Saturday, December 22, 2018

62. नसीर के डर की वज़हें वाज़िब हैं, मैं भी डरी हुई हूँ

न जाने आज बहुत आलस सा लग रहा था। रोज़ की तरह 7 बजे उठकर नियमित क्रमानुसार सारे कार्य करने का मन भी नहीं हुआ। सब छोड़कर एक कप चाय के साथ एक हिन्दी अखबार लेकर पढने बैठी। अखबार में अधिकांशतः नकारात्मक खबरें होती हैं, मगर देश दुनिया की थोड़ी सकारात्मक खबरें भी मिल जाती हैंजैसे कि कुछ नई उम्मीद, कुछ अनोखा ज्ञान, कुछ अजूबे, कुछ शिक्षा, देश दुनिया की प्रगति की कुछ बातें आदि-आदि। 

हत्या, सड़क दुर्घटना, बलात्कार, राहजनी, लूट, एक गर्भवती स्त्री द्वारा पंखे से लटककर आत्महत्या और पंखे से लटके में ही उसके बच्चे का जन्म जो दो घंटे तक मृत माँ के साथ गर्भनाल से लटका रहाओह! सुबह-सुबह ये दिल दहलाने वाली खबरें पर यह तो रोज़ की बात है एक और ख़बर जिस पर दो दिनों से बहुत ज्यादा चर्चा है कि महान कलाकार नसीरुद्दीन शाह ने बुलंदशहर गोकशी काण्ड पर कहा कि ''मुझे देश के हालात पर गुस्सा आता है और अपने बच्चों के लिए डर लगता है'' मुझे याद है एक बार आमिर खान द्वारा असुरक्षा और असहिष्णुता पर दिए गए बयान पर काफी बवाल मचा था, जिसमें वे बताते हैं कि उनकी पत्नी कहती हैं कि उन्हें भारत से बाहर चले जाना चाहिए। 

मुझे इन दोनों के डर का कारण कहीं से भी गलत नहीं लगा वे इस लिए नहीं डरे हुए हैं कि मुसलमान हैं, बल्कि इस लिए डरे हुए हैं कि हमारे देश में अराजकता का वातावरण है मंदिर मस्जिद के मसले में ही हजारों हत्याएँ हो चुकी हैं गाय के नाम पर कितने क़त्ल हो चुके हैं, मॉब लिंचिंग की घटनाएँ आम है, चोरी के शक में बेगुनाहों की हत्या, दहेज़ हत्या, बलात्कार और बलात्कार के बाद हत्या, न सिर्फ बालिकाएँ बल्कि बालकों के साथ भी अप्राकृतिक यौन शोषण, रंगदारी न देने पर हत्या, बेलगाम गाड़ियों या बस ट्रक द्वारा हत्या आदि-आदि. क्या-क्या और कितना गिनाएँ! नए-नए किस्म के अपराध देश में हर तरफ नज़र आने लगे हैं।  
एक दिन मैं कहीं जा रही थी, तो बगल से एक छोटी गाड़ी शायद टाटा इंडिका थी, गुज़री जिसपर कार की तरफ से लिखा हुआ था कि अगर किसी ने मुझे छुआ भी तो जान ले लूँगी अब कोई गाड़ी तो ऐसा न कहेगी, गाड़ी के मालिक की मंशा इससे स्पष्ट होती है दिल्ली में इतनी ज्यादा गाड़ियाँ हैं कि जरा-सा टकरा जाना तो आम बात है यूँ यह भी है कि कोई जानबूझ कर अपनी या दूसरे की गाड़ी का नुकसान नहीं पहुँचाता है, फिर भी दुर्घटना हो जाती है क्या ऐसे में हत्या कर दी जाएगी?
निःसंदेह भरत की स्थिति बेहद चिंताजनक है सबसे ज्यादा अराजकता राजनीतिक पार्टियों के गुंडों द्वारा की जाती है उन्हें किसी का डर नहीं मंदिर और गाय के नाम पर इंसानों की बलि चढ़ाते उन्हें देर नहीं लगती और न दंगा फैलाते देर लगती है गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा और बढ़ती जनसंख्या के कारण आज के युवा इन सब के लिए सहज उपलब्ध हो जाते हैं। इन गर्म खूनों को जरा-सी हवा देने की देर है कि लहलहा कर जलते हैं और राख के ढेर की तरह भरभरा कर भस्म होते हैं।  

