tag:blogger.com,1999:blog-4067321239050594357.post2349832954596705332..comments2024-03-25T21:42:17.759+05:30Comments on साझा संसार: 26. स्मृतियों से शान्तिनिकेतन (भाग- 1) डॉ. जेन्नी शबनमhttp://www.blogger.com/profile/10256861730529252919noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-4067321239050594357.post-36830122218078524422011-08-30T16:53:50.653+05:302011-08-30T16:53:50.653+05:30di badi pyari se yaad thi aapki...tabi to itna vis...di badi pyari se yaad thi aapki...tabi to itna vistaar se aapne likha...achchha lagta hai na...jahan aapne samay kata ho...wahan pe fir se jao:)मुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4067321239050594357.post-2846320473787013482011-08-18T13:36:56.066+05:302011-08-18T13:36:56.066+05:30प्रज्ञा जी,
शान्तिनिकेतन एक बार ज़रूर घूम आइये, अप...प्रज्ञा जी,<br />शान्तिनिकेतन एक बार ज़रूर घूम आइये, अपनी नज़रों से महसूस करना अनोखा अनुभव होता है. ब्लॉग ताक आने के लिए दिल से आभार.डॉ. जेन्नी शबनमhttps://www.blogger.com/profile/10256861730529252919noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4067321239050594357.post-36770178683175141332011-08-18T12:53:40.865+05:302011-08-18T12:53:40.865+05:30जेन्नी जी, शांति निकेतन का अपना एक स्थान है और मुझ...जेन्नी जी, शांति निकेतन का अपना एक स्थान है और मुझे लगता है कि हर वो इंसान जिसने इसके बारे में सुना है, रवीन्द्रनाथ को जानता है, कुछ समय के लिए ही सही पर यहाँ जीना ज़रूर चाहेगा...मेरी भी ख़्वाहिश है, अभी तक तो पूरी हुई नहीं..उम्मीद है कि एक दिन ज़रूर पूरी होगी...pragyahttps://www.blogger.com/profile/04688591710560146525noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4067321239050594357.post-26983610691162183772011-08-16T12:10:40.223+05:302011-08-16T12:10:40.223+05:30कौशलेन्द्र जी,
नमस्कार! वक़्त हाथ नहीं आता इसलिए ज...कौशलेन्द्र जी,<br />नमस्कार! वक़्त हाथ नहीं आता इसलिए जो भी करना है इंतज़ार नहीं करना चाहिए, वक़्त कभी भी आपको इतनी फुर्सत नहीं देता कि आप अपने हिसाब से सब कुछ तय करें. मुझे शान्तिनिकेतन जाने में २० साल लग गए और गौर दा से नहीं मिल पायी, जीवन भर इस बात का दुःख रहेगा. एक दुखद समाचार है कि श्यामली दी कल सदा के लिए चली गई. नहीं समझ आ रहा कि इसको किस रूप में लूँ. मेरा सौभाग्य या दुर्भाग्य? श्यामली दी के साथ हीं टैगोर की सोच के एक विरासत का भी अंत हो गया.<br />अपने बच्चों पर अपनी इच्छा मैं कभी थोपी नहीं, उसे दिल्ली में हीं रहना पसंद है और यहीं पढ़ना भी. बस उसे दिखा दी कि देखो एक खूबसूरत दुनिया यहाँ है.<br />मेरे ब्लॉग पर आप आये उसके लिए दिल से शुक्रिया.डॉ. जेन्नी शबनमhttps://www.blogger.com/profile/10256861730529252919noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4067321239050594357.post-45455330243130049982011-08-16T12:09:25.588+05:302011-08-16T12:09:25.588+05:30काम्बोज भाई,
अभी भी वक़्त है अपनी इच्छाओं को पूरा ...काम्बोज भाई,<br />अभी भी वक़्त है अपनी इच्छाओं को पूरा करने केलिए, आप एक बार ज़रूर बैरकपुर हो आइये. जितना भी वक़्त होता है उसी में हर मुमकिन काम और ख़ुशी केलिए वक़्त निकाल लेना चाहिए अन्यथा बाद में सिर्फ पछतावा होता है और वक़्त इंतज़ार नहीं करता हमारा. मेरे आलेख के द्वारा आपको भी पुराने दिन याद आये ये मेरे लिए ख़ुशी की बात है. आपका बहुत बहुत धन्यवाद.डॉ. जेन्नी शबनमhttps://www.blogger.com/profile/10256861730529252919noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4067321239050594357.post-66871235964682422042011-08-16T08:24:21.641+05:302011-08-16T08:24:21.641+05:30श्यामली जी के स्वास्थ्य के लिए मंगल कामनाएं. जेन्न...श्यामली जी के स्वास्थ्य के लिए मंगल कामनाएं. जेन्नी जी ! आपने तो भाव विभोर कर दिया आज . भूत को वर्त्तमान में क्षण भर के लिए कैसे जिया जाता है , आपसे सीखे कोई. शान्तिनिकेतन भारत का एक कोमलता , कलात्मकता, विद्वता और संस्कृति का केंद्र है. भाग्यशाली हैं वे जिन्हें शान्तिनिकेतन का प्यार और आशीर्वाद मिला है. सिद्धांत को भी शान्तिनिकेतन ही भेजना था न ! <br />शान्तिनिकेतन की तीर्थ यात्रा कराने और अपने इतने अच्छे परिचितों- आत्मीयजनों से भावपूर्ण भेंट करवाने के लिए साधुवाद.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4067321239050594357.post-64944524791166352912011-08-15T23:43:44.903+05:302011-08-15T23:43:44.903+05:30मैं आपका यह सस्मरण पढ़कर विगत की स्म्ड़रितियों में ...मैं आपका यह सस्मरण पढ़कर विगत की स्म्ड़रितियों में खो गया ।मैं भी 7 अक्तुबर 1976 से 23 जुलाई 1977 तक बैरकपुर मे रहा हूँ । कलकत्ता आना -जना होता ही था आज भी यह कसक है कि जीवन की आपाधापी में फिर उस आत्मीय स्थान पर लौटना नहीं हुआ ।<br />आपने बीती हुई घटनाओं को वर्त्तमान से जोड़कर संस्मरण को बहुत मार्मिक बना दिया है । बहुत साधुवाद इतना सजीव लिखने के लिए ! दिया हैसहज साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/09750848593343499254noreply@blogger.com