Wednesday, October 7, 2015

53. ग़ैर-बराबरी बढ़ाता आरक्षण


                     

आरक्षण के मुद्दे पर देश के हर प्रांत में उबाल है। आरक्षण के समर्थन और विरोध दोनों पर चर्चा नए विवादों को जन्म देती है सभी को आरक्षण चाहिए। इससे मतलब नहीं कि वास्तविक रूप से कोई ख़ास जाति आरक्षण की हक़दार हैमतलब बस इतना है कि सभी जातियाँ ख़ुद को आरक्षण की श्रेणी में लाकर वांछित फ़ायदा उठाना चाहती हैं 
 
समय आ गया है कि अब इस मुद्दे पर एक नई बहस छेड़ी जाए हमें निष्पक्ष रूप से इसपर अपना विचार बनाना होगा ये आरक्षण किसके लिए और किसके विरूद्ध है? क्या जातिगत आधार पर आरक्षण उचित है? कितनी जातियों को इसमें शामिल किया जाए? क्या वास्तविक रूप से उन्हें फ़ायदा हो रहा है, जो ज़रूरतमंद हैं? आरक्षण का आधार सामजिक क्यों? आरक्षण का एकमात्र आधार आर्थिक क्यों नहीं? आरक्षण सहूलियत नहीं बल्कि दया है, जिसे किसी ख़ास जाति को दी जा रही है। किसी ख़ास जाति में जन्म लेने पर क्या दया की जानी चाहिए? 

यह न तो उचित है और न तर्कपूर्ण कि किसी ख़ास जाति या धर्म को मानने वाले को आरक्षण मिलना चाहिए; चाहे शिक्षा, किसी पद के लिए या किसी स्पर्धा वाली शिक्षा या नौकरी में आश्चर्य है कि ख़ुद को पिछड़ा साबित करने की होड़ लग गई है निश्चित ही आरक्षण के नाम पर हमारे युवाओं को बहकाया जा रहा है और उनको ग़लत दिशा देकर राजनितिक पार्टियाँ अपना-अपना लाभ पोषित कर रही हैं

आरक्षण ने क़ाबिलियत को परे धकेलकर जातिगत दुर्भावना को बढ़ाया है।आरक्षण का दंश देश का हर नागरिक झेल रहा हैआरक्षण से कोई फ़ायदा अब तक न दिखा है और न दिखेगा। आरक्षण का लालच दिखा युवाओं का मतिभ्रम कर आवश्यक मुद्दे पर से ध्यान को भटकाया जा रहा है। युवाओं को धर्म और जाति का अफ़ीम खिला-खिलाकर देश के बिगड़ते हुए सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक दशाओं से विमुख किया जा रहा है देश कई तरह के बाह्य और आन्तरिक संकट से गुज़र रहा है, ऐसे में आरक्षण देकर कुछ ख़ास जातियों को फ़ायदा पहुँचाने के एवज़ में संकट को और भी बढ़ावा दिया जा रहा है लड़ता और मरता तो आम युवा है और हानि हमारे ही देश की होती है     

आरक्षण जाति-भेद की दुर्भावना पैदा करने का बहुत बड़ा कारण है। किसी ख़ास जाति को आरक्षण मिलने के कारण वह जगह मिल जाता है, जो कोई दूसरा ज़्यादा उपुयक्त होकर भी गँवा देता हैआरक्षण प्राप्त लोगों का आरक्षण मिलने के बाद कहीं से भी बौधिक बढ़ोतरी के प्रमाण मुझे देखने को नहीं मिले हैं। उसी तरह आरक्षण से मुक्त जो भी जातियाँ हैं, वे जन्म के कारण विशिष्ट गुणोंवाली हों या वे सभी धनाढ्य हों, यह भी नहीं देखा है। धर्म और जाति का बौद्धिकता से कोई सम्बन्ध नहीं होता, और न आरक्षण देकर किसी में बौद्धिकता और क़ाबिलियत पैदा की जा सकती है। कहीं-न-कहीं मन का विभाजन आरक्षण के बाद शुरू हुआ

जिस तरह से अधिकांश जातियाँ आरक्षण पाने के लिए लालायित हैं, ऐसा लगता है कि आने वाले समय में गिनती की दो-चार जातियाँ ही बचेंगी जो आरक्षण से बाहर सामान्य श्रेणी में रह जाएँगी आरक्षण श्रेणी की बहुत सी जातियाँ ऐसी हैं जो धनवान हैं ऐसी बहुत सी जातियाँ हैं जो कहने को तो उच्च कूल की हैं, लेकिन खाने-खाने को मोहताज़ हैं ऐसे में विचारणीय है कि किसे आरक्षण की आवश्यकता है?

प्रतिस्पर्धा के युग में आरक्षण हर जाति के लिए रोग बन गया है। योग्यता का मूल्यांकन आरक्षण से होना स्वाभाविक-सा लगता है। आज अल्पज्ञान और अल्पबुद्धि का बोलबाला होता जा रहा है ज्ञान और बुद्धि पर आरक्षण भारी पड़ रहा है और इसका ख़म्याज़ा आरक्षित श्रेणियों की जातियों को भी उठाना पड़ रहा है अगर किसी का उसकी अपनी योग्यता से स्पर्धा में चयन होता है, फिर भी लोगों कि निगाह में वह तिरस्कार पाता है और यही माना जाता है कि आरक्षण के कारण वह उतीर्ण हुआ है उसकी अपनी योग्यता आरक्षण की बलि चढ़ जाती है 
 
आज जब हम किसी डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाते हैं, तो मन में यह आशंका रहती है कि कहीं यह आरक्षण से आया हुआ तो नहीं है ऐसे में उस डॉक्टर की योग्यता पर अपनी ज़िन्दगी दाँव पर लगी दिखती हैमुमकिन है कि आरक्षित श्रेणी का वह डॉक्टर सचमुच प्रतिभाशाली हो, मगर आरक्षण की सुविधा से अनुपयुक्त का चयन उपयुक्त को भी कटघरे में खड़ा कर दे रहा है इस आरक्षण ने मन में सन्देह पैदा कर दिया है और हम एक दूसरे को शक और असम्मान से देखने लगे हैं

अगर आरक्षण देना ही है, तो आर्थिक आधार पर दिया जाए; चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या सम्प्रदाय का क्यों न हो, और वह भी सिर्फ़ विद्यालय स्तर की शिक्षा तक। ताकि स्पष्टतः प्रतिभा की पहचान हो सके और उपयुक्त पात्र ही उपयुक्त स्थान ग्रहण करे समान अवसर, सुविधा और वातवरण मिलने पर ही हर नागरिक समान हो पाएगा देश के हर नागरिक के लिए समान कानून, समान न्याय, समान शिक्षा, समान सुविधा और समान अधिकार, और कर्त्तव्य का होना आवश्यक है एकमात्र आर्थिक आधार ही आरक्षण का उचित व उत्तम आधार है और यही होना चाहिए

- जेन्नी शबनम (7.10.2015)
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