देश की सामाजिक और राजनैतिक स्थिति ऐसी है कि देश में कहीं कोई ऐसी जगह नहीं जहाँ सुरक्षित और सहज जीवन कोई जी सके फिर ऐसे में कोई आम नागरिक कहे कि उसे अपने बच्चों के लिए डर लगता है, तो उसकी बात पर बवाल खड़ा कर दिया जाता है किसे डर नहीं लगता है? हमारे बच्चे घर से बाहर निकलते हैं तो सारा दिन डर में बीतता है जब तक बच्चे सुरक्षित घर नहीं आ जाते इस डर से गरीब-अमीर सभी फिक्रमंद हैं और ऐसी दुनिया चाहते हैं जहाँ अमन चैन हो।  
आमिर खान की पत्नी हो या नसीरुद्दीन शाह या हम, हम सभी का डर वाज़िब है। देश के हुक्मरान इस हालात को क्यों नज़र अंदाज़ कर रहे हैं, यह अब तक समझ न आया अगर उन लोगों को डर नहीं हैं तो फिर अराजकता के इस वातावरण को ख़त्म हो जाना चाहिए था राम राज्य तो एक दिन में आ जाता है अब तक तो देश में राम राज्य आ जाना चाहिए था।  

- जेन्नी शबनम (22. 12. 2018)  

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35 comments:

VINOD said...

नादिर शाह - एक क्रूर राजा
नादिर एक लम्बा, सजीला नौजवान था। वो अपने शत्रुओं के प्रति निर्दय था लेकिन अपने अनुचरों और सैनिकों के प्रति उदार। उसे घुड़सवारी बहुत पसन्द थी
उसकी आवाज़ बहुत गम्भीर थी और ये भी उसकी सफलता की कई वज़हों में से एक माना जाता है
जब वो दागेस्तान (१७४२) में था तो नादिर को ख़बर मिली कि रज़ा उसको मारने की योजना बना रहा है। इससे वो क्षुब्ध हुआ और उसने रज़ा को अंधा कर दिया। रज़ा ने कहा कि वो निर्दोष है पर नादिर ने उसकी एक न सुनी।
उसे तख्तापलट का डर होने लगा। उसने अपनी सैन्य योग्यता साबित करने के मकसद से उस्मानों के साथ फिर से युद्ध शुरू कर दिया जिसका अन्त उसके लिए शर्मनाक रहा और उसे नादिर द्वारा जीते हुए कुछ प्रदेश उस्मानों को लौटाने पड़े।
उसके भतीजे अली क़ुली ने उसके आदेशों को मानने से मना कर दिया। १९ जून १७४७ में मशहद के निकट उसके अपने ही अंगरक्षकों ने उसकी हत्या कर डाली।
…………………………………………………………………
अब उपरोक्त कहानी को मोदी शाह के परिपेक्ष में पढ़ें
इस लिए डरने की कोई वजह नहीं है .. भाजपा की क्रूरता का अंत निश्चय है अब
………………………………………………….
अर्थ / परिभाषा
घुड़सवारी - हवाई जहाज़ की सवारी
रज़ा - जस्टिस लोया
कुछ प्रदेश उस्मानों को लौटाने पड़े।- मध्य प्रदेश / राजस्थान / छत्तीसगढ़
नादिर एक लम्बा, सजीला नौजवान था - डिज़ाइनर दाढ़ी, नाम की नक्काशी वाला सूट

सादर
विनोद ऐलावादी

प्रियंका गुप्ता said...

बहुत सटीक

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (24-12-2018) को हनुमान जी की जाति (चर्चा अंक-3195) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

Jyoti Dehliwal said...

विचारणीय आलेख।

Bharat Bhushan said...

सहमत हूँ. नसीर ऐसा व्यक्ति है जिसका धर्म रंगमंच और सिनेमा है. रेशनललिस्ट है. उसके डर वाजिब हैं. देश का वर्तमान वातावरण जानबूझ कर ऐसा बना दिया जा रहा है जिसमें संविधान असंबद्ध लगने लगेगा. तर्कशीलता और वैज्ञानिक सोच को डराने की सारी कोशिश है यह.

Sadhana Vaid said...

