ध में गए राजा और सैनिकों की पत्नियों की मानसिक दशा का अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता हैहारने वाले पक्ष के राजा, उनकी प्रजा, सैनिक और स्त्रियों पर मानों क़हर टूट पड़ता है ऐसे में अपने बचाव के लिए जौहर, आत्मदाह, सामूहिक आत्महत्या ही उपाय बचता है। जीते या हारे, हर हाल में अधिकतर सैनिक ही मिटता है

अब राज घराना न रहा, न राजाओं का शासन; लेकिन राजाओं का स्थान अब राजनेताओं ने ले लिया है शासन, सत्ता, पैसा और वर्चस्व की भूख ने एक ऐसे युद्ध को जन्म दिया है जिसमें मनुष्य, मनुष्य का दुश्मन बन चुका है जल-थल-वायु सभी सेनाओं की ज़िन्दगी सदा दाँव पर लगी रहती हैसाज़िश का माहौल ऐसा बन चुका है कि अब हर व्यक्ति दूसरे को तथा हर देश दूसरे को संदिग्ध दृष्टि से देखता है चीन और पाकिस्तान जब-न-तब भरत की सुरक्षा में सेंध लगाते रहते हैं 

हर युद्ध में जान की बाज़ी लगा देना देश के प्रति कर्त्तव्य है, चाहे वह राजाओं के काल की बात हो या अब के प्रजातंत्र में राजाओं के युद्ध में राजा की हार-जीत मायने रखती थी, सैनिकों की नहीं। परन्तु अब दो देशों के युद्ध में सिर्फ़ सैनिकों की जान जाती है सभी देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या अन्य बड़े अधिकारी अगर चाहें तो दो देशों के बीच की समस्या का समाधान बातचीत के द्वारा कर सकते हैं लेकिन वर्चस्व की लड़ाई में हर देश के सैनिक मारे जा रहे हैं देश की सीमाओं पर सैनिक रात-दिन पहरेदारी करते हैं, कब कहाँ आक्रमण हो जाए नहीं मालूम कब कौन मारा जाए नहीं मालूम। कब तीसरा विश्व युद्ध छिड़ जाए नहीं मालूम। ख़त्म तो मनुष्यता ही होगी

जेन्नी शबनम (28.2.2025)
___________________

10 comments:

  1. युद्ध की विभीषिका और परिणाम का सजीव चित्रण। मनुष्य जानता है कि इसका अंत क्या है फिर भी युद्ध होते हैं। हर युग , हर काल में हुए हैं। आपने बहुत सुंदर विश्लेषण किया है । हार्दिक बधाई । सुदर्शन रत्नाकर

    ReplyDelete
  2. सार्थक, संदेशप्रद समीक्षा!

    ReplyDelete
  3. ardh saty.in tamaam abhishap jhel bhay lalach ko thukra Bharat desh chhati taan khada hai.

    ReplyDelete
  4. एक सार्थक और सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई

    ReplyDelete
  5. युद्ध का आपने विस्तृत वर्णन किया।
    लेकिन मैं आपकी इस बात से सहमत नही कि
    औरंगजेब ने धर्म परिवर्तन नही करवाया।
    तलवार के बल पर जितना वह कर सकता था
    उसने किया। लेकिन अडिग बहादुर लोगो पर
    उसकी नही चल पाई। गुरु तेग बहादुर का बलिदान
    भी इसका एक और उधारण है।
    Rakesh Kumar blog मनसा वाचा कर्मणा

    ReplyDelete
  6. युद्ध की विभीषिका और परिणाम का सजीव चित्रण। मनुष्य जानता है कि इसका अंत क्या है फिर भी युद्ध होते हैं। हर युग , हर काल में हुए हैं। आपने बहुत सुंदर विश्लेषण किया है । हार्दिक बधाई । सुदर्शन रत्नाकर

    रत्नाकर दी, सही कहा कि युद्ध का परिणाम सभी जानते हैं फिर भी युद्ध होते हैं. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार!

    ReplyDelete
  7. Anonymous
    सार्थक, संदेशप्रद समीक्षा!

    बहुत धन्यवाद आपका.

    ReplyDelete
  8. RAJ SINH
    ardh saty.in tamaam abhishap jhel bhay lalach ko thukra Bharat desh chhati taan khada hai.
    March 1, 2025 at 7:02 AM

    आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद.

    ReplyDelete
  9. प्रियंका गुप्ता
    एक सार्थक और सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई
    March 4, 2025 at 4:24 PM

    बहुत धन्यवाद प्रियंका.

    ReplyDelete
  10. Anonymous
    युद्ध का आपने विस्तृत वर्णन किया।
    लेकिन मैं आपकी इस बात से सहमत नही कि
    औरंगजेब ने धर्म परिवर्तन नही करवाया।
    तलवार के बल पर जितना वह कर सकता था
    उसने किया। लेकिन अडिग बहादुर लोगो पर
    उसकी नही चल पाई। गुरु तेग बहादुर का बलिदान
    भी इसका एक और उधारण है।
    Rakesh Kumar blog मनसा वाचा कर्मणा
    March 4, 2025 at 8:50 PM

    धर्म परिवर्तन सिर्फ़ सत्ता बचाए रखने के लिए करता था. आम जनों के लिए नहीं. शुक्रिया आपकी प्रतिक्रिया के लिए.

    ReplyDelete