आपकी चिंता वाजिब है जैनी जी ! यह चिंता नसीर, आमिर या केवल आपकी ही नहीं है हर आम इंसान की है फिर नसीर या आमिर के बयान पर इतनी तवज्जो क्यों ? नसीर की एक फिल्म 'द वेडनस डे' इसी थीम पर आधारित है ! अखबारों में ऐसे समाचार अभी दो चार साल से ही नहीं छप रहे हैं हमने जबसे होश सम्हाला है तभी से देख रहे हैं ! शायद बिक्री बढाने के लिए ऐसी नकारात्मक खबरें छापना उनकी नीति है या फिर मजबूरी यह तो वही बता सकते हैं ! अभिनेताओं को, जो अनेकों युवाओं के रोल मॉडेल बन जाते हैं, ऐसे बयान देने से बचना चाहए जो आम लोगों को भयभीत कर दें और नकारात्मक वातावरण के लिए ज़मीन तैयार कर दें ! समाज को भयमुक्त करने का काम किसी सरकार का नहीं है समाज के लोगों का ही है ! जब आपस में विश्वास, प्रेम और भाईचारे की भावना पनपेगी भय स्वत: ही समाप्त हो जाएगा ! और इसके लिए लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी ! सार्थक चिंतन को जागृत करती हुई बढ़िया पोस्ट के लिए बधाई आपको !

सहज साहित्य said...

ये कारण सही हैं।असुरक्षा मुख्य कारण है।

yashoda Agrawal said...

शुभ प्रभात दीदी..
असहिष्णुता, भारत सदा सहनशील रहा है... परन्तु हमें लगता है आमिर खान के इस बयान में भी कोई राज़ छुपा था...काफी बयान बाजी हुई थी...
ठीक,उसी तरह नसीरुद्दीन का बयान आया है..
लगता है ये दोनो मुद्दामेकर हैं...
सादर

Naveen Mani Tripathi said...

सामयिक और सारगर्भित पोस्ट ।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

निश्चित भारत में अराजकता की स्थिति है, किंतु यह किसी धर्म विशेष के लिए नहीं बल्कि भारत के हर आम नागरिक के लिए है, केवल अल्पसंख्यकों के लिए नहीं । किंतु नसीर के वक्तव्य को उन पूर्व संदर्भों के परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है जो उन्होंने लाहौर में दुनिया को बताया । बेशक ! हम पाकिस्तान जाकर उनकी बुराई नहीं कर सकते किंतु उनकी तारीफ़ की तुलना में भारत को कमतर भी नहीं बताना चाहिये । यूँ, बाद में नसीर के ट्वीट ने डैमेज़ कंट्रोल कर लिया है । हमारी एक मुश्किल यह है कि हम लोग किसी भी घटना या वक्तव्य को किसी जाति या धर्म विशेष के संदर्भ में देखने के अभ्यस्त हो गये हैं जिससे वह घटना या वक्तव्य सामान्य न रहकर विशेष हो जाता है । हमें राष्ट्र और समाज के स्तर पर हर बात को देखना और परखना होगा ।

www.gorakhnathbalaji.blogspot.com said...

आप का लेख भी वही कह रहा है जो नसीरुद्दीन । कश्मीर की हालात के समय डर नही लगता है । मुंबई में बम ब्लास्ट होते है तो डर नही लगता है । कश्मीरी पंडित कश्मीर में कत्लेआम के शिकार होते है तो डर नही लगता है पर एक गोकसी पर डर लगता है ।
ये आप कह रही है तो कुछ लिखने का विचार आ ही गया । जो कि सरासर गलत धारणा है । सीरिया और अन्य मुश्लिम देशो के बारे में भी कुछ लिख देती तो अच्छा होता ? कौन सा मुश्लिम देश सुरक्षित है । इससे तो अच्छा वह कैदी है जो पाकिस्तान से आते ही देश को सलाम करने लगा । मैं समझता हूं विश्व मे सीरिया से ज्यादा सुरक्षित देश और कोई नही होगा । जहां अमेरिका भी लोगो को मरने के लिए अपनी सेनाये वापस बुला ली ।
अगर वाकई में नासिर को बाजारों में जाकर उन दुकानदारी , फुटपाथ पर बैठकर जीवन यापन की जुगाड़ करने वालो से पूछना चाहिए था कि वाकई डर लगता है या नही ।
बाजार में सभी धर्म के व्यापारी अपने को सुरक्षित महसूस करते है जबकि बंगलो में रहने वाले असुरक्षित । आखिर क्यों ?
क्योंकि दुनिया की बुराई इन्ही के आगे पीछे छुपी रहती है ।
और भी बहुत कुछ ।
आप ने जब कहा तो मैं भी एक सच्चे देश का नागरिक होने के नाते कुछ लिखने से अपने को न रोक सके ।
अंत मे वाकई डर लगता है तो अपने कर्मो से जिसे देश का संविधान देखता रहता है ।
बंदेमातरम ।

Niranjan Welankar said...

आपका ब्लॉग पढा. आपके विचारों से पूरी तरह सहमत नही हूँ, लेकीन आपकी भावनाएँ समझ सकता हूँ| ऐसा लगे, ऐसी स्थिति जरूर है|

अरुण चन्द्र रॉय said...

वास्तव में पूरी मानवता और इंसानियत ही डरी हुई है इस पृथ्वी पर .

janta ki khoj said...

Behtreen lekh

Hardik shubh kamnaye

MahavirUttranchali said...

डर कहाँ नहीं है मैडम! मुस्लिम राष्ट्रों में तो तालिबानी शरीयत की कानूनी तलवार 24 घंटे लटकी रहती है। उससे बच गए तो खूंखार जेहादी मार डालेंगे। वैसे सऊदी अरब के बाद दुनिया में सबसे महफूज़ और स्वतन्त्र स्वम् को मुस्लिम महसूस करता है तो वो जगह हिंदुस्तान ही है। एक तरफ़ आप जैसे बुद्धिजीवि डर रहे हैं तो दूसरी तरफ़ अपने देश से विस्थापित रोहिंग्या मुस्लिम हिन्दोस्तान में ही अपना भविष्य सुरक्षित मानते हैं।

डाॅ रामजी गिरि said...

हम सहमतहैं।

डॉ. जेन्नी शबनम said...

VINOD KUMAR AILAWADI said...
नादिर शाह - एक क्रूर राजा
नादिर एक लम्बा, सजीला नौजवान था। वो अपने शत्रुओं के प्रति निर्दय था लेकिन अपने अनुचरों और सैनिकों के प्रति उदार। उसे घुड़सवारी बहुत पसन्द थी
उसकी आवाज़ बहुत गम्भीर थी और ये भी उसकी सफलता की कई वज़हों में से एक माना जाता है
जब वो दागेस्तान (१७४२) में था तो नादिर को ख़बर मिली कि रज़ा उसको मारने की योजना बना रहा है। इससे वो क्षुब्ध हुआ और उसने रज़ा को अंधा कर दिया। रज़ा ने कहा कि वो निर्दोष है पर नादिर ने उसकी एक न सुनी।
उसे तख्तापलट का डर होने लगा। उसने अपनी सैन्य योग्यता साबित करने के मकसद से उस्मानों के साथ फिर से युद्ध शुरू कर दिया जिसका अन्त उसके लिए शर्मनाक रहा और उसे नादिर द्वारा जीते हुए कुछ प्रदेश उस्मानों को लौटाने पड़े।
उसके भतीजे अली क़ुली ने उसके आदेशों को मानने से मना कर दिया। १९ जून १७४७ में मशहद के निकट उसके अपने ही अंगरक्षकों ने उसकी हत्या कर डाली।
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अब उपरोक्त कहानी को मोदी शाह के परिपेक्ष में पढ़ें
इस लिए डरने की कोई वजह नहीं है .. भाजपा की क्रूरता का अंत निश्चय है अब
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अर्थ / परिभाषा
घुड़सवारी - हवाई जहाज़ की सवारी
रज़ा - जस्टिस लोया
कुछ प्रदेश उस्मानों को लौटाने पड़े।- मध्य प्रदेश / राजस्थान / छत्तीसगढ़
नादिर एक लम्बा, सजीला नौजवान था - डिज़ाइनर दाढ़ी, नाम की नक्काशी वाला सूट

सादर
विनोद ऐलावादी
December 22, 2018 at 10:21 PM
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विनोद जी,
सिर्फ भा ज पा के अंत से समाज में फ़ैल चुकी मनोविकृति नहीं ख़त्म होगी. असामाजिक तत्व सिर्फ अभी नहीं उभरे हैं, इनका पोषण इसी समाज ने दशकों से किया है. अभी है चरम पर पहुँच चुके हैं. सत्ता पर कोई भी पार्टी हो इससे इन्हें फ़र्क नहीं पड़ता. यह डर व्यक्तिगत किसी का नहीं, पूरे समाज का है. अराजकता की स्थिति इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि अब इसे राजनितिक पार्टियाँ भी नहीं रोक पाएँगी. इस अराजकता के कारण सिर्फ इंसान या पशु नहीं मर रहे हैं बल्कि हमारी आत्मा मर रही है. राष्ट्र और समाज को सुधारने के लिए हम सभी को चिन्तन करना होगा. सादर.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger प्रियंका गुप्ता said...
बहुत सटीक

December 23, 2018 at 10:42 AM Delete
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समर्थन के लिए आभार प्रियंका जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said...
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (24-12-2018) को हनुमान जी की जाति (चर्चा अंक-3195) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

December 23, 2018 at 3:39 PM Delete
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धन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger Jyoti Dehliwal said...
विचारणीय आलेख।

December 24, 2018 at 9:21 AM Delete
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मेरे विचार को आपका समर्थन मिला, धन्यवाद ज्योति जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger Bharat Bhushan said...
सहमत हूँ. नसीर ऐसा व्यक्ति है जिसका धर्म रंगमंच और सिनेमा है. रेशनललिस्ट है. उसके डर वाजिब हैं. देश का वर्तमान वातावरण जानबूझ कर ऐसा बना दिया जा रहा है जिसमें संविधान असंबद्ध लगने लगेगा. तर्कशीलता और वैज्ञानिक सोच को डराने की सारी कोशिश है यह.

December 26, 2018 at 6:05 AM Delete
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बिल्कुल सही कहा आपने, मैं आपके वक्तव्य से पूर्ण सहमत हूँ. नसीर का डर उनका व्यक्तिगत डर नहीं है, यह हम सभी का है, जो इस देश के नागरिक हैं. देश के हालात दिन व दिन बदतर होते जा रहे हैं. और दुखद यह है कि हम कुछ बोल भी नहीं सकते. जो बोले उसे देशद्रोही कहा जाता है. आपके विचार से मैं सहमत हूँ. सादर धन्यवाद भरत भूषण जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger sadhana vaid said...
आपकी चिंता वाजिब है जैनी जी ! यह चिंता नसीर, आमिर या केवल आपकी ही नहीं है हर आम इंसान की है फिर नसीर या आमिर के बयान पर इतनी तवज्जो क्यों ? नसीर की एक फिल्म 'द वेडनस डे' इसी थीम पर आधारित है ! अखबारों में ऐसे समाचार अभी दो चार साल से ही नहीं छप रहे हैं हमने जबसे होश सम्हाला है तभी से देख रहे हैं ! शायद बिक्री बढाने के लिए ऐसी नकारात्मक खबरें छापना उनकी नीति है या फिर मजबूरी यह तो वही बता सकते हैं ! अभिनेताओं को, जो अनेकों युवाओं के रोल मॉडेल बन जाते हैं, ऐसे बयान देने से बचना चाहए जो आम लोगों को भयभीत कर दें और नकारात्मक वातावरण के लिए ज़मीन तैयार कर दें ! समाज को भयमुक्त करने का काम किसी सरकार का नहीं है समाज के लोगों का ही है ! जब आपस में विश्वास, प्रेम और भाईचारे की भावना पनपेगी भय स्वत: ही समाप्त हो जाएगा ! और इसके लिए लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी ! सार्थक चिंतन को जागृत करती हुई बढ़िया पोस्ट के लिए बधाई आपको !

December 26, 2018 at 6:55 AM Delete

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आप सही कह रही हैं कि देश की हालात पर यह चिंता जायज़ है जो हर नागरिक के लिए है. नसीर या आमिर की बात पर तवज्जो हम जैसे नागरिक नहीं दे रहे, बल्कि वे दे रहे हैं जिन्होंने देश का माहौल ख़राब किया है. हमारी ही बात नसीर कर रहे हैं, हर आम आदमी की बात कर रहे हैं. हर आम आदमी आज भयभीत है. हमारी आवाज़ वे बनेंगे तो आवाज़ उन तक पहुँच सकती है जो हमें बोलने नहीं देते. देश के हालात धीरे धीरे दूषित होते गए हैं और अब विकराल रूप सामने है. सच है हर एक नागरिक अगर स्वयं में सुधार लाये तो माहौल बादल जाएगा लेकिन कुछ लोग नहीं चाहते कि शान्ति हो. अन्यथा जाति, धर्म, पशु, मंदिर, मस्जिद आदि को लेकर इतनी वैमनस्यता न होती न इतने अपराध होते. आपने मेरे विचार को समझा, दिल से धन्यवाद साधना जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger सहज साहित्य said...
ये कारण सही हैं।असुरक्षा मुख्य कारण है।

December 26, 2018 at 6:57 AM Delete
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असुरक्षा हर क्षेत्र में बढ़ती जा रही है. रास्ते पर चलने पर भी ढेरों असुरक्षा; न सिर्फ स्त्रियों के लिए बल्कि पुरुषों के लिए भी. आपने मेरी बातो को समझा धन्यवाद काम्बोज भैया.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger yashoda Agrawal said...
शुभ प्रभात दीदी..
असहिष्णुता, भारत सदा सहनशील रहा है... परन्तु हमें लगता है आमिर खान के इस बयान में भी कोई राज़ छुपा था...काफी बयान बाजी हुई थी...
ठीक,उसी तरह नसीरुद्दीन का बयान आया है..
लगता है ये दोनो मुद्दामेकर हैं...
सादर


December 26, 2018 at 7:06 AM Delete
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ये दोनों मुद्दा मेकर नहीं हैं यशोदा बल्कि आम लोगों के मुद्दा को उठाया है. देश का हर आम आदमी असुरक्षित है. ऐसे में नसीर या आमिर का डर वाज़िब क्यों नहीं? हमारी आवाज़ सरकार तक नहीं पहुँचती, इन्होंने बयान देकर सरकार तथा हम जैसे सोये हुए नागरिक को देश के हालात को बताया है. हमारी आवाज़ बने हैं ये. आप इनकी बात को रहस्य नहीं बल्कि हालात से जोड़कर देखें. आशा है आप मेरी बातों पर फिर से विचार करेंगी. धन्यवाद यशोदा जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger Naveen Mani Tripathi said...
सामयिक और सारगर्भित पोस्ट ।

December 26, 2018 at 9:20 AM Delete
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मेरे विचार को समझने के लिए धन्यवाद नवीन जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger डॉ. कौशलेन्द्रम said...
निश्चित भारत में अराजकता की स्थिति है, किंतु यह किसी धर्म विशेष के लिए नहीं बल्कि भारत के हर आम नागरिक के लिए है, केवल अल्पसंख्यकों के लिए नहीं । किंतु नसीर के वक्तव्य को उन पूर्व संदर्भों के परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है जो उन्होंने लाहौर में दुनिया को बताया । बेशक ! हम पाकिस्तान जाकर उनकी बुराई नहीं कर सकते किंतु उनकी तारीफ़ की तुलना में भारत को कमतर भी नहीं बताना चाहिये । यूँ, बाद में नसीर के ट्वीट ने डैमेज़ कंट्रोल कर लिया है । हमारी एक मुश्किल यह है कि हम लोग किसी भी घटना या वक्तव्य को किसी जाति या धर्म विशेष के संदर्भ में देखने के अभ्यस्त हो गये हैं जिससे वह घटना या वक्तव्य सामान्य न रहकर विशेष हो जाता है । हमें राष्ट्र और समाज के स्तर पर हर बात को देखना और परखना होगा ।
December 26, 2018 at 9:27 AM Delete

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शत प्रतिशत सही कहा आपने कि हमें राष्ट्र और समाज के स्तर पर हर बात को सोचना चाहिए. यहाँ हर लोग असुरक्षित है सिर्फ अल्पसंख्यक नहीं. चुकि नसीर और आमिर मुस्लिम है इसलिए इस मुद्दे को राजनैतिक और साम्प्रदायिक रंग दे दिया गया है. लेकिन देश का हर कोना कहीं से भी सुरक्षित नहीं है. आप तो उन इलाकों में हैं जहाँ समस्याएँ और भी ज्यादा है. नसीर और आमिर के बयान पर बहसबाजी करने वालों को देश की दुर्दशा क्यों नहीं दिख रही, आश्चर्य होता है. आपने मेरी बातों को समझा बहुत धन्यवाद कौशलेन्द्र जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger www.gorakhnathbalaji.blogspot.com said...
आप का लेख भी वही कह रहा है जो नसीरुद्दीन । कश्मीर की हालात के समय डर नही लगता है । मुंबई में बम ब्लास्ट होते है तो डर नही लगता है । कश्मीरी पंडित कश्मीर में कत्लेआम के शिकार होते है तो डर नही लगता है पर एक गोकसी पर डर लगता है ।
ये आप कह रही है तो कुछ लिखने का विचार आ ही गया । जो कि सरासर गलत धारणा है । सीरिया और अन्य मुश्लिम देशो के बारे में भी कुछ लिख देती तो अच्छा होता ? कौन सा मुश्लिम देश सुरक्षित है । इससे तो अच्छा वह कैदी है जो पाकिस्तान से आते ही देश को सलाम करने लगा । मैं समझता हूं विश्व मे सीरिया से ज्यादा सुरक्षित देश और कोई नही होगा । जहां अमेरिका भी लोगो को मरने के लिए अपनी सेनाये वापस बुला ली ।
अगर वाकई में नासिर को बाजारों में जाकर उन दुकानदारी , फुटपाथ पर बैठकर जीवन यापन की जुगाड़ करने वालो से पूछना चाहिए था कि वाकई डर लगता है या नही ।
बाजार में सभी धर्म के व्यापारी अपने को सुरक्षित महसूस करते है जबकि बंगलो में रहने वाले असुरक्षित । आखिर क्यों ?
क्योंकि दुनिया की बुराई इन्ही के आगे पीछे छुपी रहती है ।
और भी बहुत कुछ ।
आप ने जब कहा तो मैं भी एक सच्चे देश का नागरिक होने के नाते कुछ लिखने से अपने को न रोक सके ।
अंत मे वाकई डर लगता है तो अपने कर्मो से जिसे देश का संविधान देखता रहता है ।
बंदेमातरम ।

December 26, 2018 at 11:37 AM Delete
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निःसंदेह मैं वही कह रही हूँ जो नसीर ने कहा है. इस देश का हर नागरिक डरा हुआ है चाहे वो कश्मीर की हिंसा हो, मुंबई या दुनिया के किसी भी हिस्से में बम ब्लास्ट हो, गाय या अन्य कोई भी जानवर को मारा जाए, किसी स्त्री का बलात्कार या भ्रूण हत्या हो, किसी बालक के साथ बलात्कार हो, चाँद पैसे के लिए हत्या हो या राजनैतिक दाँवपेंच के लिए अराजकता का वातावरण हो. मुझे नहीं मालूम अपने देश की दुश्चिंताओं की तुलना सीरिया या पकिस्तान या अमेरका से करना क्यों वाज़िब है. मैं बस अपने देश की हालात पर चिंतित हूँ जिसे मैंने लिखा है. मुस्लिम देश से भारत की तुलना आपने क्यों की आप जाने? अगर मुस्लिम देश सुरक्षित नहीं तो क्या हमें अपने देश की असुरक्षा की बात नहीं करनी चाहिए?
आपकी सलाह कि ''सीरिया या अन्य मुस्लिम देश पर लिख देती तो अच्छा होता'', कोशिश करूँगी कि वहाँ के बारे में भी जानकारी जुटा कर कुछ लिख सकूँ.
कभी मजदूर, किसान, बेरोजगार की हालत का भी आप जायजा लें तो अच्छा होगा. उन घरों में भी जाकर हालात पूछे जहाँ नन्हें बचों के साथ ज्यादती होता है, उन स्त्रियों से भी मिलें जिनके साथ बलात्कार और छेड़खानी होता है. उन परिवारों से भी मिलिए जिनके बच्चों का क़त्ल मॉब ने किया.
मुझे पढने के कारण आपको भी कुछ लिखने का मन किया यह तो मेरे लिए अच्छी बात है.
आपका बहुत धन्यवाद जो कुछ और नई बात सोचने का मुझे मौक़ा दिया. मेरे लेख पर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया जी एन शॉ जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

Blogger Niranjan Welankar said...
आपका ब्लॉग पढा. आपके विचारों से पूरी तरह सहमत नही हूँ, लेकीन आपकी भावनाएँ समझ सकता हूँ| ऐसा लगे, ऐसी स्थिति जरूर है|

December 26, 2018 at 12:13 PM Delete
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मेरे विचार से सहमति आवश्यक नहीं, बल्कि भावनाओं को समझा यही बहुत है. आपका बहुत धन्यवाद निरंजन जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger Arun Roy said...
वास्तव में पूरी मानवता और इंसानियत ही डरी हुई है इस पृथ्वी पर .

December 26, 2018 at 2:00 PM Delete

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सच कहा, पूरी दुनिया में कहीं भी अमन व चैन नहीं, मानवता डरी हुई है. धन्यवाद अरुण जी

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger janta ki khoj said...
Behtreen lekh

Hardik shubh kamnaye

December 26, 2018 at 2:41 PM Delete
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सराहना के लिए शुक्रिया रऊफ अहमद जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger Mahavir Uttranchali said...
डर कहाँ नहीं है मैडम! मुस्लिम राष्ट्रों में तो तालिबानी शरीयत की कानूनी तलवार 24 घंटे लटकी रहती है। उससे बच गए तो खूंखार जेहादी मार डालेंगे। वैसे सऊदी अरब के बाद दुनिया में सबसे महफूज़ और स्वतन्त्र स्वम् को मुस्लिम महसूस करता है तो वो जगह हिंदुस्तान ही है। एक तरफ़ आप जैसे बुद्धिजीवि डर रहे हैं तो दूसरी तरफ़ अपने देश से विस्थापित रोहिंग्या मुस्लिम हिन्दोस्तान में ही अपना भविष्य सुरक्षित मानते हैं।

December 26, 2018 at 3:08 PM Delete

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सही कहा डर कहाँ नहीं है. मुस्लिम राष्ट्रों या तालिबानी क्रूरता से हम भारत की तुलना क्यों करें? मुस्लिन देश की तुलना में भारत में अराजकता कम है तो क्या इसलिए बोलना नहीं चाहिए? नसीर का डर या मेरी चिंता सिर्फ मुस्लिमों के लिए नहीं है बल्कि देश के सभी नागरिकों के लिए है. यहाँ सिर्फ मुस्लिम या रोहिंग्या मुस्लिम की बात नहीं है, हर एक इंसान आज डर के साए में है. इस लिए दूसरे देश के अपराध से भारत के अपराध की तुलना करना मेरे विचार से न्यायसंगत नहीं. हम नागरिकों को देश के लिए सोचना चाहिए कि कैसे अपराध पर नियंत्रण हो, न कि यह सोचें कि मुस्लिम देश की तुलना में अपराध कम है तो खुश हो जाएँ.
आपके विचार जानने को मिला धन्यवाद महावीर जी.

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger Ramji Giri said...
हम सहमतहैं।

December 27, 2018 at 8:02 PM Delete
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मेरे विचार से आप सहमत हैं, बहुत धन्यवाद डॉ गिरी.

इस्मत ज़ैदी said...

जेन्नी जी सहमत हूँ आप से और ये बात केवल नसीर या किरन राव ने नहीं कही है बल्कि बार बार अलग अलग लोग कह रहे हैं माहौल तो ख़राब हुआ है ये एक दिन में नहीं हुआ धीरे धीरे हुआ लेकिन जो उद्दंडता , उच्छृंखलता और भाषायी आतंकवाद आज है ये स्तर पह्ले कभी नहीं रहा हालाँकि हमारे बीच की डोर इतनी मज़बूत हैकि लाख कोशिशों के बाद भी टूटेगी नहीं इंशाअल्लाह लेकिन कोशिशें भरपूर हो रही हैं ,बच्चों की सुरक्षा चिंता में डालती है , लोगों में डर का माहौल तो पनप रहा है , लेकिन पिछले दिनों एक वाक़या ऐसा हुआ जिस से मैं उत्साहित हूँ ,कोई ज़हरीली विचारधारा के व्यक्ति मंच से ज़ह्र बाँट रहे थे तीन चार लड़के सुन रहे थे पाँच मिनट सुनने के बाद बोले " चलो ये तो लड़वा रहे हैं ।"

बहर हाल आप का लेख सार्थक है , बधाई हो ।

डॉ. जेन्नी शबनम said...


Blogger इस्मत ज़ैदी said...
जेन्नी जी सहमत हूँ आप से और ये बात केवल नसीर या किरन राव ने नहीं कही है बल्कि बार बार अलग अलग लोग कह रहे हैं माहौल तो ख़राब हुआ है ये एक दिन में नहीं हुआ धीरे धीरे हुआ लेकिन जो उद्दंडता , उच्छृंखलता और भाषायी आतंकवाद आज है ये स्तर पह्ले कभी नहीं रहा हालाँकि हमारे बीच की डोर इतनी मज़बूत हैकि लाख कोशिशों के बाद भी टूटेगी नहीं इंशाअल्लाह लेकिन कोशिशें भरपूर हो रही हैं ,बच्चों की सुरक्षा चिंता में डालती है , लोगों में डर का माहौल तो पनप रहा है , लेकिन पिछले दिनों एक वाक़या ऐसा हुआ जिस से मैं उत्साहित हूँ ,कोई ज़हरीली विचारधारा के व्यक्ति मंच से ज़ह्र बाँट रहे थे तीन चार लड़के सुन रहे थे पाँच मिनट सुनने के बाद बोले " चलो ये तो लड़वा रहे हैं ।"

बहर हाल आप का लेख सार्थक है , बधाई हो ।

January 18, 2019 at 10:23 AM Delete
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इस्मत जी, मुझे आतंरिक ख़ुशी हुई कि आपने मेरी बातों को अच्छी तरह समझा और अपनी चिंता से भी अवगत कराया. सच है कि अभी जैसी परिस्थितियाँ हैं वे धीरे-धीरे हुईं है पर इतने उग्र रूप में सामने आ चुकी हैं कि अब इस पर नियंत्रण काफी मुश्किल हो गया है. फिर भी आज के कुछ युवा है जिनपर इसका प्रभाव नहीं पड़ रहा है. परन्तु कुछ लोग हैं जो नहीं चाहते कि युवा वर्ग सही राह पर चल कर एक उत्कृष्ट देश का निर्माण करें. कुछ के प्रयास से थोड़ा तो सुधार होगा यही आशा है. सराहना के लिए दिल से धन्यवाद.

'एकलव्य' said...

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